खैरी दुःख विपदा छन त्वैकू भारी.
जनु भी होलू हे हिक्मत ना हारी..
धन धन हे मेरा पहाडा की नारी...
भेलू पखाण, डांडी कांठी घासा कु जांदी.
स्वामी जी की खुद मा, बाजूबंद लगान्दी.
सासु बेटी ब्वारी होली पहाडा घस्यारी..
धन धन हे मेरा पहाडा की नारी...
रौली गदिन्युं छ्वाल्या मा पाणी कु जांदी.
बांजा जाड्यूं कु ठंडो मीठो पाणी ल्यांदी.
मुंडमा धैरी कसेरी आणी होली पन्यारी..
धन धन हे मेरा पहाडा की नारी...
सारी पुन्गिदयूं मा रोपणी कु जाणु.
दुध्याल नौन्याल थे ऐकि बुथ्याणु.
काम काज होलू न्यरी द्वि सारी..
धन धन हे मेरा पहाडा की नारी...
प्याज पिरन्यां कंडली की भुज्जी पकाली.
कुशल रख्यां स्वामी परदेश देवतों मनाली.
बौडी आला स्वामी अबकी बारी..
धन धन हे मेरा पहाडा की नारी...
हर रूप मा तेरु ही नौ चा हे लथ्याली.
माँ बेटी ब्वारी बोडी काकी अर स्याली.
तीलू रामी गोरा ह्वेन यख महान नारी..
धन धन हे मेरा पहाडा की नारी...
सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
" गढ़वाली इंडियन " दिनांक - १७-०१-२०१२
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)
Tuesday, January 17, 2012
धन धन हे मेरा पहाडा की नारी
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2 comments:
बहुत सुन्दर कविता भुला ..
बहुत-बहुत धन्यवाद भैजी...
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