रूम झुमा आई फिर बसग्याल
बरखा लगी च कुमौ - गढ़वाल
रुणझुण बरखा सौण भादो कु मैना
बरखा मा देखा सभी रुझी गैना
कखी लगी च जरा, कखी भारी
भीजी गेनी सरया छज्जा तिबारी
सारयूं मा काम काज उनी लग्यूं
डांडी कांठ्यों भारी कुयेडू च लग्यूं
आई बरखा त हरियाली बढिगे
गौं गुठ्यार मा फिर बहार ऐगे
कखी आई बिंजा त ब्वगणी हुई
कखी उजाड़ बिजाड खूब च हुई
बिधाता होई नाराज त बाढ़ आई
कैकी कुड़ी पुंगुड़ी कैकी जान गाई
हे सरगा रुण झुण बरखंदु रैयी
हे कखी उजाड़ बिजाड न कैयी
सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
"गढ़वाली इंडियन" दिनांक - ०६-०८-२०१२
ग्वीन, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)
Monday, August 6, 2012
बरखा लगी च कुमौ - गढ़वाल
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