Wednesday, April 15, 2015

प्रकृति

::: प्रकृति :::

कितनी सुंदर कितनी न्यारी,
प्रकृति की है छटा निराली.
खुसबू और रंगों से परिपूर्ण,
तरह-२ की फूलों की डाली..

ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों से नीचे,
गिरती है सुंदर से जलधारा.
मनभावन दृश्य देखकर लगता,
जैसे हो कोई मोती की माला..

घने बादलों के बीच से,
निकलता इन्द्रधनुष है प्यारा.
ऊँची-नीची टेढ़ी-मेढ़ी राहों से,
शोभित है वनमंडल सारा..

भांति-भांति के पंछी चहकते,
तरह-२ के पौधे और पशुधन.
इतनी सुंदर रचना देखकर,
प्रकृति पर वारी जाए ये मन..

प्रकृति के इस अद्भुद तोहफे को,
संजोकर हमको सदा रखना है.
दोहन करें न इसका अत्यधिक,
भविष्य के खातिर संभलना है..

© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक: १५-०४-२०१५ (इंदिरापुरम)

मैं मुसाफिर

मैं मुसाफिर
चल रहा हूँ
मंजिल की ओर..

सपने देखे जो
इन आँखों ने
बढ़ता उनकी ओर..

है डगर कठिन
जानता हूँ मैं
दिखे न कुछ और..

कदम-2 बढाकर
अनुभव उकेरता
पकड़े विश्वास की डोर..

गिरता फिर उठता
मन मजबूत कर
चलता उसकी ओर..

होगी जीत जरूर
लक्ष्य भेद दूंगा
बढ़ रहा विजय की ओर..

© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक: 14-04-2015 (इंदिरापुरम)

क्यों बदल गया इंसान?

क्यों बदल गया इंसान,
क्यों खो गयी मानवता,
इस धरा पर ............
हे प्रभु यह क्या हो रहा है?

बढ़ रहे हैं पाप व अत्याचार,
गरीब की अब आह निकलती,
धरती करवट बदल रही है,
हे प्रभु यह क्या हो रहा है?

स्वार्थ के आगे धर्म झुकता है,
नरसंहार क्यों नहीं रुकता है,
तूफान मचा है इस धरा पर,
हे प्रभु यह क्या हो रहा है?

देवी स्वरुप कन्या की यहाँ,
इज्जत अब हर दिन लुटती है,
रिश्ते नाते हुए तार – तार,
हे प्रभु यह क्या हो रहा है?

इच्छाएं प्रतिदिन बढती जाती,
प्रकृति की शान पर चोट करती,
संभाल ले वक्त से पहले,
हे प्रभु यह क्या हो रहा है?

© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक – १३-०४-२०१५ (इंदिरापुरम)

रिश्वत

आया जमाना रिश्वत का,
चंद रुपयों के खातिर,
ईमानदारी बेच दी इसने,
देख जमाना रिश्वत का।

बिना रिश्वत के काम नहीं,
फैला कैसा यह जाल है?
मजबूरी का नाम देकर,
कोई बना मालामाल है।

अगर लेने वाले चार हैं,
तो देने वाले आठ हैं,
बाबू जी बन बैठे करोड़पति,
वाह जी क्या ठाठ हैं !

किसी को भी सब्र नहीं,
शायद धन की कमी नहीं,
लेने वाला गुनेहगार है,
तो देने वाला क्यों नहीं?

गरीब इसमें पिस जाता है,
खून के आंसू रोता है,
भटक रहा है यहाँ वहां,
पर अंत सुखद नहीँ होता है।

इसका खिलाफ खड़े होकर,
कुछ लोग नेता बन गए,
धीरे-धीरे वो सब भी,
चोर के मौसेरे भाई बन गए!

इसे रोकने के खातिर,
अब तो कुछ करना होगा,
सब को मिल-जुल कर,
दूर इसे भगाना होगा।

रिश्वत न देंगे न लेंगे कभी,
आज शपथ लें हम सभी,
रावत अनूप बस कहे इतना,
एक सुंदर भविष्य बनेगा तभी।।

© अनूप रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक : १२-०४-२०१५ (इंदिरापुरम)