लेख: पलायन अभिशाप, चकबंदी वरदान
उत्तराखंड जो कि भारत देश का एक पर्वतीय राज्य है, भौगोलिक दृष्टिकोण से एक विषम परिस्तिथियों वाला प्रदेश है. यहाँ का पहाड़ी क्षेत्र जितना खूबसूरत है, उसके विपरीत यहाँ का जीवन उतना ही कठिन है. यहाँ का प्रमुख व्यवसाय कृषि रहा है. जिसमे कि अब लगातार गिरावट आ रही है. पहाड़ में रोजगार पाने का मुख्य जरिया सेना है. यहाँ के ज्यादातर युवा फ़ौज में जाते हैं और रोजगार के साथ-२ देश सेवा में अपना अमूल्य योगदान देते हैं. यहाँ पर विद्यालयी शिक्षा के उपरांत उच्चतम शिक्षा के लिए छात्रों को बहुत दूर-२ जाना पड़ता है. क्योंकि उच्चतम शिक्षा के यहाँ सीमित ही संस्थान हैं. जिसमे से ज्यादातर शहरों में हैं. जिसके कारण बहुत से माता-पिता अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा के लिए यहाँ से बाहर ले जाते हैं. जो युवा यहीं शिक्षा ग्रहण करते हैं तो उनको भी यहाँ रोजगार की समस्या से जूझना पड़ता है, और वो भी रोजगार की तलाश में यहाँ से पलायन कर अन्य राज्यों की और रूख करते हैं. यही कारण है कि उत्तराखंड के पहाड़ी हिस्सों से आज लगातार पलायन हो रहा है और इसी तरह पलायन होता रहा तो निश्चित ही यह क्षेत्र एक दिन सूना हो जायेगा. इसकी एक झलक बहुत से गांवों में देखी जा सकती है. पलायन का एक कारण यह भी है कि वर्तमान समय में लोग भौतिक सुबिधाओं के लिए भी पहाड़ से दूर जा रहे हैं, जिनका का यहाँ पर अभाव है. पलायन उत्तराखंड के लिए एक अभिशाप की तरह लगातार फन फैला रहा है. अगर अभी इस विषय पर सोच विचार न किया गया तो आने वाले समय में उत्तराखंड में पहाड़ तो रहेंगे किंतु पहाड़ी नहीं. क्योंकि बहुत से लोग जो कि रोजगार के लिए इन क्षेत्रों में आये थे वो यहाँ बस भी गए हैं, जिनमें नेपाली, बिहारी और उड़िया लोग ज्यादातर शामिल हैं. पलायन के कारण यहाँ से लोग लगातार कम हो रहे हैं और यहाँ की सरकार कुछ भी नहीं कर रही है. अब समाजसेवी ही इस और ध्यान दे रहें हैं और लोगों को और सरकार को जागरूक कर रहें हैं. पलायन के कारण यहाँ की संस्कृति, रीति-रिवाज और नैतिक मूल्यों का भी ह्रास हो रहा है. जिस उत्तराखंड की मांग एक अलग सशक्त और समृद्ध राज्य के लिए की गई थी आज वह पलायन की मार झेल रहा है और यहाँ के नेता जो कि स्वयं को लोगों का मसीहा कहते हैं, राजनीति के नशे में डूबे हुए हैं. अभी भी वक़्त है कि यहाँ के प्रमुख व्यवसाय कृषि पर ध्यान दिया जाय और पलायन को रोका जाय.
पलायन को रोकने के लिए चकबंदी एक वरदान साबित हो सकती है. इसका उदाहरण हिमाचल प्रदेश हमारे सामने है. जो कि उत्तराखंड की भांति समान परिस्तिथियों वाला प्रदेश है. चकबंदी के कारण वहां पर खेती में लोग अपना रोजगार स्वयं पैदा करते हैं और खेती से ही अपने घर-परिवार आसानी से चला रहे हैं. “गरीब क्रांति अभियान” एक ऐसा ही अभियान है, जिसका प्रयास है कि उत्तराखंड के पहाड़ी हिस्से में चकबंदी कर यहाँ के लोगों को पुनः खेती की ओर अग्रसर किया जाए और उनको यहीं पर रोजगार प्राप्त हो सके. गणेश सिंह “गरीब” जी के नेतृत्व में युवा कपिल डोभाल जी और साथियों ने उत्तराखंड में भी चकबंदी करवाने की ठानी है और उनके साथ इस कार्य में बहुत से लोग जुड़े हुए हैं. सभी लोग लगातार जन-जागरण के काम में लगे हैं और जगह-२ अभियान को बढ़ा रहे हैं. ताकि लोग जागरूक हों और चकबंदी के लिए सरकार पर भी दबाब बन सके. पिछले कुछ समय से गरीब जी का प्रयास रंग ला रहा है और सरकार भी इस विषय पर गंभीर नजर आ रही है. सरकार ने इसके लिए “भूमि सुधार” नाम से कमेटी का गठन किया है और चकबंदी का ड्राफ्ट भी बना लिया है, जिसमे गणेश सिंह “गरीब” जी भी उपाध्यक्ष हैं. और “गरीब क्रांति अभियान” की टीम सरकार पर लगातार दबाब बनाये हुई है. चकबंदी से पहाड़ में एक बार फिर खेत लह-लहा उठेंगे और यहाँ पर से पलायन पर रोक लगेगी. क्योंकि फिर यहाँ के लोगों को यहीं पर रोजगार प्राप्त हो सकेगा और वो यहीं पर सुखी जीवन यापन कर पाएंगे. जहाँ पलायन यहाँ के लिए अभिशाप बना है तो वहीं दूसरी और चकबंदी वरदान साबित होगी...
नोट: चकबंदी से जुडी अधिक जानकारी के लिए गरीब क्रांति अभियान की वेबसाइट www.garibkranti.in पर देखें.
- अनूप सिंह रावत (चकबंदी समर्थक)
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
E-mail: rawat28anu@gmail.com
Thursday, March 31, 2016
लेख: पलायन अभिशाप, चकबंदी वरदान
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