जानू छाई सफ़र मा बैठी कि ट्रेन मा,
ज्वान सी जोगी एक देखि मैन हाँ ।।
पूछी मिन वैसे किले रे त्वेन,
सन्यांस जवानी मा ल्याई त्वेन,
घर गृहस्थी से मन मुड़ी ग्यायी,
इले ही सन्यांस ल्याई रे मैन ।।
घर बार, मोह माया छोड़ी की हे,
बस प्रभु थै अब पाण चाहन्दु,
ज्ञान की कुटरी भ्वरणु चाहन्दु,
प्रेम रुपी प्रकाश फैलाणु चाहन्दु ।।
लड़े झगुडू से कखी दूर छु जाणू,
ज्यू जंजाल सब छोड़ी की जाणू,
यु तेरु यु मेरु कु लोभ छोड़ी की,
प्रभु की शरण मा छौं मी जाणू ।।
मिन बोली ठीक च दिदा यु भी,
समाज थै सदानी ज्ञान दीन्दा रयां,
भटकुला जब बाटु हम लोग हे,
सुबाटू हमथें सदानी दिखान्दा रयां ।।
सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
"गढ़वाली इंडियन" दिनांक: १३-०८-२०१२
Monday, August 13, 2012
जोगी एक देखि मैन
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