Friday, October 13, 2017

भोळ


भोळ ..!!
कैन ब्वाळ, कैन बींग
कैन सूण, कैन द्याख
फिर भी मी,
भोळ का खातिर
जीणुं छौं...

आज थै छोड़ि की
भोळ का बाना
रंग - बिरंगा सुपिन्या
सजाण लग्युं छौं...

जु कुछ हथ मा च
वै थै बिसरि की
कनि दौड़ा-दौड़ि मा
दिन-रात लग्युं छौं..

मनखि मन भी
बडु अजीब ही च
अजाण भोळ का बाना
सुधि भटकुणु छौं...

जु ब्याळि हथ मा छायी
अगर आज भी राळु
त भोळ भी जरूर राळु
आज किलै छोडणु छौं...

अगर आज मा जीणु
सीखि जौंलू मी
त भोळ कु सुपिन्युं
साकार ह्वे जाळु...

जीणु-म्वरुणु त
आज भी च, भोळ भी
गर भेद मिटि जाळु त
पाणी जनु सदानी
बे रोक-टोक ब्वगुणु रौंळु।

© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक: १३ अक्टूबर २०१७ (शुक्रवार)

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