“ बाटू ”
बाटू,
टेढू-मेढू बाटू,
कखी उकाल, कखी उंदार,
कखी सैणु, कखी धार-धार।
बाटू,
कु होलू जाणु,
क्वी जाणु च अबाटू,
त क्वी लग्युं च सुबाटू।
बाटू,
जाणु चा बटोई,
क्वी हिटणु यखुली,
त क्वी दगिड्यों दगिडी।
बाटू,
पैंट्यां छन देखा,
क्वी च मैत आणु,
त क्वी परदेश च जाणु।
बाटू,
वै जै ‘अनूप’ ब्वनु,
जख बल मनख्यात हो,
सुकर्म मा दिन रात हो।
© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक – ०२-०२-२०१४ (इंदिरापुरम)
Tuesday, February 11, 2014
गढ़वाली कविता - बाटू
बिज़ी रयुं सैरी रात
हिंदी शायरी - Garhwali Indian
कभी-2 हम भी कलम चला लेते हैं।
बस दिल की भावनाओं को,
कागज पर उकेर लेते हैं।।
- अनूप सिंह रावत (28-01-14)
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