Sunday, September 11, 2016

शीर्षक: कुछ पूछ रहा हूं

मन में उथल-पुथल का हल ढूंढ रहा हूँ।
वजह से या बेवजह कुछ पूछ रहा हूँ।।

बरसात, धुप, सर्दी में एक किसान,
देश के लिए अन्न उगाता है।
पूरी ताकत झकझोर देता वो,
फिर भी लोन नहीं चुका पाता है।
समस्या का समाधान पूछ रहा हूँ।।

देवी स्वरूप नारी को हर दिन,
अपने बजूद से जूझना पड़ता है।
कहीं बलात्कार, कहीं दहेज़ उत्पीडन,
नित दिन घुट-२ कर जीना पड़ता है।
क्यों भ्रूण हत्या करदी पूछ रहा हूँ।।

दिन-दुगुनी, रात-चौगुनी बढ़ती महंगाई,
शिक्षा का गिरता स्तर, बढ़ता भ्रष्टाचार।
कहीं कुपोषण, तो कहीं होता शोषण,
घटती वफ़ादारी और बेरोजगारी की मार।
कैसे जीवन-यापन होगा पूछ रहा हूँ।।

जाति-धर्म के नाम पर बंटे हैं लोग,
कभी यहाँ, कभी वहां दंगे होते।
बिना मौत के मर जाते कई लोग,
कोई अस्पताल में बदहाली पर रोते।
गिरती राजनीति का उपाय ढूंढ रहा है।।

…........ कविता जारी है

© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, गढ़वाल (उत्तराखंड)
दिनांक: 10 सितंबर 2016

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