Wednesday, April 15, 2015

रिश्वत

आया जमाना रिश्वत का,
चंद रुपयों के खातिर,
ईमानदारी बेच दी इसने,
देख जमाना रिश्वत का।

बिना रिश्वत के काम नहीं,
फैला कैसा यह जाल है?
मजबूरी का नाम देकर,
कोई बना मालामाल है।

अगर लेने वाले चार हैं,
तो देने वाले आठ हैं,
बाबू जी बन बैठे करोड़पति,
वाह जी क्या ठाठ हैं !

किसी को भी सब्र नहीं,
शायद धन की कमी नहीं,
लेने वाला गुनेहगार है,
तो देने वाला क्यों नहीं?

गरीब इसमें पिस जाता है,
खून के आंसू रोता है,
भटक रहा है यहाँ वहां,
पर अंत सुखद नहीँ होता है।

इसका खिलाफ खड़े होकर,
कुछ लोग नेता बन गए,
धीरे-धीरे वो सब भी,
चोर के मौसेरे भाई बन गए!

इसे रोकने के खातिर,
अब तो कुछ करना होगा,
सब को मिल-जुल कर,
दूर इसे भगाना होगा।

रिश्वत न देंगे न लेंगे कभी,
आज शपथ लें हम सभी,
रावत अनूप बस कहे इतना,
एक सुंदर भविष्य बनेगा तभी।।

© अनूप रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक : १२-०४-२०१५ (इंदिरापुरम)

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