कागज़ पर कलम कभि, मी भी घिसि देन्दु।
देखुदु छु जु कुछ, वै मी कभि उकेरी देन्दु।।
सदनी प्यार प्रेम लिखणा की कोशिश करुदु।
पर क्या कन्न, ये कलजुग मा वास करुदु,
इलै कभि-2 ईंट कु जबाब ढुंगल दे देन्दु।।
कभि डांडा कांठो का बारा मा लेखदु।
कभि-2 पहाड़ का मनिख्युं का बार मा।
त यख का रीति रिवाज भी लेखि देन्दु।।
कभि क्वी आंछिरी सी बांद देखि,
रंग-रूप, रंगिलु मिजाज वींकु देखि।
मायादार बणी गीत माया का लेखि देन्दु।।
नेताओं का खोखला वादों पर लेखुदु।
जनता थै कन्ना रिंगोणा अपड़ा जाल मा।
तौंकि भ्रष्टाचार की किताब खोलि देन्दु।।
दाना-बुढ़यों दींणा आशीर्वाद लेखुदु।
त ज्वानु अर छ्वटों कु प्यार लेखुदु।
कभि नारी कु गुणगान भी लेखि देन्दु।।
कलम ब्वनि तू मी इनि घिसणी रै।
अनूप आखर से आखर गठ्याणी रै।
कुछ होरि न त इनि मी भी कै देन्दु।।
© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाज़ियाबाद (उत्तर प्रदेश)
www.iamrawatji.blogspot.in
No comments:
Post a Comment