Friday, May 25, 2018

सुपिन्या


सुपिन्या भि कभि-कबार
बकि-बाता का ह्वे जांदी
जनु कि ब्याळि रात ह्वे
क्या देखुणु छु कि
खाली पड्यां गौं-गुठ्यार
फिर से भ्वर्याँ छन
वल्या पल्या छाल फिर
मनिख्यों कु घपरोल
बांजा प्वड़्यां पुंगिड्यों म
धाण-काज करदा लोग
बाजारों म भारी रौनक
आंदा-जांदा बटोयों बहार
पंदेरों म बंठों की लैन
बांसुली बजांदा ग्वरेल
हैंसदा खेलदा गांदा गीत
मुल्क की निभांदा रीत
कच्ची पक्की सड़क दिखे
तौं पर हथ जोड़ि वोट मंगदा
जनि मिथै एक नेता दिखे
तनि फट्ट निंद टूटिगे
मनमोहण्या सुपिन्यु मेरु
झणी कख हर्चिगे !!!

©®2018 अनूप सिंह रावत

Friday, May 4, 2018

ऐंसु फिर रूड़ी ऐ ग्याई


ऐंसु फिर रूड़ी ऐ ग्याई
घौर-बोण कना कु
फिर से बगत ऐ ग्याई
स्कुल्यों की छुट्टी बाद
जु गौं म छन उ
बोण जाणा कु तैयार
अर जु परदेश छन
उ गरम्यों मा घार
पहाड़ का मनखी
खैरि फटाणा कु जाणा
अर परदेशी गौं भेंटि
खुद मिटै कि आळा।

© ® Anoop Singh Rawat