Thursday, January 31, 2013

कु सुणलो खैरी मेरी

कु सुणलो खैरी मेरी, मिन कैमा लगाण।
फंचु भ्वर्यों दुःख विपदों ना कैमा बिंगाण।।

जनि तनी ईं जिन्दगी थै मी धक्याणु छों।
हाथ थामु जू मेरु क्वी अपड़ू खुज्याणु छों।।

नी थमेंदू दुःख अब, मेरी गरीबी लाचारी।
गरु भारू सी मुंड मा च मंहंगै निखारी।।

खेती पाती बांजी हूणी, कुछ भी नि उगुणु।
निरभै निठुर सरग बगत पर नि बरखुणु।।

ध्याड़ी मजदूरी कैरी की भी कुछ नि हुणु।
दिनरात करियाली एक फिर भी पुरु नि हुणु।।

स्कुल्यों की फीस देण, झगुली टोपली ल्योण।
खाणु पेणु ता बाद मा पैली गात थै ढकोंण।।

कनुक्वे जी करण पुरु अब मिन दवे दारु।
यखुली छों कुटुमदारी कु उठाणु वालु भारू।।

कैमा होलू मैकू बगत, कैमा जी अब सुणाण।
जनु भी होलू मिन कुटुमदारी कु फर्ज निभाण।।

©31-01-2013 अनूप रावत “गढ़वाली इंडियन”
ग्वीन, बीरोंखाल, गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद, (उत्तर प्रदेश)

Monday, January 28, 2013

गढ़वाली शायरी By Rawatji

छै तू हे सुवा जून सी जुन्याली।
तेरी आख्युं न जादू करी याली।
माया लगै याली त्वैमा घनघोर,
आज सबका समणी बोलियाली।।

©2013 अनूप रावत "गढ़वाली इंडियन"
ग्वीन, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)

ऐंसू ह्युंद मा

ऐंसू ह्युंद मा जब घार मी छौ गयुं।
क्या देखि मिन अब छौ मी लेखुणु।
सब लोगों थै मी छौं बताण लग्युं।।

गौं-मुलुक मा खूब ह्युं छाई पोड्यों।
कुछ गैलिगे ता डांड्यूं नि छाई गोल्यों।।

पाणी हुयुं छायी कुछ ज्यादा ही ठंडु।
नि बोनु छायी धुणु कु हाथ अर मुंडु।।

ह्युंद कु मैत गयीं ब्वारी, आयीं बेटी।
झीठु कंडू छौ खूब दगड़ा जाणी लेकी।।

सुबेर शाम बिना आग कु नि छौ रयेणु।
कामकाज निपटेकी दिनमा घाम तपेणु।।

गोरों सुखो घास छौ देणा, हारू नि छायी।
जरा-2 डाल्युं पर हारू भील्युं ही छायी।।

नारंगी, निब्वा माल्टा डाली बणी छै तर।
स्कुल्या छोरों की जूं पर छाई गयीं नजर।।

ध्याड़ी खुली छै गौंमा बाटू बनुणु लग्युं।
कुछ दिन ही सही पर रोजगार मिल्युं।।

कैका बोण वाला घार अयां क्वी छों सार।
ऐंसू का ह्युंद ता बोडि आलु परदेशी घार।।

© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक : 28-01-2013 (इंदिरापुरम)
ग्वीन, बीरोंखाल, पौड़ी (उत्तराखंड)

Saturday, January 19, 2013

::: गढ़वाली कविता : जग्वाल :::

कब बिटि कन्ना छावा हम लोग जग्वाल।
और झणी कब तक कन्न होरी जग्वाल।

गौं-गौं मा सुबिधा होली कन्ना जग्वाल।
होलू चौमुखी विकास बल कन्ना जग्वाल।

स्कूल मा होला खूब गुरूजी कन्न जग्वाल।
अस्पताल मा होला डॉक्टर कन्ना जग्वाल।

घूस न देंण पोडी काम मा कन्ना जग्वाल।
घूसखोरी ख़त्म होली बल कन्ना जग्वाल।

न हो पलायन घार बीटी कन्ना जग्वाल।
यखि मिलु रोजगार यनु कन्ना जग्वाल।

ह्व़े चुनाव ता बोली बल ऐलि बग्वाल।
वादा कै छाया जू उन्कु करणा जग्वाल।

जन लोकपाल कु कन्ना छावा जग्वाल।
ईमानदार नेता कु कन्ना छावा जग्वाल।

समझ नि औणु झनि कबतक कन्न जग्वाल।
रावत अनूप पुछुणु कब तक कन्न जग्वाल?

©19-01-2013 अनूप रावत “गढ़वाली इंडियन”
ग्वीन, बीरोंखाल, गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश

Wednesday, January 9, 2013

Garhwali SHayari By Anoop Rawat

तेरी अन्वार रींगी रीटि आंख्यों मा आणी च।
अब ता ऐजा खुद तेरी सुवा भारी सताणी च।

©2013 अनूप रावत “गढ़वाली इंडियन”
ग्वीन, बीरोंखाल, गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश