बिधाता कु त्वे स्वाणु रूप दियुं,
हर क्वी त्वे पौणा कु वर मांगलु।।
तू हे रात मा भैर नि ऐयी सुवा,
त्वे देखि की चाँद भी शरमै जालु।।
© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक - ३० -०५-२०१३ (इंदिरापुरम)
Thursday, May 30, 2013
गढ़वाली शायरी - अनूप रावत
Friday, May 24, 2013
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