बेटी बचाओ - मिशन “गुल्लक गुडिया”
जीना है उसे भी इस दुनिया में,
कोई तो उसकी पुकार सुन लो..
बोझ नहीं बनेगी वो तुम पर,
थोड़ा ही सही मगर प्यार दे दो...
बेटा नहीं, बेटी है गर्भ में,
आधुनिक दुनिया में जान लिया..
जन्म से पहले ही उसको,
क्यों मारने का ठान लिया...
गर्भ में जो न मार सके तो,
पैदा होते ही उसे फेंक दिया..
ज़माने को ख़बर न हो उसकी,
अंधेरी रातों का सहारा लिया...
अगर कोई उसको उठा कर,
पाल-पोष कर बढा रही है..
तो कुछ दरिंदों की नजर,
मासूम सी जान पर रही है...
वो तो बस इस जहां में,
सुकून से जीना चाहती है.
मौका दो उसके सपनों को,
वो उडान भरना चाहती है...
पापा का सर पर हाथ,
माँ की उसको गोद चाहिए,
भाइयों के संग खेलना है,
प्यारा सा परिवार चाहिए...
बेटी पर ही क्यों पाबंदी,
रीति-रिवाज, संस्कारों में..
जीने दो उसको अपना जीवन,
न बंद करो उसे दीवारों में...
इतिहास के पन्नों को पलटो,
नारी की महिमा जान जाओगे..
हर रूप में उसने योगदान दिया,
शायद तब उसको बचाओगे...
© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक : २८-१२-२०१६ (बुधवार)
ग्वीन, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)
Wednesday, December 28, 2016
बेटी बचाओ - मिशन “गुल्लक गुडिया”
Tuesday, December 20, 2016
पलायन करदु जाणु च
छैंद मौल्यार का,
पतझड़ सी हुणु च।
आज एक, भोळ हैंकु,
पलायन करदु जाणु च।।
झणी क्या जी खोजणा छी,
झणी क्या पौणा की च आस।
पाणी का जना ऊंदरी ब्वग्णा,
जाणा की लगि च इखरी सांस।।
खेती - पाती अर धाण-काज,
अब त बसा कु नि रायी।
रट लगि च नौकरी कना की,
खैरि खाणा हिकमत नि रायी।।
पढ़ै-लिखै कु बानु ख्वज्यों च,
जन्मभूमि से नातू तोड़ि याळ।
जण चारेक रुप्या ऐगी खीसा मा,
परदेश मा बसेरु कैरि याळ।।
हमरा पुरखों न भी यखी,
गुजारूं-बसेरु कैरि छौ।
खून-पसीना ळ बणाई मुलुक,
फिर हम किलै नि रै सकदौ।।
फूल-पात सब झड़दी जाणा,
यख बस जाड़ा-ब्वाटा रैगेनी।
जब तक चलणी च साँस,
पहाड़ राळु चलदु आस रैगेनी।।
बगत अभि भी सम्भलणा कु,
यों डांडी- कांठ्युं थै बचाणा कु।
उकाळ अभि काटि सकदी, काटि ले,
फिर क्वी नि राळु यख धै लगाणा कु।।
© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक: 20-12-2016 (मंगलवार)
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी, उत्तराखंड
शीर्षक : बगत चुनौं कु
शीर्षक : बगत चुनौं कु
फिर खींचताण शुरू ह्वेगे,
बगत चुनौं कु फिर ऐगे।
ब्यालि तक जु सियां छाया,
तौं नेतों की सुबेर ह्वेगे।।
जौं बाटों थै बिसरी गे छाया,
उं मा खड़ंजा बिछाण लैगे।
नेता जी आणा छि बल गौं मा,
टूटीं सड़क फिर बणन लैगे।।
कखि शिलान्यास कखि उद्घाटन,
हरच्युं बज़ट फिर आण लैगे।
विकास कार्य कीं भौत हमुन,
समाचारों मा विज्ञापन आण लैगे।।
नेता दीणा बुसिल्या भाषण,
नै-२ घोषणा फिर हूण लैगे।
विपक्षी जागि गैनी अचाणचक,
नजर तौंकि भी दूण लैगे।।
हाईकमान बिटि टिकट तय ह्वेगी,
जाति-धर्म हिसाब से टिकट देगे।
जनता थैं दीणा लोभ-लालच,
अर चमचों की पौबार ह्वेगी।।
खादी का कपड़ों मा देखा,
वोट खातिर हाथ जोड़ि ऐगे।
जागि जावा ऐंसु हे दगिड्यो,
परिवर्तन की चाबी तेरा हाथ रैगे।
© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक: 14-12-2016 (बुधवार)
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी, उत्तराखंड
www.iamrawatji.blogspot.in
Friday, October 7, 2016
चलो दिल्ली
