Tuesday, August 27, 2013

रावत बोल वचन – भाग १

चीखकर न खुदा मिले, न मिलेगा भगवन ।
पाना है गर उसे, तो निर्मल करले मन ।१।

कर संगत ज्ञानी की, राम नाम तू जपना ।
छोड़ के आदत बुरी, सांच को ले अपना ।२।

प्रेम भी देखो खेल हुआ, हर कोई खेलत जाय ।
बात करें है बड़ी-बड़ी, अंत में हाथ छोड़ जाय ।३।

धन ही सबसे पहले है, चाहे भला ये जग छूटे ।
महिमा इसकी अपार है, सब रिश्ते नाते टूटे ।४।

भांति-भांति के लोग यहाँ, जाति धर्म अनेक ।
अनूप कहे सबसे इतना, मानवता ही नेक ।५।

बिन नारी के सून है, ये सारा ही संसार ।
एक ही जन्म में धरे, देख ले रूप अपार ।६।

आँख मूंदकर यूं इंसान को, न तू भगवन मान ।
ढोंगी को मान देकर, प्रभु का न कर अपमान ।७।

© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक – २७-०८-२०१३ (इंदिरापुरम)

Friday, August 23, 2013

गढ़वाली कविता - कन्या भ्रूण हत्या

नमस्कार मित्रों...

कुछ दिन पूर्व श्री मदन डुकलान जी और श्री गिरीश सुंदरियाल जी द्वारा सम्पादित गढ़वाली साहित्य की "अंग्वाल" पुस्तक छपी है.
जिसमे उत्तराखंड के बहुत से साहित्यकारों की रचनाओं का समावेश है. इस पुस्तक में मेरी भी एक कविता "कन्या भ्रूण हत्या" छपी है.
संपादक मंडल और संकलनकर्ता श्री भीष्म कुकरेती जी का बहुत-२ धन्यवाद करता हूँ. महेंद्र राणा जी का भी धन्यवाद, जिन्होंने यह मुझ तक पहुंचाई...
पुस्तक की अधिक जानकारी और ऑनलाइन खरीदने के लिए www.angwal.in पर देखें...
आप सभी मित्रों का भी सदैव प्यार बना रहता है, आप सब का भी तहे दिल से धन्यवाद. कोशिश करूंगा की आगे से भी मैं आप लोगों तक अपनी कविताएं पंहुचा सकूं...

आपका अपना
अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"

Saturday, August 3, 2013

ऐंसू का चौमास, कनि बरखा लगी

ऐंसू का चौमास, कनि बरखा लगी.
डांडा कांठा मेरा, किले बोगण लगी.
देवभूमि मा यु क्या होण लग्युं च,
हे प्रभु यु कनु हाहाकार मची.

यनु क्या जी ह्व़े, कि प्रभु रूठिगे,
या फिर कैकी नजर लगी होली.
हैंसदा खेलदा मेरा गाँव मुलुक मा,
या निर्भे निठुर आपदा आई होली.

दिन रात सरग बरखुंदु रायी,
गौं का गौं कन्ना बोगी गैना.
बाटा घाटों मा ह्व़े उजाड़ बिजाड़,
झणी कतगों की जान गैना.

गाड़ गदेरी लर तर बणी छन,
ओर पोर सरया बोगि लीजाणा.
शान मेरु मुलुक का जु पहाड़,
खिसकण पर लगदी छन जाणा.

धन मेरा देश का जवानों कु,
जोंन कई मनखी बचाई देनी.
खाणु पेणु पहुंचे लोगों तक अर,
साक्षात् प्रभु कु रूप जणू लेनी.

मुंड ढकाणु कु कूड़ी नि रायी,
सरकार का सारा बैठ्या छन.
खाणु पेणु की भारी कमी ह्वेगे,
वू खुट मा खुटु धैरी बैठ्या छन,

कुछ एक लोग औणा मदद कु,
जनु-तनु के गुजारु हुणु चा.
कै ता अब भी लापता हुयां छि,
तौंकी खोज खबर बल होणी चा.

हे प्रभु अब त ठैरी जा दी,
भूल ह्वेगे क्वी त माफ़ करि दे.
आस तू ही छै हमारी अब हे,
अज्वाण तेरा भक्त तारि दे...

© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक – ०२-०८-२०१३ (इंदिरापुरम)