Sunday, December 27, 2015

कतगा बदल गया अब उत्तराखंड


शीर्षक : कतगा बदल गया अब उत्तराखंड

कुछ दिन पैले गया था पहाड़ में,
जो कुछ देखा तुम्हें बता रहा हूँ।
कतगा बदल गया अब उत्तराखंड,
तनि इस कविता में बिंगा रहा हूँ।
लिख्वार नहीं हूँ पर लिख लेता हूँ,
आखर बिटोळ के गठ्या रहा हूँ।1।

रंग-बिरंगे लारा-लत्ते पहने,
अंग्रेजी स्कूल जाते बच्चे देखे।।
काका-काकी, ब्वाड़ा-बोड़ी को,
अंकल-आंटी बुलाते देखे।।
गढ़वाली तो कतई नहीं बच्याते,
हिंदी-अंग्रेजी में छ्वीं लगाते देखे।2।

ब्यो बाराती का हाल तो देखो,
दारु की तो गदेरी ब्वगा रहे थे।
ढोल दमो रणसिंघा मसूबाज छोड़ि,
नयु जमानु का डी जे बजा रहे थे।
गढ़वाली गाने में दाने लोग नाचते और,
ज्वान हिंदी पंजाबी में कमर हिला रहे थे।3।

बजार गयुं त गजब सीन देखा,
चाऊमीन बर्गर मोमो बिकते देखे।
च्या बणाएगा कौन अब तो,
पेप्सी लिम्का कोक बैठि पीते देखे।
हक़-बक तो तब रै गया मैं जब,
ह्युंद में आइसक्रीम खाते देखे।4।

ब्याली तक जो घ्वडेत था,
आज वो डरेबर बण गया है।
बखरेल था जो ब्याली तक,
वो आज ठेकेदार बण गया है।
अर जैल ठेली नि साकु दस,
उ आज प्रधान बण गया है।5।

स्कूल का तो हाल क्या बिंगाऊँ,
टुप दो मास्टर अर बच्चे आठ हैं।
भोजनमाता ऐकि भात-दाल पकाती,
घाम तपणा कु काम यूंक ठाठ हैं।
पढे-लिखे भगवान का भरोसा,
पर्सनल छुट्टी साल मा साठ हैं।6।

विकास का नौ कु बानु बणे की,
सर्यां पहाड़ उजाड़ी याला है।
सड़क बणी है कच्ची-पकी,
पैदल अब क्वी नहीं जाणे वाला है।
द्वी लतडाक का बाटू था जख,
टैक्सी बुक करि के अब जाणा है।7।

खेती पाती अब बांजी हो गयी,
राशन बजार बिटि ल्याण है।
खुद काम कन मा शर्म लगती,
नेपाल से डुट्याल बुलाण है।
अफ नि खाने क्वादा झुंगरु,
परदेश में ये सब भिजवाने हैं।8।

ढुंगु से बणी कूड़ी उजाड़ के अब,
ईंटों अर सीमेंट का मकान बना रहे हैं।
ढुंगु का मिस्त्री हेल्पर बना है,
और बिहारी मिस्त्री ईंट मिसा रहे हैं।
न तिबारी, न डिंडाळी, न पट्वले,
अब तो लोग लेंटर डाळ रहे हैं।9।

अब जब फिर जाऊंगा पहाड़ में,
फिर तुम्हें आके बिंगाउँगा।
बदलेंदा ज़माने की तस्वीर को,
आखर गठे की कविता सजाऊंगा।
रावत अनूप को बहुत प्यारा उत्तराखंड,
जय उत्तराखंड गीत सदानि गाऊंगा।10।

©23-12-2015 अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड

Thursday, December 10, 2015

गीत : मिथै बाँसुली ना रुवायो

गीत : मिथै बाँसुली ना रुवायो

मिथै बाँसुली ना रुवायो ..... ..... .....
मिथै बाँसुली ना रुवायो, गैल्या ना बजाऊ बाँसुली,
गैल्या ना बजाऊ बाँसुली ..... ..... .....
मिथै बाँसुली ना रुवायो ..... ..... .....