आप सभी स्नेहीजनों को अनूप रावत का प्यार भरा नमस्कार। आज फिर एक कविता लिखने की कोशिश की है, जो कि ताज़ा राजनीतिक हालातों पर एक व्यंग्य है। आपकी प्रतिक्रियाएं इस रचना पर आमंत्रित हैं।
चलो दिल्ली,
राजनीति के दांव-पेंच,
हम भी सीख आएं।
गुमनाम हैं अभी,
चर्चित चलो बन जाएं।।
झूठी हंसी का चोला ओढ़,
शहद सी मीठी बातें,
मौकापरस्त बन जाएं।
थोड़ा झूठ, कुछ मक्कारी,
चलो हम भी सीख आएं।।
सादे वस्त्र बहुत पहन लिए,
अब बारी खादी की है,
भेष अपना बदल आएं।
जैसे भी करना पड़े,
बस कुर्सी तक पहुँच जाएं।।
विपक्षी पर कीचड़ उछाल,
खूब बुराई उसकी कर,
जनता का नेता बन जाएं।
बहुमत न मिलने पर,
फिर उसी को गले लगाएं।।
राजनीतिक लाभ के लिए,
विष भर दें लोगों में,
दंगा-फसाद भी कराएं।
जाति-धर्म के नाम पर,
संसद तक बस पहुँच जाएं।।
छोटे मोटे नेताओं से,
आंदोलन आयोजित कर,
जनता को खूब उकसाएं।
देश विरोधी लोगों को,
पीछे से समर्थन दिलवाएं।।
कुछ अलग तरह की,
राजनीति करेंगे बोलकर,
कुर्सी के दावेदार बन जाएं।
पहले से गंदी राजनीति को,
और भी गंदा कर आएं।।
© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक : 06-10-2016 (इंदिरापुरम)
Sunday, September 11, 2016
शीर्षक: कुछ पूछ रहा हूं
मन में उथल-पुथल का हल ढूंढ रहा हूँ।
वजह से या बेवजह कुछ पूछ रहा हूँ।।
बरसात, धुप, सर्दी में एक किसान,
देश के लिए अन्न उगाता है।
पूरी ताकत झकझोर देता वो,
फिर भी लोन नहीं चुका पाता है।
समस्या का समाधान पूछ रहा हूँ।।
देवी स्वरूप नारी को हर दिन,
अपने बजूद से जूझना पड़ता है।
कहीं बलात्कार, कहीं दहेज़ उत्पीडन,
नित दिन घुट-२ कर जीना पड़ता है।
क्यों भ्रूण हत्या करदी पूछ रहा हूँ।।
दिन-दुगुनी, रात-चौगुनी बढ़ती महंगाई,
शिक्षा का गिरता स्तर, बढ़ता भ्रष्टाचार।
कहीं कुपोषण, तो कहीं होता शोषण,
घटती वफ़ादारी और बेरोजगारी की मार।
कैसे जीवन-यापन होगा पूछ रहा हूँ।।
जाति-धर्म के नाम पर बंटे हैं लोग,
कभी यहाँ, कभी वहां दंगे होते।
बिना मौत के मर जाते कई लोग,
कोई अस्पताल में बदहाली पर रोते।
गिरती राजनीति का उपाय ढूंढ रहा है।।
…........ कविता जारी है
© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, गढ़वाल (उत्तराखंड)
दिनांक: 10 सितंबर 2016
Thursday, August 4, 2016
शीर्षक : स्कुल्या दिन
स्कुल्या दिन
याद औणा छन
बालापन छौ जब
मयालु छौ मन,
अर कुंगुलू गात
बिंगोणु छु मी वा बात...
पैली बार गयुं जब
भैजी का दगडी
पाटी ब्वल्ख्या लेकी
गौं का स्कूल मा
दादा गैनी दाखिला कु
सर्या गौं मा भेली बंटे...
जाण दा उंदार छै
आण दा छै उकाळ
सुबेर-२ नै ड्रेस पैनी
स्कूला का बाटा लग्युं
सब कुछ आज मैं छु
मन मा ख़ुशी कु उमाळ...
मैं दगडा का गौं का
मेरा दगिद्या भी
नया-२ छाया स्कुल मा
गुरूजी देखि डैरी ग्युं
जोर से बोळी जब ऊन
पर ऊ मैं सिखाणा छाया...
पाटी ब्वल्ख्या से
कागज कलम पर ऐग्यु
बस्ता ह्वेगे छौ गरु
जनि अगिन्या बढ़दा रयुं
किताबों की बात मैं भी
खूब बिंगण बैठी ग्युं...
जनु-जनु बगत गाई
कक्षा अगिन्या बढदा राई
एक-द्वी-तीन-चार-पांच
बोर्ड का इंत्यान देकी
प्राइमरी से इंटर कॉलेज
मैं भी पौंछि गयुं...
यनु लगुणु छाई जनु
सर्या जगत मी जीती ग्युं
बहुत खुश नै स्कूल मा
वख़ अयान होरि भी
दूसरा गौं का स्कूल का
नया-२ दगिद्या बणी...
नै गुरूजी, नै स्कूल
जरा सी पैली अटपटू लगी
फिर सब अपड़ू सी
अब होरि दूर ह्वेगे छाई
पर मैं भी हिटण मा
अब खूब भलु ह्वेगे छाई
बगत बीती सरासर
दसवीं मा पौंछि गयुं
बोर्ड कु इंत्यान बळ
खूब पढे-लिखे कन लग्युं
फिर ह्वे बगत इंत्यान कु
पास ह्वेग्युं मैं भी...
फिर इंटर की बारी छाई
बगत भी दौडणु राई
अब बळ मी ज्व़ान ह्वेग्युं
समझदार बळ पैली से
गौ-गल्या, मुल्क की बात
खूब बिंगण मैं भी लग्युं...
देखदा-२ इंटर भी
पास करी याळ छौ
गरु भारु जनु मुंड मकी
भयं ढोलियाली छाई
असल दौड़ जीवन की
अब शुरू ह्वेगे छाई...
© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक – ०४-०८-२०१६ (इंदिरापुरम)
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
Thursday, June 2, 2016
गढ़वाली शायरी - अनूप सिंह रावत
Thursday, May 19, 2016
चकबंदी कु गीत लगै दे
:: चकबंदी कु गीत लगै दे ::
हे गीतांग दिदा, जरा चकबंदी कु गीत लगै दे।
गरीब क्रांति अभियान की, अलख गौं-2 जगै दे।।
हे गीतांग दिदा रे ... हे गितेर दिदा रे ... ।।1।।
कभि या बांद कभि वा बांद, कै त्वैन गिणे याली।
प्रेम गीत बनी-बनी का, त्वैन यूँ पर मिसै याली।।
एक गीत जरा अब तू, चकबंदी पर भी मिसै दे।
हे गीतांग दिदा रे ... हे गितेर दिदा रे ... ।।2।।
राजनीति कु जोड़ भाग, सब त्वैन हम समझें याल।
कैसेट बिके खूब बाजारों मा, ईनाम भी कमै याल।।
यनु ही गजब कु गीत, अब चकबंदी कु भी लगै दे।
हे गीतांग दिदा रे ... हे गितेर दिदा रे ... ।।3।।
द्यो-देवतों का जागर लगै, भूत-मसाण भी नचैली।
देश-विदेश जागरणों मा, त्वैन धूम खूब मचैली।।
एक घाण चकबंदी का नौ की, तू हुड़का घुरै दे।
हे गीतांग दिदा रे ... हे गितेर दिदा रे ... ।।4।।
नै-नै गितेर रे, तेरा खूब आणा डी.जे.वाला गीत।
कभी रॉक&रॉल, कभी पॉप, जौमा गजब संगीत।।
जनि तेरी मर्जी उनि एक गीत, चकबंदी कु लगै दे।
हे गीतांग दिदा रे ... हे गितेर दिदा रे ... ।।5।।
पलायन गर यनु ही हूणु रालु, ऐ उत्तराखंड बिटि।
कैकु गैली तू स्यु गीत, नि बजिणी तब तेरी सीटी।
चकबंदी की अलख जगै की, यों यखी रोकि दे।
हे गीतांग दिदा रे ... हे गितेर दिदा रे ... ।।6।।
गीतांग दिदा अनूप की बातों कु, बुरु न माणी रे।
पहाड़ कु प्रेमी च यु नादां त, यनि ऐकि गाणी रे।।
चकबंदी आंदोलन मा, अपड़ा गीतों से जान डाली दे।
हे गीतांग दिदा रे ... हे गितेर दिदा रे ... ।।7।।
© 11-02-2016 अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
www.iamrawatji.blogspot.in
Thursday, March 31, 2016
लेख: पलायन अभिशाप, चकबंदी वरदान
लेख: पलायन अभिशाप, चकबंदी वरदान
उत्तराखंड जो कि भारत देश का एक पर्वतीय राज्य है, भौगोलिक दृष्टिकोण से एक विषम परिस्तिथियों वाला प्रदेश है. यहाँ का पहाड़ी क्षेत्र जितना खूबसूरत है, उसके विपरीत यहाँ का जीवन उतना ही कठिन है. यहाँ का प्रमुख व्यवसाय कृषि रहा है. जिसमे कि अब लगातार गिरावट आ रही है. पहाड़ में रोजगार पाने का मुख्य जरिया सेना है. यहाँ के ज्यादातर युवा फ़ौज में जाते हैं और रोजगार के साथ-२ देश सेवा में अपना अमूल्य योगदान देते हैं. यहाँ पर विद्यालयी शिक्षा के उपरांत उच्चतम शिक्षा के लिए छात्रों को बहुत दूर-२ जाना पड़ता है. क्योंकि उच्चतम शिक्षा के यहाँ सीमित ही संस्थान हैं. जिसमे से ज्यादातर शहरों में हैं. जिसके कारण बहुत से माता-पिता अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा के लिए यहाँ से बाहर ले जाते हैं. जो युवा यहीं शिक्षा ग्रहण करते हैं तो उनको भी यहाँ रोजगार की समस्या से जूझना पड़ता है, और वो भी रोजगार की तलाश में यहाँ से पलायन कर अन्य राज्यों की और रूख करते हैं. यही कारण है कि उत्तराखंड के पहाड़ी हिस्सों से आज लगातार पलायन हो रहा है और इसी तरह पलायन होता रहा तो निश्चित ही यह क्षेत्र एक दिन सूना हो जायेगा. इसकी एक झलक बहुत से गांवों में देखी जा सकती है. पलायन का एक कारण यह भी है कि वर्तमान समय में लोग भौतिक सुबिधाओं के लिए भी पहाड़ से दूर जा रहे हैं, जिनका का यहाँ पर अभाव है. पलायन उत्तराखंड के लिए एक अभिशाप की तरह लगातार फन फैला रहा है. अगर अभी इस विषय पर सोच विचार न किया गया तो आने वाले समय में उत्तराखंड में पहाड़ तो रहेंगे किंतु पहाड़ी नहीं. क्योंकि बहुत से लोग जो कि रोजगार के लिए इन क्षेत्रों में आये थे वो यहाँ बस भी गए हैं, जिनमें नेपाली, बिहारी और उड़िया लोग ज्यादातर शामिल हैं. पलायन के कारण यहाँ से लोग लगातार कम हो रहे हैं और यहाँ की सरकार कुछ भी नहीं कर रही है. अब समाजसेवी ही इस और ध्यान दे रहें हैं और लोगों को और सरकार को जागरूक कर रहें हैं. पलायन के कारण यहाँ की संस्कृति, रीति-रिवाज और नैतिक मूल्यों का भी ह्रास हो रहा है. जिस उत्तराखंड की मांग एक अलग सशक्त और समृद्ध राज्य के लिए की गई थी आज वह पलायन की मार झेल रहा है और यहाँ के नेता जो कि स्वयं को लोगों का मसीहा कहते हैं, राजनीति के नशे में डूबे हुए हैं. अभी भी वक़्त है कि यहाँ के प्रमुख व्यवसाय कृषि पर ध्यान दिया जाय और पलायन को रोका जाय.
