Saturday, August 3, 2013

ऐंसू का चौमास, कनि बरखा लगी

ऐंसू का चौमास, कनि बरखा लगी.
डांडा कांठा मेरा, किले बोगण लगी.
देवभूमि मा यु क्या होण लग्युं च,
हे प्रभु यु कनु हाहाकार मची.

यनु क्या जी ह्व़े, कि प्रभु रूठिगे,
या फिर कैकी नजर लगी होली.
हैंसदा खेलदा मेरा गाँव मुलुक मा,
या निर्भे निठुर आपदा आई होली.

दिन रात सरग बरखुंदु रायी,
गौं का गौं कन्ना बोगी गैना.
बाटा घाटों मा ह्व़े उजाड़ बिजाड़,
झणी कतगों की जान गैना.

गाड़ गदेरी लर तर बणी छन,
ओर पोर सरया बोगि लीजाणा.
शान मेरु मुलुक का जु पहाड़,
खिसकण पर लगदी छन जाणा.

धन मेरा देश का जवानों कु,
जोंन कई मनखी बचाई देनी.
खाणु पेणु पहुंचे लोगों तक अर,
साक्षात् प्रभु कु रूप जणू लेनी.

मुंड ढकाणु कु कूड़ी नि रायी,
सरकार का सारा बैठ्या छन.
खाणु पेणु की भारी कमी ह्वेगे,
वू खुट मा खुटु धैरी बैठ्या छन,

कुछ एक लोग औणा मदद कु,
जनु-तनु के गुजारु हुणु चा.
कै ता अब भी लापता हुयां छि,
तौंकी खोज खबर बल होणी चा.

हे प्रभु अब त ठैरी जा दी,
भूल ह्वेगे क्वी त माफ़ करि दे.
आस तू ही छै हमारी अब हे,
अज्वाण तेरा भक्त तारि दे...

© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक – ०२-०८-२०१३ (इंदिरापुरम)

No comments: