प्रीत की डोर कुंगली होंद, जरा गेड ढंग से बंध्यां। ज्वानी का बथों मा नि उड़न, खुटा भुयां ही रख्यां। संभाली की लगोण प्रीत, वादों मा न तुम तोल्यां। जांची पूछी लगोण माया, दगिड्यो बाद मा न रुयां।। ©2012 अनूप रावत “गढ़वाली इंडियन”
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