पलायन को रोकने के लिए चकबंदी एक वरदान साबित हो सकती है. इसका उदाहरण हिमाचल प्रदेश हमारे सामने है. जो कि उत्तराखंड की भांति समान परिस्तिथियों वाला प्रदेश है. चकबंदी के कारण वहां पर खेती में लोग अपना रोजगार स्वयं पैदा करते हैं और खेती से ही अपने घर-परिवार आसानी से चला रहे हैं. “गरीब क्रांति अभियान” एक ऐसा ही अभियान है, जिसका प्रयास है कि उत्तराखंड के पहाड़ी हिस्से में चकबंदी कर यहाँ के लोगों को पुनः खेती की ओर अग्रसर किया जाए और उनको यहीं पर रोजगार प्राप्त हो सके. गणेश सिंह “गरीब” जी के नेतृत्व में युवा कपिल डोभाल जी और साथियों ने उत्तराखंड में भी चकबंदी करवाने की ठानी है और उनके साथ इस कार्य में बहुत से लोग जुड़े हुए हैं. सभी लोग लगातार जन-जागरण के काम में लगे हैं और जगह-२ अभियान को बढ़ा रहे हैं. ताकि लोग जागरूक हों और चकबंदी के लिए सरकार पर भी दबाब बन सके. पिछले कुछ समय से गरीब जी का प्रयास रंग ला रहा है और सरकार भी इस विषय पर गंभीर नजर आ रही है. सरकार ने इसके लिए “भूमि सुधार” नाम से कमेटी का गठन किया है और चकबंदी का ड्राफ्ट भी बना लिया है, जिसमे गणेश सिंह “गरीब” जी भी उपाध्यक्ष हैं. और “गरीब क्रांति अभियान” की टीम सरकार पर लगातार दबाब बनाये हुई है. चकबंदी से पहाड़ में एक बार फिर खेत लह-लहा उठेंगे और यहाँ पर से पलायन पर रोक लगेगी. क्योंकि फिर यहाँ के लोगों को यहीं पर रोजगार प्राप्त हो सकेगा और वो यहीं पर सुखी जीवन यापन कर पाएंगे. जहाँ पलायन यहाँ के लिए अभिशाप बना है तो वहीं दूसरी और चकबंदी वरदान साबित होगी...
नोट: चकबंदी से जुडी अधिक जानकारी के लिए गरीब क्रांति अभियान की वेबसाइट www.garibkranti.in पर देखें.
