Monday, November 18, 2019

वरिष्ठ कवि श्री नरेश उनियाल जी द्वारा "ज्यू त ब्वनु च" काव्य संग्रह की समीक्षा

सादर नमस्कार प्रिय मित्रों.. 🙏
"ज्यू त ब्वनु च"..... !!!
जी... यही शीर्षक है इस काव्य संग्रह का, जो आप इस समय मेरे हाथों में देख रहें हैं...

भाई अनूप सिंह रावत की 52 बेहतरीन गढवाळी रचनाओं से सुसज्जित यह काव्य संग्रह मुझे कल ही प्राप्त हुआ है..
आपकी इस सप्रेम भेंट के लिए आपका शुक्रिया अदा करता हूँ भाई रावत जी... बहुत धन्यवाद मुझे इसके योग्य समझने के लिए.. 🙏
काव्य संग्रह में सम्मिलित रचनाओं के बारे में हिन्दी में लिख रहा हूँ...
ताकि मेरे सभी मित्र (हिन्दी भाषी भी) इस संग्रह के सार को समझ पाएं..
अभी परसों ही हमने उत्तराखंड राज्य की 19वीं जयंती मनाई है... पर राज्य का विकास अवरुद्ध सा है.. इसी चिंता को व्यक्त करती हुई शानदार रचनाएँ 'ब्वाला कब तक', 'अलग बात च', 'द बोला तुम सै' और विकास की आस की जग्वाळ (इंतजारी) करती कविता 'जग्वाळ' अपने राज्य के प्रति भाई अनूप की चिंता को अभिव्यक्त करते हैं !

अपनी संस्कृति, परम्पराओं, रीति-रिवाज़ एवम रहन सहन का परित्याग कर हम लोग पाश्चात्य प्रवाह में बहे चले जा रहें है..इस चिंता की बेहतरीन अभिव्यक्ति 'मेरी पछ्याँण', 'या दुन्या', 'कतगा बदल ग्या अब उत्तराखंड', 'चबोड़', और 'कतगा बदलिगे जमानु' कविताओं में संन्निहित है!
पलायन की पीड़ा को झेलती रचनाएँ 'जै का बाना', 'याद रख्यान', 'छेन्द मौळयार', और 'पहाड़ै ज्वन्नि अर पाणि' इस संग्रह की जान हैं..
यहाँ पर अपनी एक रचना भी मुझे याद आती है, उसका उल्लेख करने की अनूप भाई से क्षमा सहित इजाजत चाहता हूँ कि..
"उन्दरि का बाटा..
रौडि गैनी,
दौड़ि गैनी,
अर बौगि गैनी,
पहाडौ ज्वन्नी अर पाणि..!
एैंच पहाड़ मा रै गिनी त..
नंगी डांडा,
रीता भांडा,
अर
द्यवतोँ की धरति तैं लूटण वळा
वोट का मंगदरा.. !!"
© नरेश उनियाल

युवा कवि जी की श्रृंगार रस से परिपूर्ण रचनाएँ भी इस संग्रह में शामिल हैं... 'अजाण सि अन्वार', और 'घस्यारी' कविता इस रस का प्रतिनिधित्व कर रही हैं..
हमारी देवभूमि कई कुप्रथाओं का शिकार हो रही है, इस व्यथा पर भी अनूप भाई की कलम खूब चली है..'निरभै दारु', 'मनख्यात', 'दहेज-प्रथा' 'कन्या भ्रूण हत्या', जरा इनै सूणा' और 'दैंत ऐ गेनी देवभूमि मा' जैसी रचनाएँ देवभूमि के लिए कवि की चिंता को अभिव्यक्त करती हैं.. !!
जिनका बालपन इस पुण्यभूमि देवभूमि में व्यतीत हुआ हो, वह भला अपनी इस हरी-भरी वसुंधरा को कैसे भूल सकता है... अपनी इस टीस को कवि ने 'कै दिन मैना सालों बिटिन' कविता में व्यक्त किया है !
प्रवासी बेटे -बहू और पोती-पोतों को घर बुलाती बूढ़े माँ बाप की करुण पुकार ('ऐसु रूड़ी मा', 'रैबार', 'देवभूमि त्वै भट्याणी च' और 'धन्यवाद तेरु रूड़ी' रचनाओं में) हृदय को झकझोर जाती हैं !
व्यंग पर भी भाई अनूप ने अच्छी पकड़ बनाई है.. "स्वचणू छौं नेता बणि जौं", "उन त मि" और "बल मी मतदाता छौं" जैसी कविताएं आपको खूब हँसाती हैं !
पहाड़ ही पहाड़ को देखकर रो रहें हैं..पहाड़ों की यह दुर्दशा "पहाड़ मा" कविता में परिलक्षित होता है !
गढ़ गौरव आदरणीय श्री नरेंद्र सिंह नेगी दा का पहला सदाबहार गीत याद आ रहा है.. "सेरा बस्ग्याळ बौंण मा, ह्यूंद कुटण मा, रूड़ी पीसी बितैना, म्यार सदानि यनि दिन रैना!"...इसी (central idea) भाव पर आधारित रचना "पहाड़ा की नारी" बेहतरीन प्रस्तुति है..
"महाभारत कलजुग मा" रचना कहती है कि महाभारत के नकारात्मक पात्र आज भी हमारे बीच मौजूद हैं !
अन्य भी कई खूबसूरत रचनाएँ इस काव्य संग्रह की जान हैं... जिनका जिक्र यहाँ नहीं कर पा रहा हूँ..
आदरणीय मदन मोहन डुकलान जी की शानदार पुस्तक समीक्षा, श्री धीरेन्द्र रावत जी का शब्द संयोजन और मेरे बहुत प्रिय, भाई अतुल गुसाईं 'जाखी' जी का आवरण पृष्ठ सज्जा इस काव्य संग्रह को चार चाँद लगाते हैं...
पुस्तक को अवश्य खरीदें, पढ़ें और हमारी नई पीढ़ी को इसका अवलोकन अवश्य करायें ताकि हमारी अपनी गढवाळी बोली के संरक्षण हेतु युवा भाई अनूप रावत का यह भगीरथ प्रयास अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सके !
सादर धन्यवाद, नमस्कार !!
** नरेश उनियाल
(स. अ., हिन्दी)
पैठाणी, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड |
सोमवार, 11/11/2019

Thursday, July 11, 2019

केदारनाथ डायरी

तारीख थी 3 और दिन था बुधवार, मैं ऑफिस में था। करीब दोपहर 2:30 बजे मेरा फोन बजा और मैंने फोन उठाया तो देखा देवेंद्र सुंदरियाल भैजी का फोन था। मैंने कॉल ली और उधर से भैजी बोले केदारनाथ आ रहा है? बाबा जी का बुलावा है और मैंने आपको ही पहले पूछा है। मैंने उन्हें कहा रुको अभी थोड़ी देर में बताता हूँ। फिर मैंने ऑफिस में बात की और घर पर माँ को बोला कि मैं केदारनाथ जा हूँ। माँ बोली किसके साथ? तो मैंने फिर उन्हें बताया तो माँ बोली चले जा बुलावा आया है। फिर मैंने सुंदरियाल भैजी को फोन किया और बोला मैं आ रहा हूँ आपके साथ और पूछा कब जाना है? उधर से भैजी बोले तैयार हो जाओ 4:30 तक जाना है। फिर मैं ऑफिस से घर आ गया और जाने की तैयारी करने लगा। मैंने अपना सामान बैग में रखा और भैजी के फ़ोन का इंतजार करने लगा। 4:30 हो गए पर वो नहीं आये, फोन किया तो बोले कुछ काम आ गया है, जैसे ही आपके घर के पास आऊंगा तो फ़ोन कर दूंगा। 6:00 बजे फ़ोन आया कि घर के बाहर मुख्य सड़क पर आ जाओ। मैं काला पत्थर (इंदिरापुरम) पर खड़ा हो गया और गाड़ी आ गयी। गाड़ी में सुरेंद्र कुमार जी (जो कि गाड़ी चला रहे थे) और देवेंद्र सुंदरियाल भैजी (www.northfinders.com) थे। फिर मैं गाड़ी में बैठ गया और केदारनाथ की यात्रा शुरू हो गयी।

मुझे लगा था कि भैजी अपने परिवार के साथ जा रहे हैं, किन्तु वो अकेले ही जा रहे थे। मैंने पूछा तो बोले अचानक से ही प्लान बन गया और मुझे सबसे पहले आपकी ही याद आयी तो सोचा अकेले जाने से बढ़िया आपको साथ ले चलूँ। फिर बातें होने लगी और सुरेंद्र जी ने बताया कि वो राजस्थान से हैं और गाड़ी चलाने का काम करते हैं और देवेंद्र जी के साथ वो बहुत समय से काम कर रहे हैं। हिमाचल और उत्तराखंड में वो पर्यटकों को अक्सर ले जाते रहते हैं। गाड़ी चलाते हुए सुरेंद्र कुमार जी अपने जीवन के अनुभव भी बता रहे थे। जो कि बहुत ही रोमांचक था। 10:00 बजे हम लोग मुज्जफ्फरनगर में शिवा ढाबे में रुके और भोजन किया। फिर सफर आगे बढ़ता गया और हम लोग उत्तराखंड के बॉर्डर (रुड़की) पहुँच गए। जहाँ पर गाड़ी वालों को सवारियों के बारे में बताना पड़ता है, जिसके लिए हम लोगों ने पहले से ही आवेदन फॉर्म में जानकारी लिख रखी थी। पुलिस से वेरिफिकेशन करवा कर आगे बढ़ गए। हम लोगों को रात को ऋषिकेश में रुकना था। देवेंद्र भैजी ने सारी व्यवस्था पहले ही कर रखी थी। रात को करीब 12:00 बजे हम लोग ऋषिकेश (होटल कैलाश गंगा) पहुंचे। वहां पर देवेंद्र भैजी के जानकार पी. एस. नेगी जी (Chopta View Resort के संचालक) और उनके पुत्र पहले से पहुंच गए थे। हम लोगों को सुबह साथ ही जाना था। फिर हम लोग सो गए।
हम लोगों ने तय किया था कि सुबह 5:00 बजे आगे गंतव्य की ओर निकल जायेंगे। नेगी जी तो समय पर उठ कर तैयार हो गए पर हम लोग रात को देर से सोये तो थोड़ी देर से उठे। उनका फोन आया तो हम लोग उठे। उठकर देखा बाहर बारिश हो रही थी। फिर हम लोग तैयार होने लगे। करीब 6:00 बजे हम लोगों का सफर ऋषिकेश से आगे के लिए शुरू हो गया। आगे से नेगी जी अपनी गाड़ी में चल पड़े और उनके पीछे हम लोग। बारिश लगातार हो रही थी। जिससे सफर और भी सुहावना हो गया था। हम लोग फिर ब्यासी पर रुके और चाय पी, फिर आगे की ओर बढ़ चले। सड़क पर ज्यादा ट्रैफिक नहीं था और अब चारधाम जाने वाली सड़क (ऑलवेदर रोड) भी अच्छी बन गई है। काम अभी चल ही रहा है किंतु अब सड़क पहले से बेहतर बन गयी है और उम्मीद है कि जल्द ही पूरा काम हो जाने पर चारधाम वाले श्रद्धालुओं का सफर और भी अच्छा हो जायेगा।
गंगा किनारे चलते-चलते देवप्रयाग आ गया जहाँ पर अलकनंदा और भागीरथी नदी का संगम है। यहां से ही यह नदी गंगा नाम से जानी जाती है। जहां से फिर अलकनंदा नदी के किनारे-किनारे सड़क जा रही है। श्रीनगर (गढ़वाल) होते हुए हम लोग रुद्रप्रयाग पहुंचे। जहाँ पर वरिष्ठ पत्रकार बीरेंद्र सुंदरियाल जी से मिले और फिर उनके साथ रुद्रप्रयाग के जिला अधिकारी (डी.एम.) श्री मंगेश घिल्डियाल जी से मिलने जा पहुंचे। उनके साथ हमारे क्षेत्र के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल गुजडूगढ़ी को विकसित करने हेतु वार्ता करनी थी। क्योंकि जिला अधिकारी घिल्डियाल जी भी उसी क्षेत्र से हैं। किन्तु वो जिले के समस्त अधिकारियों की माह की समीक्षा बैठक में थे। पता चला की बैठक 5:00 बजे तक खत्म होगी। उस समय 12:30 बज रहे थे। हम लोगों ने सोचा कि गंतव्य की ओर चल पड़ते हैं। फिर किसी ओर समय डी.एम. जी से मिल लेंगे। नेगी जी बोल रहे थे कि आज उनके रिसोर्ट (मस्तूरा) में चलो। किन्तु हमने कहा कि आज हम लोग गुप्तकाशी जा रहे हैं। कल वहां से केदारनाथ जायेंगे और वापस आकर आपके यहाँ आएंगे। फिर रुद्रप्रयाग से हम का गुप्तकाशी के लिए चले गए और नेगी जी अपने घर/रिसोर्ट की ओर निकल पड़े।
रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी और अलकनंदा नदी का संगम है और केदारनाथ जाने वाली सड़क मंदाकिनी नदी के किनारे-किनारे जाती है। तिलबाड़ा-अगस्त्यमुनि-चंद्रपुरी-भीरी-कुंड होते हुए हम लोग 4:15 बजे गुप्तकाशी पहुंचे। जहाँ पर होटल ‘हॉलीडेज हिमालयन’ में हम लोगों को रात्रि विश्राम के लिए रुकना था। हम लोग गाड़ी से उतरे ही थे कि अचानक से मेरी मुलाकात श्री प्रदीप बिष्ट जी से हुई। उन्होंने दूर से हमें देख लिया था और सामने आये। बोले मुझे लग रहा था कि रावत जी यहाँ कहाँ से आ गए! बिष्ट जी गुप्तकाशी के एक प्राइवेट स्कूल में अध्यापक हैं। हम दोनों ने बी. एड. एक साथ ही किया था और हम दोनों एक ही साथ पी.जी. में रहते थे। फिर वो बोले कि कुछ काम से बैंक जा रहा हूँ थोड़ी देर में मिलता हूँ। मैंने भी कहा कि मैं भी तब तक फ्रेश हो जाता हूँ। हम लोग होटल के अपने कमरे में गए और हाथ मुँह धो कर फ्रेश हो गए। साथ में तब तक चाय भी आ गयी। 1 घंटे बात बिष्ट जी आये। देवेंद्र भैजी और सुरेंद्र कुमार जी बोले वो थोड़ी देर आराम करेंगे। आप घूम कर आ जाओ और मैं उनके साथ गुप्तकाशी बाजार घूमने चला गया। उन्होंने अपना स्कूल दिखाया जो कि सड़क से थोड़ा सा नीचे है। फिर बातचीत करते हुए हम लोग बाजार में टहलने लग गए। 1 घंटे बाद जब वापस आ रहे थे तो देवेंद्र भैजी और सुरेंद्र जी भी मार्केट में मिल गए। बोले कल यात्रा के लिए जरुरी सामान ले लेते हैं। बिष्ट जी फिर अपने स्कूल में चले गए, क्योंकि उनको बच्चों को एक ट्यूशन देना था। हम लोगों ने फिर बाजार से छाता और जरुरी सामान खरीद लिया।
थोड़ी देर बाजार में घूमने के बाद हम लोग वापस होटल आ गए। होटल में रेस्टोरेंट नहीं था तो पास के ही एक रेस्टोरेंट से खाना पैक करवा कर ले आये। रात हो चुकी थी और हम लोगों को सुबह बाबा केदार के दर्शन के लिए भी जाना था तो हम लोग खाना खाकर करीब 10:00 बजे सो गए। सुबह 7:00 बजे उठे, हमने चाय मंगवाई और चाय पी कर फिर तैयारी करने लगे। तैयार होकर होटल से निकले और पास के ही एक रेस्टोरेंट में हमने नाश्ता किया और फिर सोनप्रयाग के लिए चल पड़े।
फाटा के आस-पास बहुत से हेलिपैड बने हुए हैं। जहाँ से लोग हेलीकॉप्टर से केदारनाथ जा सकते हैं। किंतु हम लोगों ने पैदल यात्रा करने का पहले से ही सोच रखा था। नारायणकोटी-फाटा-सीतापुर होते हुए करीब 10:00 बजे हम लोग सोनप्रयाग पहुँच गए। वहां से आगे बाहर की गाड़ियों को नहीं जाने देते हैं। तो हमारे उस्ताद जी वहां पर हमें छोड़कर सीतापुर चले गए। यहाँ से केदारनाथ का सफर अब हम दोनों को करना था। सबसे पहले हमने सोनप्रयाग में अपना बायो-मैट्रिक पंजीकरण करवाया। जो कि केदारनाथ यात्रा के लिए आवश्यक है। जिसके बिना यात्रा नहीं कर सकते हैं। पंजीकरण के बाद हम लोग लोकल टैक्सी में बैठ गए। टैक्सी से हम लोग गौरीकुंड पहुँच गए। सड़क वहीं तक जाती है और वहां से आगे का सफर हम लोगों को पैदल चलकर करना था।
करीब 11:30 बजे हम लोग बाबा केदार के दर्शन के लिए गौरीकुंड से पैदल चल पड़े। गौरीकुंड से केदारनाथ तक 16 किमी का पैदल रास्ता है। रास्ते पर बहुत से श्रद्धालु थे। कोई दर्शन करके वापस आ रहा था तो कोई जा रहा था। शुरू में रास्ता हल्की चढ़ाई वाला था। हम लोग चलने लगे. 2 किमी चलने के बाद हम लोग छोड़ी पर रुके और मैगी खायी और चाय पी। थोड़ी दे रुकने के बाद हम लोग फिर चलने लगे। देवेंद्र भाई थोड़ा धीरे-धीरे चल रहे थे। पता नहीं क्यों उनसे ठीक से चला नहीं जा रहा था। तो हम लोग धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। हल्की- हल्की बारिश होने लग गई थी। हम लोग छाता ओढ़कर चलने लगे। जंगलचट्टी पहुंच कर हम लोग रुक गए और फिर वहां पर हमने खाना खाया। वहां मोबाइल नेटवर्क नहीं आ रहा था किंतु वहां पर सरकार द्वारा फ्री वाई-फाई की सुबिधा दी गयी। जिसे प्रयोग कर हमने भी अपने-अपने घर पर यात्रा जानकारी दी। थोड़ी देर रुकने के बाद हम फिर से आगे बढ़ने लगे।
धीरे-धीरे हम लोग भीमबली पहुंचे। वहां पर रूककर हमने फिर से हल्का-फुल्का खाना खाया और चाय पी। बारिश अब भी हो रही थी। फिर हम लोग आगे बढ़ गए। भीमबली से आगे अब नया रास्ता बना है, जिसे 2013 की आपदा के बाद बनाया गया है। क्योंकि पुराना रास्ता पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था। यह रास्ता थोड़ा चढ़ाई वाला है। तो हम लोग धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। भीमबली में पुल पार करते हुए एक पंडित जी मिले, जो कि खाटली-साबली पट्टी के पुरोहित हैं। जगह-जगह पर आराम करने के लिए और बारिश से बचने के लिए सरकार द्वारा शेल्टर बनाये गए हैं। तो हम लोग थोड़ी-थोड़ी देर उन पर रूककर चल रहे थे।
बहुत से श्रद्धालु हेलीकॉप्टर से भी केदारनाथ जा रहे थे. बहुत से लोग घोड़ों पर तो कुछ लोग पालकी और पिट्ठू में बाबा केदार के दर्शन लिए जा रहे थे तो बहुत से वापस आ रहे थे। राजकोट गुजरात से आये एक परिवार के साथ भी बात हुई. जिन्होंने बताया कि वो लोग 3 धामों की यात्रा कर चुके हैं और आज सीतापुर रुकेंगे और बद्रीनाथ जायेंगे।
चढ़ते-चढ़ते हम लोग छोटी लिंचोली पहुंचे। रास्ते में बहुत से लोगों से बातचीत होती रही। नैनबाग (टिहरी) से आया एक परिवार भी हम लोगों के साथ-साथ ही चल रहा था। उनके साथ बातचीत करते हुए हम लोग आगे बढ़ रहे थे। फिर बड़ी लिंचोली आया। वहां पर हम लोग चाय पीने के लिए रुक गए। वो लोग चले गए, क्योंकि उनके घर के बुजुर्ग और बच्चे घोड़ों पर आगे चले गए थे। फिर कुछ देर आराम करने के बाद हम लोग आगे चल पड़े। हम लोग केदारनाथ के बेस कैम्प के पास पहुंच गए। वहां पर चाय पीने के लिए रुके तो वहां पर फिर से टिहरी से आया पूरा परिवार हमें मिल गया। वो लोग भी चाय पीने के लिए वहां पर रुके हुए थे। उनके दोनों छोटे बच्चे सो गए थे। शाम ढल रही थी। बातचीत करते-करते अँधेरा हो गया। उस परिवार ने वहीं पर रुकने का निर्णय कर लिया। हम लोग भी पहले वहीं पर रुकने की सोच रहे थे किंतु फिर सोचा मंदिर तक पहुंच ही जाते हैं। वहां से जो कि मात्र 1.50 किमी रह गया था।
हम जैसे ही बाहर आये तो बाहर बहुत ठंडी हवा चल रही थी। थोड़ा आगे बढे तो लाउडस्पीकर पर मंत्रोच्चार की आवाज सुनाई दे रही थी। जिससे शरीर में जोश सा आ गया और हम लोग मंदिर की और चलने लगे। केदार घाटी में ठण्ड नीचे के मुकाबले काफी ज्यादा थी। हम लोग रात को करीब 9:30 बजे केदारनाथ के मुख्य मंदिर में पहुंच गए। मंदिर के कपाट बंद हो चुके थे। बहुत सारे श्रद्धालु मंदिर के आस-पास थे और लगभग सभी फ़ोन से अपने घरवालों को मंदिर के दर्शन करवा रहे थे। रात के अंधरे में लाइट की रोशनी में मंदिर का नजारा देखने लायक था। मन को बहुत शांति मिल रही थी। हमने बाबा केदार को प्रणाम किया और फिर अपने-अपने घर पर वीडियो कॉल के जरिये बात की। घर वालों को भी रात को बाबा केदार का अद्भुत नजारा दिखाया।
हम को रात को 'पाटलिपुत्र होटल' में रुकना था। एक पंडित जी ने होटल का रास्ता बताया। फिर हम लोग होटल पहुंच गए। होटल पहुंच कर हम लोग अपने कमरे में गए और हाथ-पैर धो कर बैठे थे कि होटल के स्टाफ का एक लड़का खाना लेकर कमरे में ही आ गया। खाना और गर्म पानी दे गया। फिर हम लोगों ने खाना खाया। तब तक करीब 11:00 बजे गए थे। फिर हम दोनों सोने लग गए। कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला, क्योंकि 16 किमी पैदल चल कर आये थे। मेरी नींद खुली तो 5:00 बज रहे थे। मैं उठकर बाथरूम गया तो पानी बहुत ही ठंडा आ रहा था। गीजर भी नहीं चल रहा था। बाहर जाकर देखा तो होटल का स्टाफ भी नहीं उठा था।
फिर मैंने ठन्डे पानी से ही मुंह धोया। तो हाथ और मुंह सुन्न हो गए। थोड़ी देर बाद मैं फिर से बिस्तर के अंदर घुस गया और फोन चलाने लग गया। देवेंद्र भाई उठे और बोले कि उनको रात को ठीक से नींद नहीं आयी, थोड़ी देर और सोयेंगे। उनको मैंने फिर 7:00 बजे जगाया। रात को जहां बादल छाए हुए थे और हल्की-हल्की बारिश हो रही थी, वहीं सुबह मौसम एकदम साफ था और धूप खिली हुई थी। अब तक होटल वाले भी उठ गए थे और उनको बताया तो उन्होंने बाहर से गीजर का मेन स्विच चालू किया। फिर जाकर गीजर चला। चाय आयी और चाय पीने के बाद मैं नहाने चला गया। फिर मेरे बाद देवेंद्र भैजी ने नहाया और दोनों फिर बाबा केदार के दर्शन के लिए मंदिर गए।
सुनहरी धूप में बाबा केदार का मंदिर चमक रहा था। बहुत से श्रद्धालु मंदिर के बाहर दर्शन के लिए खड़े थे। आज ज्यादा भीड़ नहीं थी। क्योंकि समय भी सुबह का था और जुलाई में वैसे भी भीड़ कम हो जाती है। बाबा केदार के अच्छे से दर्शन करने के लिए यही सबसे बढ़िया समय होता है। क्योंकि यात्रा के प्रथम चरण में श्रद्धालुओं की संख्या बहुत ज्यादा होती है।
हम ने मंदिर के पास की एक दुकान से प्रसाद लिए और एक पंडित जी को पूजा के लिए बोला। फिर हम लोग मंदिर में गए। जहाँ पर करीब 40-50 लोग पंक्ति में खड़े थे। फिर हमें पुरोहित जी मिल गए, जो हमें VIP एंट्री से अंदर ले गए और पूजा शुरू की। करीब 8-10 मिनट तक हम लोगों ने पूजा की और बाबा के केदार के दर्शन कर आशीर्वाद लिया। बाबा केदार के दर्शन करने के बाद मैंने घर पर वीडियो कॉल किया और घरवालों को फिर से मंदिर लाइव दिखाया। सुबह का नजारा जो कि देखने लायक था। फिर हम लोग पुरोहित जी के घर गए जो कि मंदिर के समीप ही था। उन्होंने चाय पिलाई और हम लोगों का रिकॉर्ड अपनी डायरी में लिखा। फिर हम लोग भैरब मंदिर की ओर चल पड़े। जो कि वहां से करीब 1 किमी की दूरी पर है। हम लोग मंदिर गए और बाबा भैरब नाथ जी के दर्शन किये।
मंदिर के ऊपर बुग्याल है। फिर हम दोनों वहां पर गए और प्रकृति की अनुपम छटा का आनंद लेने लगे। भैरव मंदिर थोड़ी ऊंचाई पर है, वहां से पूरी केदारघाटी का सुंदर नजारा दिखता है। 1 घंटे तक वहां पर रुके। फिर हम नीचे आ गए। पूरी केदारघाटी में पुनर्निर्माण कार्य अभी भी चल रहा है। मंदिर के ऊपर मंदाकिनी के किनारे सुरक्षा दीवार बनायी जा रही है। कुछ हिस्सा बन चुका है, उस पर आपदा की कहानी चित्रों के माध्यम से दर्शायी गयी है। साथ ही भगवान शिव के सभी अवतारों को सही दर्शाया गया है। उसके बाद हम लोग फिर मंदिर के पास आ गए। कुछ देर कुछ फोटो खींची, फिर होटल चले गए। वहां पर नाश्ता तैयार था। नाश्ता किया और होटल से विदा ली।
अब तक दोपहर के करीब 12:15 बज चुके थे। हम ने गौरीकुंड के लिए उतरना शुरू किया। मौसम भी बदलने लग गया था। सुबह धूप थी और अब आसमान में बादल छा गए थे। कुछ देर पहले जो पहाड़ियां दिख रहीं थी वो कोहरे की ओढ़ में आ गयीं थी। पूरी केदारघाटी में कोहरा लग गया था। हेलीकाप्टर सेवा मौसम की वजह से बंद हो गयी थी। हम लोग अब वापस आने लगे। 2 किमी आये थे कि बारिश शुरू हो गयी। शुरू में बारिश हल्की-हल्की हो रही थी पर बड़ी लिंचोली के पास से बहुत तेज हो गयी थी। देवेंद्र भैजी के पैरों में तेज दर्द हो रहा था और अब मेरे पैरों में भी हल्का-हल्का दर्द हो रहा था। तो हम ने वहां पर स्वास्थ्य शिविर (सरकार द्वारा संचालित) से दवाई ली। फिर देवेंद्र भेजी ने दवाई ली तो उनको आराम मिला और वो चलने लगे। तेज बारिश में बहुत से लोग रुक गए थे, किन्तु हम लोग आगे बढ़ते रहे। हम वापस आते समय भीमबली पर रुके। वहां पर हल्का नाश्ता किया और चाय पी, बारिश अभी भी हो रही थी।
भीमबली पर कुछ देर रुकने के बाद हमने फिर से गौरीकुंड के लिए उतरना शुरू किया। बारिश भी जारी थी। धीरे-धीरे आगे बढ़ते रहे। फिर जंगलचट्टी पहुँच गए। वहां पर कुछ देर रुके और फिर आगे बढ़ने लगे। जंगलचट्टी से आगे फिर हम लोग छौड़ी पर रुके, वहां पर चाय पी। वहां से गौरीकुंड 2.50 किमी दूर था। कुछ देर आराम करने के बाद हम लोग गौरीकुंड के रास्ते पर आगे बढ़ने लगे। धीरे-धीरे चलने के बाद लगभग 6:30 बजे हम लोग गौरीकुंड पहुंच गए। वहां पर काफी श्रद्धालु खड़े थे, जो कि सोनप्रयाग तक जाने के लिए टैक्सी का इंतजार कर रहे थे। हम लोग भी इंतजार करने लगे, पर जैसी ही कोई टैक्सी आती वो झठ से भर जाती और शाम ढलने वाली थी जिसकी वजह से गाड़ी नहीं आ रही थी। लगभग 1 घंटे तक इंतजार करने के बाद हम ने अपने उस्ताद जी को फोन किया कि वो पुलिस वालों से निवेदन करके गाड़ी लेकर आ जाएं। कुछ देर बाद उनका फ़ोन आया कि उन्होंने पुलिस से बात की तो उन्होंने जाने की अनुमति दे दी है। फिर 10 मिनट में वो गौरीकुंड पहुँच गए। फिर हम लोग गाड़ी में बैठे और सोनप्रयाग की ओर बढ़ गए।