डांड्यो मा न्योली बंसणी, रौल्युं मा हिलांश,
त्वेकु मेरु रैबार देणु, आणि च घुघुती .....
हो डांड्यो मा न्योली बंसणी ..... ..... .....
आंख्युं का आँसु सुखिगे, रोई-रोई मेरा ...
झठ बौडि आवा स्वामी, गीत बाजूबंद सूणी...
मिथै बाँसुली ना रुवायो ..... ..... .....

स्वामी यखुली परदेशा, मी यखुली पहाड़ा,
निठुर ड्यूटी तुम्हारि, ख़ुशी देखि नि पाणु छु...
हो स्वामी यखुली परदेशा ..... ..... .....
होलि दगड़ी झणि कब, य तुम्हारि मेरी जोड़ी...
रौंला संग-संग हम, ऊ भलु दिन बार आलु ...
मिथै बाँसुली ना रुवायो ..... ..... .....
गैल्या ना बजाऊ बाँसुली ..... ..... .....

©09-12-2015 अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड
इंदिरापुरम, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
www.iamrawatji.blogspot.in

Wednesday, November 18, 2015

शीर्षक : चकबंदी अब कैरी द्यो

शीर्षक : चकबंदी अब कैरी द्यो

कुर्सी मा बैठ्या भैजी, चकबंदी अब कैरी द्यो।
गणेश 'गरीब' जी की, बात जरासी सूणी ल्यो।।
हूणु पलायन यख बिटि, चकबंदी अब कैरी द्यो।
कुर्सी मा बैठ्या भैजी, चकबंदी अब कैरी द्यो।।

ऐंसु न भ्वाला साल, सूणी-सूणी थकी ग्यावा।
जनमानस की बात थैं, टक्क लगै की सूणी ल्यावा।।
होरी जगह ह्वेगे चकबंदी, यख भी अब कैरी द्यो।
कुर्सी मा बैठ्या भैजी, चकबंदी अब कैरी द्यो।।

क्वी यख क्वी वख, क्वी ये छाल क्वी वै छाल।
इनै उनै जांण मा ही, सरया गात जलै याल।।
एक ही समणी सभ्या पुंगडा, हमरा अब कैरी द्यो।
कुर्सी मा बैठ्या भैजी, चकबंदी अब कैरी द्यो।।

चकबंदी ह्वे जाली त, बांजा पुंगडा चलदा होला।
होलु खूब अनाज यख, भैर किलै छोड़ी जौंला।।
द्वी चार ख़ुशी का फूल, हमरा जीवन मा ढोली द्यो।
कुर्सी मा बैठ्या भैजी, चकबंदी अब कैरी द्यो।।

नेतागिरी छोड़ी की आज, जरा मनख्यात रैखि ल्यावा।
तुम्हरा ही भै-बंधु हम, बिरोधी नी छावा।।
गरीब क्रांति आंदोलन की बात, झटपट सूणी ल्यो।
कुर्सी मा बैठ्या भैजी, चकबंदी अब कैरी द्यो।।

© 07-11-2015 अनूप सिंह रावत
ग्वीन, बीरोंखाल, पौड़ी, उत्तराखंड
www.iamrawatji.blogspot.in

Tuesday, July 14, 2015

नै पहाड़ी जिला बणे द्यो सरकार

रिखणी-बीरोंखाल धुमाकोट थैलीसैंण नैनीडांडा.
मिलै की नै पहाड़ी जिला बणे द्यो सरकार.
हम थैं नि चयेन्दु स्यु तुम्हारु कोटद्वार...

जब राज्य पहाड़ी बणे त जिला किलै ना?
सुपिन्या दिख्यां विकास का विकास कतै ना!
रंगीला पिंगला सुपिन्या दिख्यां करि द्यो साकार...

पैली जिला मुख्यालय दूर च फिर दूर बणाणा किलै?
समणी बणे द्यो मुख्यालय यूं खण्डों थै मिलै!
सुविधा मिलि सकद यखी त फिर किलै जाण कोटद्वार...

हूणु पलायन यख बिटि ज़रा इनै भी देखि ल्यावा.
चिंगारी बणी जौ न मशाल जिला पैली बणे द्यावा.!
कख बणाण जिला जरा सुणि ल्यो जनता का विचार...