- अनूप सिंह रावत (चकबंदी समर्थक)
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
E-mail: rawat28anu@gmail.com
गैरसैंण - यात्रा वृत्तान्त
गैरसैंण - यात्रा वृत्तान्त
लेख – अनूप सिंह रावत
इस संस्मरण में गैरसैंण यात्रा का सार लिख रहा हूँ। चकबंदी दिवस, जो कि 1 मार्च 2016 को होना था, उसके लिए दिल्ली से हम लोग गए थे। उसी का विवरण लिखने का एक छोटा सा प्रयास है।
गैरसैंण जाने का कार्यक्रम पहले ही तय हो गया था। जो कि सोशल मीडिया पर बात करते हुए तय किया गया था। मैं बाकी मित्रों का अपने घर के पास राष्ट्रीय राजमार्ग 24 (काला पत्थर) पर इन्तजार कर रहा था। रात करीब 10:30 बजे राकेश रावत भाई जी भी मुझे मिले और हम दोनों बाकी मित्रों का इन्तजार करने लगे। गाड़ी काफी देर में आई और रात्रि 12 बजे पहुंची। गाड़ी में बाकी सभी लोग द्वारका से साथ में आए। जिनमें विकास ध्यानी, अनूप पटवाल, दिनेश चतुर्वेदी, अनोप नेगी और शंकर ढौंडियाल जी थे। विकास ध्यानी जी से ही मैं इससे पहले मिला था, अन्य लोगों को सोशल मीडिया के माध्यम से ही जानता था। हम लोग गाड़ी में सवार होकर आगे बढ़ चले और साथ में एक दूसरे से जान पहचान व बातें होने लगी। गाड़ी हरियाणा के रोहतक जिले के रहने वाले पंडित जी चला रहे थे। मुरादाबाद से पहले हम लोगों ने गाड़ी रोकी और चाय पी। जैसे जैसे हम लोग आगे बढ़ते रहे रास्ते में कुछ जगह कोहरा भी लगा था। ठाकुरद्वारा के पास पहुँच कर ड्राईवर ने गाड़ी रोक ली और जोड़ी देर आराम करने को कहा। वहां पर थोड़ी देर रुकने के बाद हम लोग पुनः आगे चलने लगे। रामनगर में हमारे साथी, जो कि दूसरी गाड़ी से जा रहे थे हमारा इन्तजार कर रहे थे। जिनमें महाराष्ट्र से आये रविन्द्र कुंवर जी और नितिन पंवार जी थे। जो कि दिल्ली से जगमोहन जिज्ञासु जी के साथ थे। करीब सुबह 5:30 पर हम लोग रामनगर पहुंचे। वहां पर उनसे मुलाकात और जान पहचान हुयी। रविन्द्र जी पहली बार उत्तराखंड आए थे। जो की फ़ेसबुक के माध्यम से चकबंदी अभियान से जुड़े थे और काफी गढ़वाली भी सीख गए थे। उनसे मिलकर लग रहा था जैसे कि वह भी उत्तराखंड के ही मूलनिवासी हैं।
रामनगर में फ्रेश हुए और फिर चाय की चुस्कियों के साथ बातचीत का दौर आगे बढ़ रहा था। जिज्ञासु जी ने हमे गरीब क्रांति अभियान, 1 मार्च चकबंदी दिवस का बैनर दिया। जिसे हम लोगों ने अपनी गाड़ी पर लगा दिया। फिर हम लोग आगे के लिए रवाना हो गए। थोड़े आगे जाने पर बैनर उड़ने लगा, जिसे फिर से निकाल दिया और आगे फिर कहीं पर गाड़ी रोककर बांधने का तय हुआ। हम लोग मोहान के रास्ते भिक्यासैंण वाली सड़क के रास्ते गए। मोहान से कुछ आगे रुककर हम लोगों ने चाय पी और नाश्ता किया। अनूप पटवाल और शंकरशंकर ढौंडियाल भाई जी घर से बनी रोटी लाए थे। साथ में गाजर का हलवा भी था। वहां पर नाश्ता करने के बाद हम लोग आगे बढ़ चले। भिक्यासैंण पहुँच कर हम लोग दुकान से टेप खरीदकर लाए और बैनर को अपनी गाड़ी के आगे वाले हिस्से ( बोनट) पर चिपका दिया। ताकि वह अब फिर से निकले नहीं। बाजार में लोगों के साथ चकबंदी को लेकर बातचीत भी हुयी। काफी लोगों ने इस प्रयास को सराहा और कहा कि उत्तराखंड में अब चकबंदी ही एकमात्र उपाय है, जिससे यहाँ से पलायन भी रुकेगा और खेती-बाड़ी भी अच्छी होगी। वहीँ आगे के गांव और बाजारों में भी हम लोग चकबंदी जागरूकता अभियान चलाते हुए जा रहे थे। कुछ लोग काफी निराश लग रहे थे। उनकी समस्या यह थी कि खेती को जंगली जानवर नुकसान पहुंचा रहे हैं और जो कुछ वो उनसे बचा भी पाते हैं तो उनको उसका उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। हम सब लोगों को साथ में ढांढस भी बंधा रहे थे और उनको चकबंदी दिवस में शामिल होने का न्योता भी दे रहे थे। ताकि वो लोग वहां आकर अपनी समस्याओं को बता सके और सरकार तक उनकी बात को हम पहुंचा सके।
