देखा गैल्यों बसंत ऋतु फिर बौडी ऐगे.
डांडी काठ्यूं मा फिर हरियाली छैगे...
फूल पाती कनि सजिणी छि देखा हफार.
बौडी की ऐगे फिर घर-बणों मा मोळ्यार..
चखुला भी देखा कना रंगमत फिर ह्वेगेनी.
बनी - बनी की आवाज पहाड़ों मा छैगेनी..
रूडी आई छौ सब अप दगिडी लीगे छौ.
फिर ह्युंद मा सब थर थर कौन्पीगे छौ..
रंग रंगीली बहार मा ब्वाला हे झुमैलो.
थड्या चौफला आज ज्यूँ भोरी की खेलो..
सारी पुन्गिदियों मा काम कु बगत ऐगे.
हैल, कुटुलू, दथुड़ी सब तैयार फिर ह्वेगे..
लइयां पैयां फ्योली फूली बांज बुरांश.
कफुआ मोर घुघुती बसिणी हिलांश..
देखा गैल्यों बसंत ऋतु फिर बौडी ऐगे.
डांडी काठ्यूं मा फिर हरियाली छैगे...
सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
" गढ़वाली इंडियन " दिनांक -२८-०१-२०१२
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)
Saturday, January 28, 2012
बसंत ऋतु फिर बौडी ऐगे
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3 comments:
ati sundar..
सुण रे दिदा गीत मिन सदानी गाण
उत्तराखंड च हे मेरु मुल्क मेरु पराण
वाह अति सुन्दर
बहुत-२ धन्यवाद जी...
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