गर बणे सकदा त अलग पहाड़ी जिला बणे दियां.
कोटद्वार नि चयेन्दु हमथै नथर पौड़ी ही रैण दियां..
पछ्याण पहाड़ी रैण दियां हमारी अर गढ़वाली अन्वार...

नै पहाड़ी जिला बणे द्यो सरकार...
नै पहाड़ी जिला बणे द्यो सरकार...

©13-07-15 अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड

Thursday, June 25, 2015

धन्यवाद तेरु रूड़ी


धन्यवाद तेरु रूड़ी,
त्यारा कारण परदेशी आई.
टुप द्वी दिनों कु ही सै,
अपड़ी देवभूमि भेंटे ग्याई...

धन्यवाद तेरु रूड़ी,
बाल बच्चों दगड़ी आई.
छुट्यों का बाना ही,
अपडू गौं मुलुक देखि ग्याई...

धन्यवाद तेरु रूड़ी,
ढोग्यां द्वार खोलि ग्याई.
चौक तिबारी साफ कैरी,
भैर भितर सब हेरी ग्याई...

धन्यवाद तेरु रूड़ी,
देवी देवतों सेवा लगे ग्याई.
हिंशोला-किन्गोड़ा, काफल, आडू,
सब्बी धाणी खै ग्याई...

धन्यवाद तेरु रूड़ी,
आपस मिंत्र भेंटी ग्याई.
दाना सयाणा देखि की,
परदेश का बाटा पैंटी ग्याई...

धन्यवाद तेरु रूड़ी,
इनि सदानी आंदी रैई.
मेरा भाई-बंधु थैं,
यनि पहाड़ बुलान्दी रैई...

©22-06-15 अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी, उत्तराखंड

Wednesday, May 13, 2015

ह्युंद बीति ग्याई, रूडी लगी ग्याई

ह्युंद बीति ग्याई, रूडी लगी ग्याई.
न तुम आयां घौर, न रंत रैबार आई...

स्या कनि ड्यूटी तुम्हारी, बगत नी च.
पापी पेट का बाना, कनु बिछड़ो कर्युं च.

बाटू देखि-२ अब त, आंखी थकी गैनी.
कब तक स्वामी इना, दूर-२ दिन कटैनी.

खुद मा तुम्हारी झूरी-२ पराण आधा ह्वेगे.
राजी रयां तुम आस कुल देवतों मा रैगे.

झठ बौडी आवा स्वामी अब नि रयेंदु.
यखुली तुम बिगैर ए पहाड़ मा नि जियेंदु.

जारी है ...............

© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक : ०१-०५-२०१५ (ग्वीन मल्ला)

Wednesday, April 15, 2015

प्रकृति

::: प्रकृति :::

कितनी सुंदर कितनी न्यारी,
प्रकृति की है छटा निराली.
खुसबू और रंगों से परिपूर्ण,
तरह-२ की फूलों की डाली..

ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों से नीचे,
गिरती है सुंदर से जलधारा.
मनभावन दृश्य देखकर लगता,
जैसे हो कोई मोती की माला..

घने बादलों के बीच से,
निकलता इन्द्रधनुष है प्यारा.
ऊँची-नीची टेढ़ी-मेढ़ी राहों से,
शोभित है वनमंडल सारा..

भांति-भांति के पंछी चहकते,
तरह-२ के पौधे और पशुधन.
इतनी सुंदर रचना देखकर,
प्रकृति पर वारी जाए ये मन..

प्रकृति के इस अद्भुद तोहफे को,
संजोकर हमको सदा रखना है.
दोहन करें न इसका अत्यधिक,
भविष्य के खातिर संभलना है..

© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक: १५-०४-२०१५ (इंदिरापुरम)

मैं मुसाफिर

मैं मुसाफिर
चल रहा हूँ
मंजिल की ओर..

सपने देखे जो
इन आँखों ने
बढ़ता उनकी ओर..

है डगर कठिन
जानता हूँ मैं
दिखे न कुछ और..

कदम-2 बढाकर
अनुभव उकेरता
पकड़े विश्वास की डोर..

गिरता फिर उठता
मन मजबूत कर
चलता उसकी ओर..

होगी जीत जरूर
लक्ष्य भेद दूंगा
बढ़ रहा विजय की ओर..

© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक: 14-04-2015 (इंदिरापुरम)

क्यों बदल गया इंसान?

क्यों बदल गया इंसान,
क्यों खो गयी मानवता,
इस धरा पर ............
हे प्रभु यह क्या हो रहा है?

बढ़ रहे हैं पाप व अत्याचार,
गरीब की अब आह निकलती,
धरती करवट बदल रही है,
हे प्रभु यह क्या हो रहा है?

स्वार्थ के आगे धर्म झुकता है,
नरसंहार क्यों नहीं रुकता है,
तूफान मचा है इस धरा पर,
हे प्रभु यह क्या हो रहा है?

देवी स्वरुप कन्या की यहाँ,
इज्जत अब हर दिन लुटती है,
रिश्ते नाते हुए तार – तार,
हे प्रभु यह क्या हो रहा है?

इच्छाएं प्रतिदिन बढती जाती,
प्रकृति की शान पर चोट करती,
संभाल ले वक्त से पहले,
हे प्रभु यह क्या हो रहा है?

© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक – १३-०४-२०१५ (इंदिरापुरम)

रिश्वत

आया जमाना रिश्वत का,
चंद रुपयों के खातिर,
ईमानदारी बेच दी इसने,
देख जमाना रिश्वत का।

बिना रिश्वत के काम नहीं,
फैला कैसा यह जाल है?
मजबूरी का नाम देकर,
कोई बना मालामाल है।

अगर लेने वाले चार हैं,
तो देने वाले आठ हैं,
बाबू जी बन बैठे करोड़पति,
वाह जी क्या ठाठ हैं !

किसी को भी सब्र नहीं,
शायद धन की कमी नहीं,
लेने वाला गुनेहगार है,
तो देने वाला क्यों नहीं?

गरीब इसमें पिस जाता है,
खून के आंसू रोता है,
भटक रहा है यहाँ वहां,
पर अंत सुखद नहीँ होता है।

इसका खिलाफ खड़े होकर,
कुछ लोग नेता बन गए,
धीरे-धीरे वो सब भी,
चोर के मौसेरे भाई बन गए!

इसे रोकने के खातिर,
अब तो कुछ करना होगा,
सब को मिल-जुल कर,
दूर इसे भगाना होगा।

रिश्वत न देंगे न लेंगे कभी,
आज शपथ लें हम सभी,
रावत अनूप बस कहे इतना,
एक सुंदर भविष्य बनेगा तभी।।

© अनूप रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक : १२-०४-२०१५ (इंदिरापुरम)

Wednesday, March 4, 2015

होली गीत

फागुण देखा ऐग्याई,
त्योहार रंगों कु ऐग्याई.
स्वर्ग से लेकि धरा तक,
स्वाणी बहार ऐग्याई..

रंगी जौंला सभी रंग मा,
प्यार खतेणु लगी ग्याई.
मुखुड़ी गात रंग्याणा कु,
अबीर गुलाल ऐग्याई..

फूलों मा फुलार ऐग्याई,
डांडी कांठ्यूं मौल्यार ऐग्याई.
चौ तरफों बहार देखि की,
मनिख्यों मा उलार ऐग्याई..

बनी-२ पकवान बणला,
चुला कढ़े चढ़ी ग्याई.
मिली बांटी की खौंला,
रीत सदनी बिटि य राई..

आवा दगिड्यों चौक मा,
होरी का गीत गावा.
रंगमत ह्वे जावा सभि,
होली रंग मा रंगी जावा.

अवध मा खेलला होरी,
साक्षात सीता राम.
गोप्युं का दगिडी फूलों की,
बृन्दावन मा राधा श्याम..

फागुण देखा ऐग्याई,
त्योहार रंगों कु ऐग्याई..

© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक – ०४-०३-२०१५ (इंदिरापुरम)

Friday, February 13, 2015

लेख: पहाड़ और जीवन

शीर्षक : पहाड़ और जीवन
लेख : अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”

“पहाड़” शब्द का नाम सुनते ही मन मे तरह-२ की कल्पनाएं घर करने लगती हैं. पहाड़ के नाम से ही मन रोमांचित हो जाता है. मन में पहाड़ों की सुंदरता के ख्याल आने लगते हैं, वहां के हरे-भरे पेड़-पौधों और रंग-बिरंगे फूलों के चित्र मन में उमड़ने लगते हैं. जो कि मन को शांति पहुंचाते हैं. शहरों से लोग पहाड़ों की ओर अक्सर लोग निकल भी पड़ते हैं, शांति की खोज में, क्योंकि वहां का वातावरण है ही ऐसा कि जब लगे कि मन को शांति की जरूरत है तो सबसे पहले पहाड़ का ही खयाल आता है. पहाड़ दिखने में जितने सुंदर लगते हैं, ठीक उसके विपरीत वहां का जीवन बहुत ही कठिन है. जो लोग वहां सैर सपाटे के लिए आते हैं उनको तो होटलों में रहना होता है, जो कि अच्छी जगहों पर स्थित हैं. परन्तु पहाड़ के अधिकतर लोग बाज़ार और सड़क से दूर रहते हैं. जहाँ पर मूलभूत सुबिधाएं पूरी तरह से उपलब्ध नहीं हैं.
इन्ही खूबसूरत पहाड़ों के बीच वहां के लोग अपनी कठिन जिंदगी से रोज जद्दोजहद करते हैं. पहाड़ की जिंदगी में सबसे कठिन परिस्थिति नारी की है. वर्तमान समय में हालाँकि पहले के अनुरूप अब पहाड़ों में जीवन थोडा आसान हो गया है. किन्तु पहाड़ की नारी आज भी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इन पहाड़ों से जद्दोजहद में लगी रहती है. नारी ही है जो बहुत से लोगों के लिए यहाँ प्रेरणा का स्रोत भी है. क्योंकि पहाड़ में उसे अपनी जरूरतों का अधिकांश सामान प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त करना होता है. उसे जहाँ पशुओं के चारे और लकड़ियों के लिए जंगलों में जाना पड़ता है, तो पानी के लिए भी दूर प्राकृतिक स्रोतों पर जाना पड़ता है. हालांकि कई गावों में अब पानी पहुँच चुका है. खेतों में यहाँ पर अधिकांश काम नारी को ही करना पड़ता है. यहाँ खेती-बाड़ी भी वर्षा पर निर्भर है, जिससे कई बार बारिश न होने के कारण नुकसान हो जाता है और अनाज में कमी हो जाती है. हालांकि बाज़ार में अनाज उपलब्ध होता है परंतु लोगों को बाज़ार से भी अनाज पैदल ढोकर लाना पड़ता है. क्योंकि पहाड़ में रास्ते भी काफी उबड़-खाबड़ हैं. परंतु अब लोगों ने इनसे नाता जोड़ लिया है. चाहे इसे मजबूरी कहा जाए या आदत.! पहाड़ की सबसे बड़ी समस्या यहाँ पर रोजगार की मात्रा में कमी है, जो कि पहाड़ के लिए एक अभिशाप भी है. इसी कारण यहाँ के अधिकांश पुरुष रोजगार की तलाश में पहाड़ से दूर शहरों की ओर चले जाते हैं. जो कि त्योहारों और अन्य सार्वजनिक कार्यों में ही पहाड़ आ पाते हैं. जिससे घर-परिवार की सम्पूर्ण जिम्मेदारी घर की नारी पर आ जाती है. जिसे वह सदियों से निभाती आ रही है. नारी की महानता यहाँ काफी देखने को मिलती है, क्योंकि इतनी कठिन जिंदगी के बाबजूद उसके माथे पर सिकन तक नहीं आती है. जरूर अपनों से दूरी कभी-कबार उसे रुला देती है, मगर उसका असर वह अपने जीवन पर नहीं पड़ने देती और यूं ही भाग दौड़ मे लगी रहती है.
