अज्वाण सी अन्वार मन मा बसी ग्यायी
दिल मेरु आज यु झणी कख हर्ची ग्यायी.
मुल - मुल हैंसणी कभी छै व शरमाणी
घुंघर्याली ल्वाटुली छै मुखुड़ी मा आणी.
गौला मा हंसुली नाक नथुली सजणी छै
हाथों मा चूड़ी, खुट्यों पैजबी बजणी छै.
पैन्युं छौ लाल बिलोज मा पिंगली साड़ी
गैल्याण्यु गैल हिटणी छै सबसे अग्वाड़ी
देखदा ही ख्वेगे छौ मी विंकी आंख्यों मा
मन भरमैगे मेरु विंकी रसीली बातों मा.
कनिके बिंगो वीमा अपरा दिल की बात
ख्याल विंका ही आणा सरया दिन रात
कब ऐली वा मीमा दगिड्यो रौडी-दौड़ी
कब बणाली हमारी मल्यो की सी जोड़ी
हे प्रभु अब तू ही मेरी माया विमा बिंगे दे
मिथे वींकू अर वींथे मेरी गैल्या बणे दे...
सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
“गढ़वाली इंडियन” दिनांक - २२-०५-२०१२
ग्वीन, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)
Wednesday, May 23, 2012
अज्वाण सी अन्वार
Thursday, May 17, 2012
ईं निरभे दारु न मेरु गौं मुल्क लूटी याली.
पीणु वाली की डुबे, बेचन्वालू की बणे याली..
पक्की बिकणी च बाजारों मा.
कच्ची बनणी च ड्यारों मा..
बणी मवसी ईं दारु न घाम लगे याली.
कविता जारी है...
सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
“गढ़वाली इंडियन” दिनांक - १७-०५-२०१२
ग्वीन, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)
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