छैंद मौल्यार का,
पतझड़ सी हुणु च।
आज एक, भोळ हैंकु,
पलायन करदु जाणु च।।
झणी क्या जी खोजणा छी,
झणी क्या पौणा की च आस।
पाणी का जना ऊंदरी ब्वग्णा,
जाणा की लगि च इखरी सांस।।
खेती - पाती अर धाण-काज,
अब त बसा कु नि रायी।
रट लगि च नौकरी कना की,
खैरि खाणा हिकमत नि रायी।।
पढ़ै-लिखै कु बानु ख्वज्यों च,
जन्मभूमि से नातू तोड़ि याळ।
जण चारेक रुप्या ऐगी खीसा मा,
परदेश मा बसेरु कैरि याळ।।
हमरा पुरखों न भी यखी,
गुजारूं-बसेरु कैरि छौ।
खून-पसीना ळ बणाई मुलुक,
फिर हम किलै नि रै सकदौ।।
फूल-पात सब झड़दी जाणा,
यख बस जाड़ा-ब्वाटा रैगेनी।
जब तक चलणी च साँस,
पहाड़ राळु चलदु आस रैगेनी।।
बगत अभि भी सम्भलणा कु,
यों डांडी- कांठ्युं थै बचाणा कु।
उकाळ अभि काटि सकदी, काटि ले,
फिर क्वी नि राळु यख धै लगाणा कु।।
© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक: 20-12-2016 (मंगलवार)
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी, उत्तराखंड
Tuesday, December 20, 2016
पलायन करदु जाणु च
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