Sunday, December 27, 2015

कतगा बदल गया अब उत्तराखंड


शीर्षक : कतगा बदल गया अब उत्तराखंड

कुछ दिन पैले गया था पहाड़ में,
जो कुछ देखा तुम्हें बता रहा हूँ।
कतगा बदल गया अब उत्तराखंड,
तनि इस कविता में बिंगा रहा हूँ।
लिख्वार नहीं हूँ पर लिख लेता हूँ,
आखर बिटोळ के गठ्या रहा हूँ।1।

रंग-बिरंगे लारा-लत्ते पहने,
अंग्रेजी स्कूल जाते बच्चे देखे।।
काका-काकी, ब्वाड़ा-बोड़ी को,
अंकल-आंटी बुलाते देखे।।
गढ़वाली तो कतई नहीं बच्याते,
हिंदी-अंग्रेजी में छ्वीं लगाते देखे।2।

ब्यो बाराती का हाल तो देखो,
दारु की तो गदेरी ब्वगा रहे थे।
ढोल दमो रणसिंघा मसूबाज छोड़ि,
नयु जमानु का डी जे बजा रहे थे।
गढ़वाली गाने में दाने लोग नाचते और,
ज्वान हिंदी पंजाबी में कमर हिला रहे थे।3।

बजार गयुं त गजब सीन देखा,
चाऊमीन बर्गर मोमो बिकते देखे।
च्या बणाएगा कौन अब तो,
पेप्सी लिम्का कोक बैठि पीते देखे।
हक़-बक तो तब रै गया मैं जब,
ह्युंद में आइसक्रीम खाते देखे।4।

ब्याली तक जो घ्वडेत था,
आज वो डरेबर बण गया है।
बखरेल था जो ब्याली तक,
वो आज ठेकेदार बण गया है।
अर जैल ठेली नि साकु दस,
उ आज प्रधान बण गया है।5।

स्कूल का तो हाल क्या बिंगाऊँ,
टुप दो मास्टर अर बच्चे आठ हैं।
भोजनमाता ऐकि भात-दाल पकाती,
घाम तपणा कु काम यूंक ठाठ हैं।
पढे-लिखे भगवान का भरोसा,
पर्सनल छुट्टी साल मा साठ हैं।6।

विकास का नौ कु बानु बणे की,
सर्यां पहाड़ उजाड़ी याला है।
सड़क बणी है कच्ची-पकी,
पैदल अब क्वी नहीं जाणे वाला है।
द्वी लतडाक का बाटू था जख,
टैक्सी बुक करि के अब जाणा है।7।

खेती पाती अब बांजी हो गयी,
राशन बजार बिटि ल्याण है।
खुद काम कन मा शर्म लगती,
नेपाल से डुट्याल बुलाण है।
अफ नि खाने क्वादा झुंगरु,
परदेश में ये सब भिजवाने हैं।8।

ढुंगु से बणी कूड़ी उजाड़ के अब,
ईंटों अर सीमेंट का मकान बना रहे हैं।
ढुंगु का मिस्त्री हेल्पर बना है,
और बिहारी मिस्त्री ईंट मिसा रहे हैं।
न तिबारी, न डिंडाळी, न पट्वले,
अब तो लोग लेंटर डाळ रहे हैं।9।

अब जब फिर जाऊंगा पहाड़ में,
फिर तुम्हें आके बिंगाउँगा।
बदलेंदा ज़माने की तस्वीर को,
आखर गठे की कविता सजाऊंगा।
रावत अनूप को बहुत प्यारा उत्तराखंड,
जय उत्तराखंड गीत सदानि गाऊंगा।10।

©23-12-2015 अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड

Thursday, December 10, 2015

गीत : मिथै बाँसुली ना रुवायो

गीत : मिथै बाँसुली ना रुवायो

मिथै बाँसुली ना रुवायो ..... ..... .....
मिथै बाँसुली ना रुवायो, गैल्या ना बजाऊ बाँसुली,
गैल्या ना बजाऊ बाँसुली ..... ..... .....
मिथै बाँसुली ना रुवायो ..... ..... .....

डांड्यो मा न्योली बंसणी, रौल्युं मा हिलांश,
त्वेकु मेरु रैबार देणु, आणि च घुघुती .....
हो डांड्यो मा न्योली बंसणी ..... ..... .....
आंख्युं का आँसु सुखिगे, रोई-रोई मेरा ...
झठ बौडि आवा स्वामी, गीत बाजूबंद सूणी...
मिथै बाँसुली ना रुवायो ..... ..... .....

स्वामी यखुली परदेशा, मी यखुली पहाड़ा,
निठुर ड्यूटी तुम्हारि, ख़ुशी देखि नि पाणु छु...
हो स्वामी यखुली परदेशा ..... ..... .....
होलि दगड़ी झणि कब, य तुम्हारि मेरी जोड़ी...
रौंला संग-संग हम, ऊ भलु दिन बार आलु ...
मिथै बाँसुली ना रुवायो ..... ..... .....
गैल्या ना बजाऊ बाँसुली ..... ..... .....

©09-12-2015 अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड
इंदिरापुरम, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
www.iamrawatji.blogspot.in