ईं निरभे दारु न मेरु गौं मुल्क लूटी याली.
पीणु वाली की डुबे, बेचन्वालू की बणे याली..
पक्की बिकणी च बाजारों मा.
कच्ची बनणी च ड्यारों मा..
बणी मवसी ईं दारु न घाम लगे याली.
कविता जारी है...
सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
“गढ़वाली इंडियन” दिनांक - १७-०५-२०१२
ग्वीन, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)
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