Wednesday, August 12, 2020

गढ़वाली गज़ल - अनूप सिंह रावत





तू ही मेरी ब्याळी तू ही छै मेरु आज भोळ,

मेरा दिल मा तू, अपणा दिल कु राज खोल।


जु बोल्दा छाया त्वेकु त जान भि दे द्यूलु,

ऐन मौका पर वो कख ह्वेनी आज गोळ।


द्यो द्यबता अर हंकार सबून त बोलि याल,

हे देवी तू भि दैणी ह्वेजा अपणी बाच खोल।


मिन मेहनत करि अर वोन बस हंकार करि,

यनि फुकी मवसि वोंकि, लगै हुंया नाज जोळ।


मिन त ब्यो-बरती कु दिन भी कैरि याल,

जनि तेरी हाँ तनि ब्यो कु झम्म बाज ढ़ोल।


मौळ्यार का सार बैठ्यों छौं कब बटि की मि,

'अनूप' का जीवन मा खुशी तू आज फ़ोळ।।


©® अनूप सिंह रावत

ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल

Sunday, May 24, 2020

गरीब (गढ़वाली कविता) - अनूप सिंह रावत


आखिर वों थैं
गरीब दिखे ही गे
चलो कम से कम
दिखे त गे भै!
चाहे राजनीति कु
वोंकु चश्मा पैन्यू छाई वो त पैलि बिटि ही
जग्वाळ छाई
कि कैकि मी पर
जरा नजर त प्वाड़ली
मेरि ख़ैरि क्वी सुणळो
अर जरसि दूर ह्वे जैली
पर वेन यु त
कब्बि बि नि सोचि छौ
तौंकि नजर त सिरफ
अपणा फैदा कि च
वों तैं वेसे क्वी लेणु-देणु नि
वो त अपणी राजनीति कि
दुकान चलाण अयां छन
वैन नि जाणि छै कि
वैकु बीच सड़क पर
उ इनु मजाक उड़ाला
वैका दुःख/विपदौं पर
राजनीति कु ढोंग रचाला
खुट्यों का छालों दगड़ी
जिकुड़ि का घौ बि
हौरि दुखै जाला !!!
वु योंकि रजनीति कु
तमसु "बस" देख्दा रैगे
अर अपणी लाचारी पर
"बस" रूंदा ही रैगे.!!!

© अनूप सिंह रावत
रविवार, 24 मई 2020

Thursday, May 7, 2020

आज (व्यंग्य)


अजगाळ कै लोग लॉकडौन मा दान का नौ पर नेतागिरी चमकाण पर लग्यां छन। ये पर ही एक व्यंग्य लिखणा कि कोशिश करीं च। जन बि ह्वेळी अपणा विचार जरूर दियां।

एक कट्टा पिस्यूं
एक कट्टा चौंळ
द्वी दाणी अल्लु
द्वी दाणी प्याज
बंटण चाणु छौं मि आज

फ़ोटो-फाटो खिंचै
खूब प्रचार करण चाणू छौं आज
समाजसेवी कु रूप धरण चाणू छौं आज

कळजुग मा पुण्य कमै क्य कन
मी त नेता बणी नाम कमाण चाणू छौं आज
समाजसेवा को बानो बणै
लाॅकडौन मा भि भैर घूमी आण चाणू छौं आज

भोळा साल चुनौ छन
अबि से तैयारी कनू छौं आज
ल्वगुं तैं दिखाण त पड़लो
कि मि तुमरा बान म्वनू छौं आज।

- अनूप सिंह रावत
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, गढवाळ (उत्तराखंड)

Wednesday, February 26, 2020

अनूप सिंह रावत की "प्रेम कहानी" (गढ़वळि कविता)


प्रेम कहानी मेरी शुरू हूंदा-हूंदा रै ग्याई।
माया कि जोत जलण से पैली बुझि ग्याई।।

बाळापन की माया मेरी ज्वान क्या ह्वाई,
तैंका बुबन वीं थैं दूर मुलुक बिवें द्याई।
दिल की बात म्यारा दिल मा ही रै ग्याई।।

स्कूल बिटी फिर कॉलेज कु बाटू ह्वे ग्याई,
प्रेम कु फूल दिल मा खिलण लगि ग्याई।
म्यारा ब्वलण से पैली वा हैंकन पटै द्याई।।

पढ़ै-लिखै पूरी ह्वेकि नौकरी मिलि ग्याई,
स्वाणी बांद एक म्यारा दिलमा बसि ग्याई।
पर वा भारी निठुर हृदै कि निकळी ग्याई।।

बगत दगड़ी अरेंज मैरिज कि बात ह्वाई,
कै जगों मेरु टिपड़ा बि झट्ट मिलि ग्याई।
कखि मेरि कखि वोंकि समझम नि आई।।

© 24-02-2020 अनूप सिंह रावत

Thursday, February 20, 2020

गढ़वाली शायरी by अनूप सिंह रावत

© 2020 अनूप सिंह रावत

हिंदी शायरी by अनूप सिंह रावत

© 2020 अनूप सिंह रावत

हिंदी शायरी by अनूप सिंह रावत

© 2020 अनूप सिंह रावत

हिंदी शायरी by अनूप सिंह रावत

© 2020 अनूप सिंह रावत

Thursday, January 16, 2020

नाचा छमाछम (व्यंग्य)


ढ़ोल बजे घमाघम
दमौ बजे टमाटम
गीतेर तू गीत लगा
स्टेज मा झमाझम
टिकट लीगे हौरि क्वी
तुम नाचा छमाछम

तू कौथिग उर्याणु रै
नेतों थैं बुलाणु रै
एक दिन कु त्यौहार
हफ्ता भर मनाणु रै
अतिथि सत्कार कनु रै
फूलमाला पैनाणु रै

नेतों को क्या चा
वु आणा ही राला
बुसिला भाषण देकि
अफ जनै कैरि जाला
तुम बगैर नि जितणु
शब्दबाण घुचे जाला

तू झण्डा उठाणी रै
पोस्टर चिपकाणी रै
तू कुर्सी लगाणी रै
तू दर्री ही बिछाणी रै
सिर्फ कार्यकर्ता बणी
वोटर लिस्ट बणाणी रै

कब तक ठगेणु रैली
मंडाण मा नचणु रैली
पर्वतीय प्रकोष्ठ पर तू
कब तक इतराणु रैली
पार्ट्यों पिछिन्या दौड़ी
झणि कब टिकट पैली

© 16-01-2020 अनूप सिंह रावत