Saturday, November 3, 2012

प्रेम कु फूल खिलिगे

प्रेम कु फूल खिलिगे जिकुड़ी मा,
कैथे जी द्यूं अब खुज्याणु छौं।
को होलु ऐका काबिल दगिड्यो,
वैथे मी अब ता भट्याणु छौ।।

जब बिटि आयी या ज्वानी,
बणों - बणों मी डबकणु छौ।
सुपिन्यों मा ऐ ज्वा बांद,
वींथे यख-वख ढुंढणु छौं।।

काम काज मा ज्यूं नि लगणु,
झणी किलै इनु तरसेणु छौं।
गौला बाडुली, खुट्यों मा पराज,
झणी किलै मी खुदेणु छौं।।

बथों उडणु यु बालु मन मेरु,
जनि तनि ये समझाणु छौं।
भेंट करै द्यावा अब ता हे,
64 कोटि देवतों मनाणु छौं।।

प्रेम कु फूल खिलिगे जिकुड़ी मा,
कैथे जी द्यूं अब खुज्याणु छौं।

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
“गढ़वाली इंडियन” दिनांक: 03-11-2012

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