पहाड़ में जीवन की हर आवश्यक वस्तुओं के लिए दूर जाना पड़ता है. यहाँ पर विद्यालय भी काफी दूर-२ हैं. जिसके कारण दूर दराज के लोग अपनी लड़कियों को पढने के लिए नहीं भेज पाते हैं. विद्यालय की दूरी से ज्यादा इसका कारण गरीबी है. क्योंकि यहाँ के लोगों को कई बार प्राकृतिक आपदाओं का भी सामना करना पड़ता है, जो कि यहाँ के लोगों का जीवन कई वर्ष पीछे धकेल देता है. जिसके कई उदारहण हमारे सामने हैं. पहाड़ के लोगों को यहाँ की सरकार की ओर से पर्याप्त सुबिधाएं नहीं मिल पा रहीं हैं. जिसके कारण आज पहाड़ के कई परिवार यहाँ से पलायन भी कर चुके हैं. यह भी पहाड़ के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है. पहाड़ की जनसँख्या में अधिकांश महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे हैं. यहाँ की नारी इन सभी समस्याओं से लड़ती हुई अपने बच्चों और परिवार के भरण-पोषण में लगी हुई है.
पहाड़ में अभी भी स्वास्थ्य सेवाएं ठीक से उपलब्ध नहीं हैं, जिसके कारण यहाँ के लोगों को अपना इलाज करवाने के लिए काफी दूर जाना पड़ता है और गंभीर बीमारी में तो शहरों की ओर दौड़ना पड़ता है. जिस कारण कई बार दुर्घटनाएं भी घटित हो जाती हैं और उसका मूल्य जीवन के रूप में चुकाना पड़ता है. सरकार को इस विषय में ध्यान देना चाहिए और यहाँ के निवासियों के लिए ये सुबिधाएं उपलब्ध करवानी चाहिएं. हालांकि बार-२ चुनाव के वक्त वादे किए जातें हैं किन्तु पूर्ण नहीं किए जाते हैं. आजकल कई लोग अपनी जरूरतों की मांग उठा भी रहें हैं. अब देखने वाली बात होगी कि उनकी उम्मीद और मागें कब तक पूर्ण होंगीं.!
आज वर्तमान युग भौतिकवाद का युग है, जिससे जहाँ सुबिधाएं बढ़ी हैं तो जीवन का मूल्य भी बढ़ गया है. पहले लोग अपनों की खबर के लिए डाक पर निर्भर थे तो आज वहीँ फ़ोन जैसी सुबिधा भी उपलब्ध हो गयीं हैं, जिससे कम से कम सुख दुःख में अपनों से जल्दी संपर्क हो जाता है. यहाँ पर लोग पूरे गाँव को अपना परिवार ही मानते हैं और हर काम-काज में एक दूसरे का हाथ बांटते हैं. यही कारण है जिसके कारण यहाँ के कठिन जीवन में भी लोग अपना जीवन जीते आ रहें हैं. पहाड़ लोग यहाँ के जीवन से जद्दोजहद करते हुए लगभग आज हर क्षेत्र में अपना योगदान दे रहें हैं. जहाँ अधिकांश पुरुष सेना में अपनी सेवाएं दे रहें हैं, जो की पहाड़ में रोजगार का भी मुख्य जरिया है. उनकी बहादुरी और उनका समर्पण इसे रोजगार के साथ-२ उन्हे देश की सेवा का भी मौका देता है.
पहाड़ की संस्कृति और यहाँ का जीवन इसे अन्य क्षेत्रों से अलग प्रदर्शित करता है. यहाँ की सांस्कृतिक विरासत का एक लंबा इतिहास रहा है. यहाँ के इतिहास से यहाँ की नारी शक्ति और यहाँ के रणबांकुरों की कुर्बानी और वीरगाथाएं का पता चलता है. जो कि यहाँ के नौजवानों और आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत हैं. यहाँ के लोग काफी मृदुभाषी हैं, जिसके कारण यहाँ जो लोग घूमने आते हैं तो फिर बार-२ आते हैं. जिससे लोगों को रोजगार भी प्राप्त होता है और मेहमान नवाजी करने को भी मिलता है. जिससे यहाँ की संस्कृति का हस्तांतरण लगातार हो रहा है. प्रकृति ने यहाँ अपनी छटा बिखेरी है तो अब यहाँ पर यदि भौतिकवादी सुबिधाएं भी उपलब्ध हों जाए तो यहाँ का जीवन और भी सरल, सौम्य और खुशहाल हो जायेगा...

