Tuesday, January 31, 2012

मेरु मुल्क मेरु पराण

सुण रे दिदा गीत मिन सदानी गाण
उत्तराखंड च हे मेरु मुल्क मेरु पराण

पंच प्रयाग, पंच बद्री केदार छन यख
देवभूमि मेरु पहाड़ देवों कु वास यख
गंगोत्री यमनोत्री, भागीरथी मैत जख
धन भाग हमरु जु हम जन्म लेनी यख

ऊँची निची डांडी कांठी छन हैरा बुग्याल
चम चम चमकणु स्वाणु ऊँचो हिमाल
मनखी बस्यां छन वल्या पल्या छाल
रंगीलो कुमाऊ मेरु छबीलो गढ़वाल

लएयां पैयां फ्योली फूली बांज बुरांश
कफुआ मोर घुघूती बसणी च हिलांश
कनु भलु लगदु यख बरखुंदु चौमास
बेडू पक्यां रैन्दन यख त हे बारामास

हिंशोला किन्गोड़ा काफल तिमला दाणी
सेव अनार आम माल्टा नारंगी की दाणी
छ्वाल्या धारा मंगरू कु ठंडो मीठो पाणी
मेहनत भारी होंदी यख खाणी कमाणी

वीरों भडु कु मेरु बावन गढ़ों कु देशा
देश का बाना म्वारणा कु तैयार हमेशा
मेरा कुमाऊ गढ़वाल रैफल का जवान
बोर्डर पर छन कमर कसी देश का बान

ज्यू पराण मेरु कखी होरी नी लगदु
पुनर्जन्म हो त यखी फिर मी मंगदु
हे प्रभु सुणि ले रावत अनूप की पुकार
कुशल राखी सदानी मेरु गौं गुठ्यार

सुण रे दिदा गीत मिन सदानी गाण
उत्तराखंड च हे मेरु मुल्क मेरु पराण

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
"गढ़वाली इंडियन" दिनांक -३१-०१-२०१२
बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)

Saturday, January 28, 2012

बसंत ऋतु फिर बौडी ऐगे

देखा गैल्यों बसंत ऋतु फिर बौडी ऐगे.
डांडी काठ्यूं मा फिर हरियाली छैगे...

फूल पाती कनि सजिणी छि देखा हफार.
बौडी की ऐगे फिर घर-बणों मा मोळ्यार..

चखुला भी देखा कना रंगमत फिर ह्वेगेनी.
बनी - बनी की आवाज पहाड़ों मा छैगेनी..

रूडी आई छौ सब अप दगिडी लीगे छौ.
फिर ह्युंद मा सब थर थर कौन्पीगे छौ..

रंग रंगीली बहार मा ब्वाला हे झुमैलो.
थड्या चौफला आज ज्यूँ भोरी की खेलो..

सारी पुन्गिदियों मा काम कु बगत ऐगे.
हैल, कुटुलू, दथुड़ी सब तैयार फिर ह्वेगे..

लइयां पैयां फ्योली फूली बांज बुरांश.
कफुआ मोर घुघुती बसिणी हिलांश..

देखा गैल्यों बसंत ऋतु फिर बौडी ऐगे.
डांडी काठ्यूं मा फिर हरियाली छैगे...

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
" गढ़वाली इंडियन " दिनांक -२८-०१-२०१२
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

Wednesday, January 25, 2012

तुम्हारी माया मा

तुम्हारी माया मा बौल्या ह्वेग्युं मी हे छोरी देस्वाली.
ज्वानी की रौंस मा लतपथ बणी चा छोरी देस्वाली.
माया मा इन्कु अलझे ग्यायी छोरा 'अनु' गढ़वाली.

संभाली की भी नि सम्भलेंदी या निर्भे ज्वानी हाँ.
मेरु चित मन चोरी ली ग्यायी मुखुड़ी स्वाणी हाँ.
झणी किले यु दिल करुनु रेंद विंकि ही जग्वाली.
माया मा इन्कु अलझे ग्यायी छोरा 'अनु' गढ़वाली.