आगे चलते-2 हम लोग महलचोरी पहुंचे, जो की गढ़वाल और कुमाऊं को जोड़ता है। पुलिस भी वहां पर चेकिंग के लिए तैनात थी। हम लोगों को भी रोका गया और फिर पूछताछ के बाद आगे बढ़ गए। वहां से फिर हम लोग गैरसैंण पहुँच गए। पहुँचते-2 करीब 1 बज गया था। हम लोग श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम पहुंचे। कुलदीप भाई जी के साथ हम लोग ऑफिस से आश्रम में गए. जहाँ पर हम लोगों के साथी पहले ही पहुँच चुके थे। कपिल डोभाल जी और अन्य लोगों से मुलाकात हुई और जान-पहचान भी। क्योंकि इससे पूर्व हम लोग सिर्फ फ़ेसबुक और व्हाट्सऐप पर ही बातचीत हुई थी। फिर सब लोग तरोताज़ा हुए और फिर खाना खाकर शाम की रैली की तैयारी होने लगी। मौसम भी काफी खुशनुमा हो गया था। आसमान में बादल छा गए थे और हल्की-2 बूंदाबादी हो रही थी। थोड़ी देर में चकबंदी के प्रणेता गणेश सिंह "गरीब" जी और उनकी धर्मपत्नी भी पहुँच गए। शाम को करीब 4 बजे सब लोग ढोल-दमो-मसूबाज के साथ वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली जी के स्मारक के पास एकत्रित हुए और फिर रैली आरंभ हो गयी। साथ ही हम लोग बाज़ार में चकबंदी की जानकारी से सम्बंधित पोस्टर भी चस्पा कर रहे थे और चकबंदी के फायदे और जानकारी के पर्चे भी बाँट रहे थे। पूरे गैरसैंण बाजार में चकबंदी की गूँज उठ रही थी। रैली आगे बढ़ते हुए ग्राउंड में पहुंची और फिर जोरदार बारिश शुरू हो गयी। सभी लोग मंच की छत के नीचे पहुंचे और जब तक बारिश बंद हुई तब तक ढोल-दमो में नाच-गाना चलता रहा। फिर रैली बाजार से होते हुए वापिस आश्रम में आकर समाप्त हुई। अब रात्रि हो चली थी और सब लोग हॉल में एकत्रित हुए और सब अपना-2 परिचय देने लगे। इस तरह अलग-2 जगहों से आए हुए लोगों से पहचान हुई और सब अपने-2 बारे में और काम के विषय में जानकारी देने लगे। साथ ली चकबंदी पर सभी ने अपने विचार रखे। फिर थोड़ी देर में खाने के लिए बुलावा आ गया, सभी लोग भोजनशाला पहुँच गए और खाना खाने लगे और आश्रम के नियम के हिसाब से खाना खा कर सभी लोगों ने अपने-२ बर्तन वापस धो कर रख दिए. खाना खा कर पुनः सभी लोग हॉल में पहुँच गए और बातचीत का दौर आगे बढ़ा, और सुबह की भी तैयारी पूरी हो गयी थी. फिर सभी लोग सो गए.
सुबह सभी समय पर उठ कर तैयारी करने लगे. हम लोग भी तैयारी करने लगे और सुबह-२ मैं (अनूप रावत), विकास ध्यानी, अनोप नेगी, शंकर ढौंडियाल और राकेश रावत भाई टहलने निकल गए. आश्रम से २ किमी दूर एक छोटी सी नदी थी, उस और निकल पड़े. धीरे-२ सुबह की ठंडी हवा का मज़ा लेते हुए हम सड़क के रास्ते वहां पहुँच गए. पानी काफी ठंडा था, हम लोग उधर से ही हाथ-मुंह धोकर आये. साथ में कुछ यादगार पल भी कैमरे में कैद किये. फिर हम लोग वापस आश्रम पहुंचे. सब लोग तैयार थे और सभी पहले नास्ते के लिए भोजनशाला पहुंचे और फिर सब अलग-२ गाड़ियों से आयोजन स्थल पर पहुंचे. फिर वहां पहुँच कर तैयारी शुरु हो गयी. हम लोग मंच के पास और मैदान के चारों और चकबंदी और गरीब क्रांति अभियान के पोस्टर और बैनर लगाने लगे. फिर धीरे-२ लोग भी पहुँचने लगे. आयोजन स्थल पर कृषि विभाग की प्रदर्शनी लगी हुयी थी. सुन्द्रियाल प्रोडक्शन और गैरसैण फ्रेश ने भी अपने-२ स्टाल लगा रखे थे. जिनमे उत्तराखंडी खाद्य सामग्री उपलब्ध थी. जो कि एक आकर्षण के केंद्र थे. हम सभी लोग चकबंदी और कृषि मंत्री हरक सिंह रावत का इंतजार करने लगे, जो की चक्बदी दिवस के मुख्य अतिथि थे. किंतु जब हमे पता चला की वो नहीं आ रहे हैं तो बहुत ही बुरा लगा. उन्होंने चकबंदी विधेयक के अध्यक्ष श्री केदार सिंह रावत जी को भेज दिया था. उनके साथ कोंग्रेस के प्रवक्ता भी आये थे. अतिथियों में गैरसैण ब्लॉक प्रमुख श्रीमती बिष्ट जी भी पहुंची. साथ में महाविद्यालय के अध्यक्ष भी थे. मंच पर महाराष्ट्र से आये श्री रविन्द्र कुंवर जी और नितिन पंवार जी, गरीब क्रांति की प्रणेता श्री गणेश सिंह “गरीब” जी विराजमान थे. फिर कार्यक्रम शुरू हो गया. सबसे पहले गरीब क्रांति अभियान की सदस्य नूतन पंत जी ने सबको बैच लगाकर स्वागत किया. मंच का संचालन श्री एल.मोहन कोठियाल जी कर रहे थे. कार्यक्रम का शुभारंभ गायिका सुनीता रावत ने चकबंदी गीत गाकर किया. फिर काफल ग्रुप के सदस्यों ने “पांडव नृत्य” प्रस्तुत किया. जिसमे कि छोटे-२ बच्चों ने अपनी कलाकारी से चार चाँद लगा दिए. फिर पास के ही गाँव की महिलायों ने सुंदर ‘चांचरी नृत्य’ प्रस्तुत किया. जिसमे की उत्तराखंड की संस्कृति साफ-२ झलक रही थी. इन प्रस्तुतियों ने सभी लोगों का मन मोह लिया.
