ह्युंद बीति ग्याई, रूडी लगी ग्याई.
न तुम आयां घौर, न रंत रैबार आई...
स्या कनि ड्यूटी तुम्हारी, बगत नी च.
पापी पेट का बाना, कनु बिछड़ो कर्युं च.
बाटू देखि-२ अब त, आंखी थकी गैनी.
कब तक स्वामी इना, दूर-२ दिन कटैनी.
खुद मा तुम्हारी झूरी-२ पराण आधा ह्वेगे.
राजी रयां तुम आस कुल देवतों मा रैगे.
झठ बौडी आवा स्वामी अब नि रयेंदु.
यखुली तुम बिगैर ए पहाड़ मा नि जियेंदु.
जारी है ...............
© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक : ०१-०५-२०१५ (ग्वीन मल्ला)
Wednesday, May 13, 2015
ह्युंद बीति ग्याई, रूडी लगी ग्याई
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