दादाजी की पिट्ठी मा
दादाजी की पिठ्ठी मा
खूब घुम्यों मैं भी
कभि तल्या ख़्वाल
कभि मल्या ख़्वाल
माँजी गई जब
धाण-काज कु
त बण्यां मेरा रख्वाल
मेरी गाड़ी त बस
दादाजी की पिट्ठी छायी
ज्वा सर्या गौं का
दर्शन करांदी छायी
अब त बालापन का
दिनों याद करि कि
भारी खुदेणों छौं
बैकुण्ठवासी दादाजी
तुम थैं नमन कनों छौं।
©® अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक: 07-12-2018 (शुक्रवार)
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