Thursday, January 31, 2013

कु सुणलो खैरी मेरी

कु सुणलो खैरी मेरी, मिन कैमा लगाण।
फंचु भ्वर्यों दुःख विपदों ना कैमा बिंगाण।।

जनि तनी ईं जिन्दगी थै मी धक्याणु छों।
हाथ थामु जू मेरु क्वी अपड़ू खुज्याणु छों।।

नी थमेंदू दुःख अब, मेरी गरीबी लाचारी।
गरु भारू सी मुंड मा च मंहंगै निखारी।।

खेती पाती बांजी हूणी, कुछ भी नि उगुणु।
निरभै निठुर सरग बगत पर नि बरखुणु।।

ध्याड़ी मजदूरी कैरी की भी कुछ नि हुणु।
दिनरात करियाली एक फिर भी पुरु नि हुणु।।

स्कुल्यों की फीस देण, झगुली टोपली ल्योण।
खाणु पेणु ता बाद मा पैली गात थै ढकोंण।।

कनुक्वे जी करण पुरु अब मिन दवे दारु।
यखुली छों कुटुमदारी कु उठाणु वालु भारू।।

कैमा होलू मैकू बगत, कैमा जी अब सुणाण।
जनु भी होलू मिन कुटुमदारी कु फर्ज निभाण।।

©31-01-2013 अनूप रावत “गढ़वाली इंडियन”
ग्वीन, बीरोंखाल, गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद, (उत्तर प्रदेश)

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