पाना है गर उसे, तो निर्मल करले मन ।१।
कर संगत ज्ञानी की, राम नाम तू जपना ।
छोड़ के आदत बुरी, सांच को ले अपना ।२।
प्रेम भी देखो खेल हुआ, हर कोई खेलत जाय ।
बात करें है बड़ी-बड़ी, अंत में हाथ छोड़ जाय ।३।
धन ही सबसे पहले है, चाहे भला ये जग छूटे ।
महिमा इसकी अपार है, सब रिश्ते नाते टूटे ।४।
भांति-भांति के लोग यहाँ, जाति धर्म अनेक ।
अनूप कहे सबसे इतना, मानवता ही नेक ।५।
बिन नारी के सून है, ये सारा ही संसार ।
एक ही जन्म में धरे, देख ले रूप अपार ।६।
आँख मूंदकर यूं इंसान को, न तू भगवन मान ।
ढोंगी को मान देकर, प्रभु का न कर अपमान ।७।
© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक – २७-०८-२०१३ (इंदिरापुरम)
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