जय भारत – जय उत्तराखंड

© अनूप सिंह रावत “गढ़वाल इंडियन”
दिनांक – १३-०२-२०१५ (इंदिरापुरम)

Wednesday, January 28, 2015

गीत : जीवन की गाड़ी धकेले

जीवन की गाड़ी धकेले रे मनखी, बाटू च अभी बडू दूर.
भाग मा त्यारा जू कुछ भी होलू, एक दिन त्वे मिललू जरूर.
करम करदी जा, धरम करदी जा ...................

अधर्म कु बाटू भेल ली जांदू, धर्म कु बाटू स्वर्ग मा जांदू.
जैका जनि कर्म हे मनखी, फल भी दगिद्या ऊनि पांदू.
जाति-पांति सब भेदभाव छोड़, सब च वै विधाता की नूर.
जीवन की गाड़ी ....... भाग मा त्यारा ..........

फूलों कु बाटू बण्यूं च त्वेकू, कांडों का बाटा किलै छै जाणु.
सब कुछ पाके भी से बाटा मनखी, त्वेन कभी सुख नि पाणु.
दया धर्म कु बाटू जा रे मनखी, ना बण तू हे इतगा क्रूर.
जीवन की गाड़ी ....... भाग मा त्यारा ..........

बगत कभी रुक्युं नि रांदु, आदत येकी भी मनखी जनि च.
सब कुछ च त्वैमा हे मनखी, बस एक धीरज की कमि च.
मनखी चोला माटा कु च रे, चखुलू सी उड़ी जालू फूर.
जीवन की गाड़ी ....... भाग मा त्यारा ..........

रंग ही नि हुंदू फूलों की पछ्यांण, कांडों ना भी पछ्यांण हुंद.
रंग रूपल नि पछ्नेंदु मनखी, वैका कर्मों न पछ्याण हुंद.
प्रेम कु कल्यों त्वैमा रे मनखी, बांटी सकदी बांटी ले भरपूर.
जीवन की गाड़ी ....... भाग मा त्यारा ..........

पालू सदानी नि रैंदु चमकुणु, घाम आण मा सर्र गैली जान्द.
पाप की गठरी नि बाँध रे, पाप कु घाडू फट्ट फूटी जान्द.
अहम् छोड़ी दे रे दगिद्या, न कैर मनखी तू भंड्या गुरूर.
जीवन की गाड़ी ....... भाग मा त्यारा ..........

© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक – २८-०१-२०१५ (इंदिरापुरम)

Saturday, January 17, 2015

गढ़वाली शायरी - अनूप सिंह रावत

*** गढ़वाली शायरी ***
फूलों थैं क्या देखण, त्वे देखियाली.
भोली अन्वार तेरी, दिल मा बसैयाली.
प्रीत लागी गे, हे सुवा त्वैमा मेरी.
सबका सामणी आज, मिन बोलियाली..

© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक – १७-०१-२०१५ (इंदिरापुरम)

Monday, January 5, 2015

गीत : बाजूबंद गीत गाणी हो

गीत : बाजूबंद गीत गाणी हो

दाथुड़ी लेकि घासा कु जांदी,
ग्वरेल छोरों की बांसुरी सूणी,
स्वामी की खुद मा खुदेणी हो.
वा बैठी डाल्युं का छैल,
घास घसेन्यों का गैल,
बाजूबंद गीत गाणी हो ...

कै दिन मैना बीती साल,
स्वामी बौडी घार नि आया,
पापी नौकरी का बाना,
द्वी जनों कु बिछड़ो हुयुं च,
स्वामी राजी ख़ुशी रयां,
देवतों थैं वा मनाणी हो ...

वा यखुली पहाड़ मा,
ऊनि काम काज सार्युं कु,
ऊनि दुध्याल नौन्याल,
स्वामी का खातिर वींकी,
घ्यु की ठेकी भोरियाल,
तू हिकमत ना हारी हो ...

आंखी थकी बाटू देखि-२,
दिन याद मा धक्याणी,
बुढ्या सासु ससुर की सेवा,
अपडू ब्वारी धर्म निभाणी,
धन त्वेकू पहाड़ा की नारी,
रै सदानी सुहागिणी हो ...

बाजूबंद गीत गाणी हो ...
बाजूबंद गीत गाणी हो ...

© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक – ०३-०१-२०१५ (इंदिरापुरम)