Monday, January 28, 2013

ऐंसू ह्युंद मा

ऐंसू ह्युंद मा जब घार मी छौ गयुं।
क्या देखि मिन अब छौ मी लेखुणु।
सब लोगों थै मी छौं बताण लग्युं।।

गौं-मुलुक मा खूब ह्युं छाई पोड्यों।
कुछ गैलिगे ता डांड्यूं नि छाई गोल्यों।।

पाणी हुयुं छायी कुछ ज्यादा ही ठंडु।
नि बोनु छायी धुणु कु हाथ अर मुंडु।।

ह्युंद कु मैत गयीं ब्वारी, आयीं बेटी।
झीठु कंडू छौ खूब दगड़ा जाणी लेकी।।

सुबेर शाम बिना आग कु नि छौ रयेणु।
कामकाज निपटेकी दिनमा घाम तपेणु।।

गोरों सुखो घास छौ देणा, हारू नि छायी।
जरा-2 डाल्युं पर हारू भील्युं ही छायी।।

नारंगी, निब्वा माल्टा डाली बणी छै तर।
स्कुल्या छोरों की जूं पर छाई गयीं नजर।।

ध्याड़ी खुली छै गौंमा बाटू बनुणु लग्युं।
कुछ दिन ही सही पर रोजगार मिल्युं।।

कैका बोण वाला घार अयां क्वी छों सार।
ऐंसू का ह्युंद ता बोडि आलु परदेशी घार।।

© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक : 28-01-2013 (इंदिरापुरम)
ग्वीन, बीरोंखाल, पौड़ी (उत्तराखंड)

No comments: