Sunday, October 30, 2011

मेरु गौं

ऊँचा निचा डांडयूँ का बीच बस्युं च मेरु गौं
कनु भालू स्वाणु च दगिदयो मेरु गौं.

छ्वाल्या मंगरू कु ठंडो मीठो पाणी
आम सेव काफल तिमला की दाणी
अहा क्या बिंगो कनु प्यारु च मेरु गौं

घास घसेनी बाजूबंद लगानी जख
डांडयूँ माँ ग्वरेल बांसुरी बजान्दा वख
अहा थोला मेलु माँ रंग्यु होलू मेरु गौं

सारी पुन्गिदयों माँ कम काज लग्युं
सब का सब देखा कनु काम लग्युं.
अहा पसीना मेहनत कु लतपथ मेरु गौं
ऊँचा निचा डांडयूँ का बीच बस्युं च मेरु गौं
कनु भालू स्वाणु च दगिदयो मेरु गौं.

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
" गढ़वाली इंडियन "
इंदिरापुरम, गाजियाबाद

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