सभी कहे इस को प्यार का दिन
कहें नही जी सकते हम तुम बिन
प्रीत की रीत ऐसी हो आयी
आज अपनी कल हो जाये परायी
आज एक तो कल दूसरी फँसायी
पसंद आयी तो साथ ले भगायी
चाँद तारे तोड़ने की करते हैं बात
रूठकर छोड़ देते हैं पल भर में साथ
इनको मतलब पता नही प्यार का
खेल समझते हैं इसे ये इकरार का
आज यह तो एक फैशन हो गया है
लवर नही तो इनको टेंशन हो गया है
भारतीय पर्वों से ज्यादा इसे मनाते
माँ बाप के मेहनत के रुपये हैं लुटाते
रीत अपनी छोड़कर दूसरी अपनायी
हे प्रभु यह प्रीत की रीत कैसी हो आयी
सर्वाधिकार सुरक्षित © iamrawat
अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड
दिनांक - १४-०२-२०१२ (मंगलवार)
Tuesday, February 14, 2012
वेलेंटाईन डे पर हास्य कविता
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