फिर मंच पर आसीन लोग अपने-२ भाषण देने लगे. गणेश सिंह “गरीब” जी के भाषण ने लोगों में एक नयी उर्जा ला दी थी. जिसे मनीष सुद्रियाल, मंगल सिंह नेगी, तिवारी जी, विकास ध्यानी, अनूप पटवाल, कपिल डोभाल, अमित गुसाईं, कुलदीप नेगी और साथिओं ने आगे बढाया. महाराष्ट्र से आये रविन्द्र कुंवर जी ने अपना भाषण गढ़वाली से शुरू किया, जो कि सभी लोगों को हैरान करने वाला था. उन्होंने कहाँ कि उन्हें उत्तराखंड की पावन धरती से बहुत लगाव है और यहाँ खेती की अपार संभावनाएं है, जिसे चकबंदी एक नया स्वरुप दे सकती है. अंत में चकबंदी विधेयक के अध्यक्ष केदार सिंह रावत जी अपनी बात रखी और कहा की वो इस विधानसभा सत्र में मंत्री जी के माध्यम से सदन में रखेंगे. जो की पूरी तरह से तैयार है. इसी आश्वासन के साथ उन्होंने अपना भाषण समाप्त किया. फिर सभी लोगों को गरीब क्रांति अभियान का मोमेंटो देखर सम्मानिंत किया गया, सभी सदस्यों का मंचासीन अतिथियों के साथ एक सामूहिक फोटो लिया गया और चकबंदी दिवस का कार्यक्रम एक सफलता के साथ समाप्त हुआ. फिर सभी लोग एक दूसरे के साथ तस्वीर लेने लगे और इस मौके को यादगार बनाने लगे.
कार्यक्रम समाप्ति के बाद हम लोग सब सामान एकत्रित कर आश्रम की और चल दिए. रास्ते में स्थित गैरसैण फ्रेस कंपनी में पहुंचे और उनसे उसकी जानकारी लेने लगे. श्री रावतजी ने हमे अपनी सभी मशीनों से परिचित करवाया और बताया कि किस तरह से पहाड़ में स्वरोजगार शुरू किया जा सकता है. तब तक करीब ४ बज चुके थे. फिर हम लोगों ने गैरसैण घूमने का कार्यक्रम तय किया. हम लोगों के साथ कुलदीप नेगी, अमित गुसाईं और गैरसैण फ्रेस के रावतजी भी चल दिए. जो कि वहां के निवासी थे और हम लोगों के लिए एक गाइड की तरह सभी जगहों से अवगत कराने लगे. हम लोग गैरसैण से १७ किमी दूर बन रहे विधानसभा भवन की और रवाना हुए. वहां से ठीक सामने दूधातोली पर्वत दिखाई दे रहा था. उन्होंने बताया की इस पर्वत से रामगंगा, पुर्वी नयार और पश्चिमी नयार निकलती है. जो जी उत्तराखंड के किसानों के लिए एक वरदान हैं. फिर हम लोग विधानसभा के गेट पर पहुंचे और अंदर जाकर देखने के लिए आज्ञा मांगने लगे, किंतु हम लोगों को आज्ञा नहीं मिली. फिर कुलदीप भाई ने कहा कि २ किमी आगे हैलीपैड है, जहाँ से निर्माणाधीन पूरे विधानसभा भवन और गैरसैण को देखा जा सकता है. तो हम लोग हैलीपैड चल पड़े. वहां से नजारा देखने लायक था. पूरा गैरसैण और आस पास का क्षेत्र देखा जा सकता था. नजारा बहुत ही अच्छा था, और धीरे-२ शाम ढल रही थी जो कि पहाड़ों की सुन्दरता को और भी अधिक बढा रही थी. फिर हम लोगों कुछ तस्वीरे कैमरे में कैद की और वापस लौटने लगे. रात होने लगी थी और हल्की-२ ठंड भी, फिर हम लोग एक दुकान पर रुके जहाँ पर एक बोड़ी (बुजुर्ग महिला) और उनकी बहु जो की चाय की दुकान चलाकर अपना परिवार चला रहे थे. हम लोगों के लिए चाय बनाई और प्यार और आशीर्वाद दिया. फिर हम लोग आश्रम आ गए. फिर सब लोग गणेश “गरीब” जी और मंगल सिंह नेगी जी से मिले और वो सभी सदस्यों के साथ वार्ता करने लगे. चकबंदी अभियान को किस तरह सफल बनाया जाय और आगे की क्या रणनीति होगी इस पर चर्चा होती रही. फिर खाना खाने के लिए बुलावा आ गया और सब लोग खाने के लिए चल पड़े. खाने के बाद फिर चर्चा शुरू हुई. सभी लोग एक-२ कर अपनी-२ बात रखने लगे और रात्रि के करीब ११ बजे तक चर्चा जारी रही. फिर सब लोग सो गए.