दिखेण मा सरम्याली सी पर नखरा छन हजार.
क्या दन लगदी या बांद जब करदी सज श्रृंगार.
ईं बांद कु रंग रूप न मेरु चित मन चोरी याली.
माया मा इन्कु अलझे ग्यायी छोरा 'अनु' गढ़वाली.

मीठु बुलाणु गैल्यों गैल इन्कु मुल मुल हैन्सणु.
अर चोरी चोरी नजर बचे की मिथे इन्कु देखणु.
दिल मा विंकि भी मेरु ख्याल मैन यु जाणियाली.
माया मा इन्कु अलझे ग्यायी छोरा 'अनु' गढ़वाली.

ओंठडी चुप रैंदी मायामा पर आँखी सब बिगान्दी.
दुनिया दुश्मन होंन्दी माया की पर डर नि रांदी.
होलू जू भी दिखे जालू मिन भी यु अब ठरियाली.
माया मा इन्कु अलझे ग्यायी छोरा 'अनु' गढ़वाली.

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
" गढ़वाली इंडियन " दिनांक -२५-०१-२०१२
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

Monday, January 23, 2012

२६ जनवरी गणतंत्र दिवस


२६ जनवरी गणतंत्र दिवस फिर से आयी है.
इंडिया गेट राजपथ पर परेड होने आयी है..

देश की विभिन्न संस्कृति देखने को मिलेगी.
जब झाकिंयां हर राज्य की फिर से आयेगी..

जाबांजी दिखाने फिर सेना के जवान आयेंगे.
हर रायफल के जवान परेड करते जब आयेंगे..

स्कूली बच्चे भी अपना हुनर दिखाने आयेंगे.
सेना के जवानों से कदम से कदम मिलायेंगे..

देखेगी सारी दुनिया राजपथ से शक्ति हमारी.
जय जयकार होगी हिंदुस्तान की तब भारी..

देश के शहीदों को याद करेंगे जयकार होगी.
देशभक्ति गीतों की भी साथ में भरमार होगी..

भारत माता की जय जयकार के नारे गूंजेंगे.
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सभी भाई आयेंगे..

शपथ लें सब आज मिलकर देश को बचाना है.
इस देश की खातिर हमको मर मिट जाना है..

जय भारत, भारतीय एकता, जय हिन्दुस्तान.
जय जवान, जय किसान, जय हो विज्ञान...

भारत माता की जय वन्देमातरम् इन्कलाब जिंदाबाद
महात्मा गाँधी अमर रहे, राष्ट्रीय एकता जिंदाबाद...

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
" गढ़वाली इंडियन " दिनांक -२३-०१-२०१२
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

Friday, January 20, 2012

शायरी - अनूप रावत

राती ह्वेगेन मेरी आजकल सुपन्याली.
जब से देखीं तुम्हारी आंखीं रतन्याली.!
कनि स्वाणी दिख्यांदी मुखुड़ी मयाली.
बौल्यें ग्युं माया मा तुम्हारी हे लथ्याली.!

©अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक - 20-01-2012 (इंदिरापुरम)

Wednesday, January 18, 2012

हे बांद तेरा रूप देखिकी


हे बांद तेरा रूप देखिकी सची मैं त बौल्ये ग्यूं.
झणी क्या जादू करी तिन, माया रोगी ह्वेग्यूं...

पैली भी देखी मिन कै बांद पर त्वे जनि नि देखी
मेरु चित मन अब मैमा नि राई लीगे तू चुरैकी..

धन वै बिधाता कु हे बांद जैन त्वेई बनाई होलू.
तेरु रंग रूप बणान मा हे कै बगत लगाई होल़ू..

दिन कु चैन ख्वेगे मेरु रात्यूं की निंद उडि ग्याई.
खित - 2 हैसणु मिठु बुलाणु मन मा बसी ग्याई..

गला हँसुली नाक नथुली कानों कुंडल सज्या छां.
ज्वान बैख बौल्या बन्या बुढ्यों ज्वानी आयीं चा..

