Wednesday, December 28, 2016

बेटी बचाओ - मिशन “गुल्लक गुडिया”

बेटी बचाओ - मिशन “गुल्लक गुडिया”

जीना है उसे भी इस दुनिया में,
कोई तो उसकी पुकार सुन लो..
बोझ नहीं बनेगी वो तुम पर,
थोड़ा ही सही मगर प्यार दे दो...

बेटा नहीं, बेटी है गर्भ में,
आधुनिक दुनिया में जान लिया..
जन्म से पहले ही उसको,
क्यों मारने का ठान लिया...

गर्भ में जो न मार सके तो,
पैदा होते ही उसे फेंक दिया..
ज़माने को ख़बर न हो उसकी,
अंधेरी रातों का सहारा लिया...

अगर कोई उसको उठा कर,
पाल-पोष कर बढा रही है..
तो कुछ दरिंदों की नजर,
मासूम सी जान पर रही है...

वो तो बस इस जहां में,
सुकून से जीना चाहती है.
मौका दो उसके सपनों को,
वो उडान भरना चाहती है...

पापा का सर पर हाथ,
माँ की उसको गोद चाहिए,
भाइयों के संग खेलना है,
प्यारा सा परिवार चाहिए...

बेटी पर ही क्यों पाबंदी,
रीति-रिवाज, संस्कारों में..
जीने दो उसको अपना जीवन,
न बंद करो उसे दीवारों में...

इतिहास के पन्नों को पलटो,
नारी की महिमा जान जाओगे..
हर रूप में उसने योगदान दिया,
शायद तब उसको बचाओगे...

© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक : २८-१२-२०१६ (बुधवार)
ग्वीन, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

Tuesday, December 20, 2016

पलायन करदु जाणु च


छैंद मौल्यार का,
पतझड़ सी हुणु च।
आज एक, भोळ हैंकु,
पलायन करदु जाणु च।।

झणी क्या जी खोजणा छी,
झणी क्या पौणा की च आस।
पाणी का जना ऊंदरी ब्वग्णा,
जाणा की लगि च इखरी सांस।।

खेती - पाती अर धाण-काज,
अब त बसा कु नि रायी।
रट लगि च नौकरी कना की,
खैरि खाणा हिकमत नि रायी।।

पढ़ै-लिखै कु बानु ख्वज्यों च,
जन्मभूमि से नातू तोड़ि याळ।
जण चारेक रुप्या ऐगी खीसा मा,
परदेश मा बसेरु कैरि याळ।।

हमरा पुरखों न भी यखी,
गुजारूं-बसेरु कैरि छौ।
खून-पसीना ळ बणाई मुलुक,
फिर हम किलै नि रै सकदौ।।

फूल-पात सब झड़दी जाणा,
यख बस जाड़ा-ब्वाटा रैगेनी।
जब तक चलणी च साँस,
पहाड़ राळु चलदु आस रैगेनी।।

बगत अभि भी सम्भलणा कु,
यों डांडी- कांठ्युं थै बचाणा कु।
उकाळ अभि काटि सकदी, काटि ले,
फिर क्वी नि राळु यख धै लगाणा कु।।

© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक: 20-12-2016 (मंगलवार)
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी, उत्तराखंड

शीर्षक : बगत चुनौं कु


शीर्षक : बगत चुनौं कु

फिर खींचताण शुरू ह्वेगे,
बगत चुनौं कु फिर ऐगे।
ब्यालि तक जु सियां छाया,
तौं नेतों की सुबेर ह्वेगे।।

जौं बाटों थै बिसरी गे छाया,
उं मा खड़ंजा बिछाण लैगे।
नेता जी आणा छि बल गौं मा,
टूटीं सड़क फिर बणन लैगे।।

कखि शिलान्यास कखि उद्घाटन,
हरच्युं बज़ट फिर आण लैगे।
विकास कार्य कीं भौत हमुन,
समाचारों मा विज्ञापन आण लैगे।।

नेता दीणा बुसिल्या भाषण,
नै-२ घोषणा फिर हूण लैगे।
विपक्षी जागि गैनी अचाणचक,
नजर तौंकि भी दूण लैगे।।

हाईकमान बिटि टिकट तय ह्वेगी,
जाति-धर्म हिसाब से टिकट देगे।
जनता थैं दीणा लोभ-लालच,
अर चमचों की पौबार ह्वेगी।।

खादी का कपड़ों मा देखा,
वोट खातिर हाथ जोड़ि ऐगे।
जागि जावा ऐंसु हे दगिड्यो,
परिवर्तन की चाबी तेरा हाथ रैगे।

© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक: 14-12-2016 (बुधवार)
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी, उत्तराखंड
www.iamrawatji.blogspot.in