सुबह सब लोग तैयार होने लगे और सभी एक-दूसरे से अगले कार्यक्रम तक विदाई लेने लगे और फिर मिलने का वादा कर अपने-२ गंतव्य की और रवाना हो गए. हम लोग भी अब वापस दिल्ली की और अग्रसर हो गए. हम लोग पहले ही तय कर चुके थे कि हरिद्वार के रास्ते जायेंगे. फिर हम लोग आदिबद्री मंदिर पहुंचे. जो कि पंच-बद्री में से एक है. वहां पर रुक कर हमने भगवान के दर्शन किए. पुजारी जी ने बताया कि यहाँ पर १६ मंदिर थे, जिनमे से अब १४ मंदिर ही बचें हैं. फिर वहां से हम लोग कर्णप्रयाग पहुंचे. वहां पर रुके नहीं और आगे गौचर बाजार में रूके. २ मार्च हो हमारे साथी अनूप पटवाल का जन्मदिन था. बाजार में रुककर हमने होटल में अनूप भाई का जन्मदिन मनाया और वहां पर सभी लोगों को केक बांटा. फिर हम लोग नास्ता कर आगे बढे. अलकनंदा नदी के किनारे-२ सड़क पर रुद्रप्रयाग-देवप्रयाग होते हुए हम लोग श्रीनगर पहुंचे. वहां से थोडा आगे कलियासौड़ जगह है. जहाँ पर माँ धारी देवी का मंदिर है. हम लोग वहां पर रुके, और मंदिर में पहुंचे. माँ धारी देवी के दर्शन किए और प्रार्थना की कि हम सभी लोगों के साथ-२ सभी प्रदेश वासियों पर अपनी कृपा रखें. माँ की मूर्ति बहुत ही आकर्षक और मनभावन थी. जिसे देखते रहने का मन कर रहा था. किंतु समय का अभाव भी था और हम लो दिल्ली भी पहुंचना था. वहां से हम लोग ऋषिकेश होते हुए हरिद्वार पहुंचे. वहां पर हमारे एक मित्र कुंदन जी हमारा इंतजार कर रहे थे. हम लोग हरि की पैड़ी पहुंचे. जहाँ पर अर्ध-कुंभ के चलते बहुत भीड़ थी और शाम हो चली थी और गंगा आरती का वक्त हो चला था. फिर हम सभी ने गंगा-स्नान किया. पानी काफी ठंडा था. अनूप पटवाल और राकेश रावत भाई तैरकर दूसरी छोर गए. फिर मैं भी उनके पीछे तैरकर पार पहुँच गया. पानी में बहुत तेज बहाव था. फिर हम लोग स्नान कर बोतल में गंगा जल लेकर वापस गाड़ी की और चल दिए. जहाँ पर एक होटल में कुंदन जी ने हमे चाय और समोसे खिलाए. फिर हम लोग उनसे विदा लेकर दिल्ली रवाना हो गए. रात्रि के करीब १० बजे हम लोग गाजियाबाद पहुंचे. मैं (अनूप रावत) वहीँ पर उतर गया. क्योंकि वहां पर मुझे अपने चचेरे भाई के घर जाना था. सभी मित्रों से फिर मिलने का वादा कर मैं गाड़ी से उतर गया. फिर मैंने घर पहुँच कर सब साथियों को सूचित कर दिया. फिर राकेश रावत जी को उन्होंने उनके घर के समीप उतार दिया और बाकी लोग द्वारका पहुँच गए. फिर सब अपने-२ घर पहुँच चुके थे. फिर सोशल मीडिया के माध्यम से सभी ने अपने-२ घर पहुँचने की सूचना दी. इस के साथ ही यह सफल और सुंदर यात्रा समाप्त हुई...
Tuesday, February 2, 2016
शीर्षक : ब्याली तक जु निवासी छाई
शीर्षक : ब्याली तक जु निवासी छाई
ब्याली तक जु निवासी छाई, उ आज प्रवासी ह्वेगे।
जल्मभूमि छोड़ी की उ, बिरणों का यख चलिगे।।
हिटणु क्या जी सीख योन, सभ्या दौड़ी गैना।
बचपन अपडू काटी जख, वै घौर छोड़ी गैना।।
ज्वानि की रौंस मा अपडू, बचपन यखी छोडिगे।
ब्याली तक जु निवासी छाई, उ आज प्रवासी ह्वेगे।।
कूड़ी पुंगड़ी बांजी अर छोड़ियाल गौं गुठ्यार।
झणि किलै चुभण लग्युं, यूँ थै अपडू ही घार।।
डाली-बोटि पौण-पंछी देखा, धै लगान्दी रैगे।
ब्याली तक जु निवासी छाई, उ आज प्रवासी ह्वेगे।।
पुरखों की कूड़ी छोड़ी, किराया मकान मा रैणा छन।
खेती-बाड़ी छोड़ी ऐनि, यख ज़िंगदी धक्याणा छन।।
घौर बिटि भै-बंधु मा, यु पार्सल मगांदी रैगे।
ब्याली तक जु निवासी छाई, उ आज प्रवासी ह्वेगे।।
उकाल बिटि उन्दरी मा जाणा की, कनि दौड़ लगि च।
कुछ देखा-देखि त, कुछ मजबूरी भी च।।
क्वी पढ़ै कु क्वी रोजगार कु, बानु बणे छोड़ि गे।
ब्याली तक जु निवासी छाई, उ आज प्रवासी ह्वेगे।।
© 08-11-15 अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल,पौड़ी, उत्तराखंड
Monday, January 11, 2016
गढ़वाली शायरी - Anoop Rawat
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