Friday, August 4, 2017

या दुनिया - अनूप सिंह रावत

*या दुनिया*

क्वी मेरु वैरी बण्यूं त,
क्वी मेरु यख यार च।
किलै कि या दुनिया,
जतगा निठुर, उतगा मायादार च।।

क्वी अगिन्या बढाणु मिथै,
त क्वी पिछनै ठिलाणु च।
क्वी खिंचणु च हाथ मेरु,
त क्वी खिंचणु सुलार च।।
किलै कि या दुनिया,
जतगा निठुर, उतगा मायादार च।।

क्वी मेरा दुःख मा रुणु,
त क्वी सुख देखि जळणु च।
क्वी अँधेरा बाटों उज्यालु कनु,
त क्वी बाती मा मनु फुहार च।।
किलै कि या दुनिया,
जतगा निठुर, उतगा मायादार च।।

क्वी फूलों का बाटा लिजाणु,
त क्वी कांडों का बाटा पिचगाणु च।
क्वी अपड़ा बांठा कु खिलाणु,
त क्वी हाथा कु गफ्फ़ा लुछणु तैयार च।।
किलै कि या दुनिया,
जतगा निठुर, उतगा मायादार च।।

क्वी मेरा कामों पर ताली बजाणु,
त क्वी बण्यूं मेरु चुगलखोर च।
क्वी मैं दगिड़ी हिटणु च,
त क्वी बाटू बदलणा कु तैयार च।।
किलै कि या दुनिया,
जतगा निठुर, उतगा मायादार च।।

क्वी टक्क लगै सुनणु च बात,
त क्वी जाणी बुझि नि सुनणु च।
क्वी कनु च मेरी भली-२ छ्वीं,
त क्वी मिलाणु द्वी मा चार च।।
किलै कि या दुनिया,
जतगा निठुर, उतगा मायादार च।।

© 04-08-2017 (शुक्रवार)
अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी (उत्तराखंड) http://iamrawatji.blogspot.in/