Thursday, May 2, 2013

गढ़वाली शायरी - अनूप रावत

क्यांकु सुपिन्यों मा ऐकि सताणी छै.
समणी ऐकि तू हैंसी की भरमाणी छै.
औंदा जांदा किलै तू मैं भट्याणी छै.
सुधि मुधि बानु बणे की बच्याणी छै.
तेरा दिल मा प्रीत की जोत जगी च,
दिल की बात तू किलै नि बिंगाणी छै.

©अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक - ०२-०५-२०१३ (इंदिरापुरम)

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब