Tuesday, October 30, 2012

आखर छौं मी गठ्याणु

आखर छौं मी गठ्याणु
मन की बात छौं मी बिंगाणु

पहाड़ों कु वासी छौं मी
देवतों का थौं छन जख
हे उत्तराखंड कु छौं मी
अपड़ी सार छौं मी लगाणु
आखर छौं मी गठ्याणु
मन की बात छौं मी बिंगाणु

जन्मभूमि छोड़ी की अयुं
दूर परदेशों बस्युं छौं मी
भारी खुदेणु यख छौं मी
मन थै छौं मी बुथ्याणु
आखर छौं मी गठ्याणु
मन की बात छौं मी बिंगाणु

द्वी रुप्यों का बाना मेरु
गौं, मुलुक, छोड्यूं च डेरु
छौं वख जख क्वी नि मेरु
जिंदगी थै छौं मी धक्याणु
आखर छौं मी गठ्याणु
मन की बात छौं मी बिंगाणु

कब बिटि गौं नि गायी
ठंडो मीठो पाणी नि प्यायी
ब्वे हाथों कु खाणु नि खायी
बेस्वाद यख छौं मी खाणु
आखर छौं मी गठ्याणु
मन की बात छौं मी बिंगाणु

कभी ह्युंद त कभी गरमी
यख त देखा पराण तडपी
जिंदगी च जाल मा जकड़ी
खैर अपड़ी छौं मी लगाणु
आखर छौं मी गठ्याणु
मन की बात छौं मी बिंगाणु

अब नि रैणु यख त मिन
ध्याड़ी मजदूरी जू भी कन
भौत ह्वेगे अब छौं जाणु
अपड़ा मुलुक छौं मी जाणु
आखर छौं मी गठ्याणु
मन की बात छौं मी बिंगाणु

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
“गढ़वाली इंडियन” दिनांक: २९-०९-२०१२

Wednesday, October 17, 2012

सर बिरोली

सर बिरोली जब भी आंद,
अन्याड़ सदानी कैरी जांद।।

द्वार ढ़ोंग्यां रैंदा पट्ट,
पर खोली देंदी स्या चट्ट।
दूध की भांडी पेयी जांद।
सर बिरोली जब भी आंद,
अन्याड़ सदानी कैरी जांद।।

सुबेर कल्या रोटी पकायी,
तिबारी डिडांळी साफ़ कायी।
तब तक स्या सब खै जांद।
सर बिरोली जब भी आंद,
अन्याड़ सदानी कैरी जांद।।

कल्यो दे कैन जलोठा धरयुं,
स्यूं भी सीं बिरोली ना खयुं।
सब गायी निर्भगी का प्याट।
सर बिरोली जब भी आंद,
अन्याड़ सदानी कैरी जांद।।

छै मेरी कुछ कुखुड़ी सैंती,
वु भी छनी से भैर खैंची ।
छि भै भारी नुक्सान कै जांद।
सर बिरोली जब भी आंद,
अन्याड़ सदानी कैरी जांद।।

ढुंढणु छौं पर हथ नि आणी,
अन्याड़ कनी मूसा नि खाणी।
छडम ह्व़े त निंद उडी जांद।
सर बिरोली जब भी आंद,
अन्याड़ सदानी कैरी जांद।।

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
"गढ़वाली इंडियन" दिनांक: १७-०९-२०१२

Wednesday, October 3, 2012

हिंदी शायरी By Anoop Rawat

प्रेम का रोग भी बड़ा अजीब है
देखता न अमीर न गरीब है...
चाहे कितने भी पहरे लगा लो,
प्रेमी एक दूजे के सदा करीब हैं.

अनूप रावत "गढ़वाली इंडियन"
Date: 03-09-2012