गैल्यान्यूं गैल सजी धजी की थौला मेलू आंदी.
लाखों हजारों मा तू हे बांद अलग ही दिख्यांदी..

साँची माया त्वैमा मेरी त्वेथे मै बिन्गाणु छौं.
त्वे ही ब्योली बणान मिन ब्वे-बुबों मनाणु छौं.

हे बांद तेरा रूप देखिकी सची मैं त बौल्ये ग्यूं.
झणी क्या जादू करी तिन माया रोगी ह्वेग्यूं.

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
" गढ़वाली इंडियन " दिनांक -१८-०१-२०१२
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

Tuesday, January 17, 2012

धन धन हे मेरा पहाडा की नारी

खैरी दुःख विपदा छन त्वैकू भारी.
जनु भी होलू हे हिक्मत ना हारी..
धन धन हे मेरा पहाडा की नारी...

भेलू पखाण, डांडी कांठी घासा कु जांदी.
स्वामी जी की खुद मा, बाजूबंद लगान्दी.
सासु बेटी ब्वारी होली पहाडा घस्यारी..
धन धन हे मेरा पहाडा की नारी...

रौली गदिन्युं छ्वाल्या मा पाणी कु जांदी.
बांजा जाड्यूं कु ठंडो मीठो पाणी ल्यांदी.
मुंडमा धैरी कसेरी आणी होली पन्यारी..
धन धन हे मेरा पहाडा की नारी...

सारी पुन्गिदयूं मा रोपणी कु जाणु.
दुध्याल नौन्याल थे ऐकि बुथ्याणु.
काम काज होलू न्यरी द्वि सारी..
धन धन हे मेरा पहाडा की नारी...

प्याज पिरन्यां कंडली की भुज्जी पकाली.
कुशल रख्यां स्वामी परदेश देवतों मनाली.
बौडी आला स्वामी अबकी बारी..
धन धन हे मेरा पहाडा की नारी...

हर रूप मा तेरु ही नौ चा हे लथ्याली.
माँ बेटी ब्वारी बोडी काकी अर स्याली.
तीलू रामी गोरा ह्वेन यख महान नारी..
धन धन हे मेरा पहाडा की नारी...

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
" गढ़वाली इंडियन " दिनांक - १७-०१-२०१२
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

Thursday, January 5, 2012

परदेश मा छौं गौं की याद औणी चा

परदेश मा छौं गौं की याद औणी चा.
ठंडा का मारा हथ खुटी कौंपणी चा.
ह्यून्दा कु मैना, भारी जड्डू हुयूंचा.
भैर देखा कनी कुयेडी लौंकिचा...
परदेश मा छौं गौं की याद औणी चा.

घौर मा रैंदु ता डांडियों मा जांदु.
छित्कुंडा, बांजा की डाली ल्यांदु.
हथ खुटी अपरी तब खूब तपै लेंदु.
ये जड्डू मा इनु नि म्वारुनु रैंदु..

द्वि रुप्युं का बाना घार छोड्यूं चा.
अपडूं से म्यारू मुख मोड्युं चा.
यखुली छौं यख खुदेणु छौं मी.
यादों मा अपडूं की रोणु छौं मी.

घार यूँ दिनों भट्ट भूजी की खाणु
छंछ्या पल्यो बाड़ी झ्वली फाणु.
दै दगड़ी निम्ब्वा की कछ्मोली.
च्या का दगड़ी भेली की डौली..

तिबारी मा बैठी की घाम तपणु
गैल्यों का गैल उ हैसणु खेलणु.
डांडियों मा उ सफ़ेद ह्यूं पोडणु.
अब परदेश मा कख बटी देखणु.

घुट घुट गौला मा भडुली लगणी चा.
बीत्यां दिनों की फिर याद औणी चा.
परदेश मा छौं गौं की याद औणी चा.

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
" गढ़वाली इंडियन "
इंदिरापुरम, गाजियाबाद