Thursday, June 2, 2016

गढ़वाली शायरी - अनूप सिंह रावत

हैंसणु-खेळणु, रूठणु-मनाणु,
यनि माया की रस्यांण च।
सुख-दुःख मा सदनी साथ,
साँची माया की पछ्याण च।।

© 30-05-16 अनूप सिंह रावत
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी (उत्तराखंड)

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