हम लोगों को उस दिन रात्रि विश्राम के लिए सीतापुर रुकना था। हम लोग 8 बजे के करीब होटल जे. पी. जी. पैलेस पहुंचे। अपने कमरे के बारे में जानकारी ली और फिर कमरे में पहुँच गए। बहुत थके हुए थे तो हम ने होटल स्टाफ से खाना कमरे में ही लाने को बोल दिया था। केदारनाथ से गौरीकुंड आते समय बारिश हो रही थी, जिस कारण हम लोग थोड़ा बहुत भीग भी गए थे। फ्रेस होकर फिर कपडे बदले।
फिर मैंने ऊखीमठ में रहने वाली अध्यापिका/कवयित्री कविता भट्ट दीदी जी को फ़ोन किया, क्योंकि मैंने उन्हें कहा था कि वापस जाते हुए उनसे मिलकर जाऊंगा। तो उन्हें बताया कि कल दिन में मस्तूरा/चोपता जाते हुए आपसे मुलाकात करूँगा। फिर अपने घर पर भी फोन पर जानकारी दी कि हम लोग बाबा केदार के दर्शन करके वापस आ चुके हैं। क्योंकि केदारनाथ से गौरीकुंड वाले रास्ते पर मोबाइल नेटवर्क न होने की वजह से किसी से भी सम्पर्क नहीं हो पाया था।
लगभग 9:30 बजे खाना आ गया। फिर हम लोगों ने खाना खाया और कुछ देर बातचीत करने के बाद सो गए। बहुत थके हुए थे तो नींद भी झठ से आ गई। सुबह उठे तो 7:00 बज चुके थे। हमारे उस्ताद जी सुरेंद्र जी ने हमें जगाया था। फिर हम तीनों एक-एक करके नहाने गए और तैयार हो गए। पी. एस. नेगी जी का फोन आया कि कब तक मस्तूरा आ रहे हो? तो उनको बताया कि दोपहर तक पहुंच जायेगे। कुछ देर उखीमठ में रुकना है। फिर होटल से हम लोग निकल पड़े। सीतापुर से आगे फाटा के पास हम रुके और एक छोटे से होटल पर हम ने चाय पी। फिर कुछ देर रुकने के बाद हम लोग आगे गुप्तकाशी की और चल पड़े। गुप्तकाशी पर रुके और वहां पर हमने नाश्ता किया। कुछ देर रुकने के बाद हम लोग उखीमठ की और चल पड़े।
गुप्तकाशी से कुंड पहुंचे और फिर वहां से उखीमठ के लिए सड़क जाती है। उखीमठ पहुंचकर मैंने श्रीमती कविता भट्ट दीदी जी को फ़ोन किया कि कहाँ पर आना है? तो उन्होंने अपने घर के पास का एड्रेस दिया। फिर हम लोग वहां पर पहुंचे। वहां पर उनके पति श्री भट्ट जी हमें लेने के लिए आये। देवेंद्र भैजी और सुरेंद्र कुमार जी गाड़ी में ही रुके गए। बोले कि हम लोग यहीं पर आराम करते हैं, आप मिलकर आ जाओ। क्योंकि देवेंद्र भैजी को चलने में कुछ दिक्कत सी हो रही थी और दीदी जी का घर सड़क से थोड़ा सा नीचे उतरकर था। फिर मैं कविता भट्ट दीदी जी के घर पहुंचा। वहां पर उनके ससुरजी और सासु जी थी थे। उनको प्रणाम किया। फिर दीदी जी और उनकी बेटी भी आयी और उनसे भी मुलाकात हुई। फिर दीदी जी चाय और पकोड़े लेकर आयी। फिर बातचीत शुरू हो गई। मैं पहली बार उनसे मिला था। किंतु ऐसा लग रहा था कि मैं पहले भी उनसे मिल चुका हूँ। मैंने दीदी जी को अपनी पहली गढ़वाली पुस्तक 'ज्यू त ब्वनु च' भेंट स्वरुप दी। लगभग आधा घंटा वहां पर रुकने के बाद मैंने दीदी जी और परिवार ये कहते हुए विदा ली कि फिर कभी आप लोगों से मिलने जरूर आऊंगा। वो तो कह रहे थे खाना खा कर जाना। पर हम लोगों को मस्तूरा में नेगी जी के रिसोर्ट में जाना था। फिर उनके पतिदेव मुझे सड़क तक छोड़ने आये।
फिर हम लोग उखीमठ से आगे मस्तूरा के लिए चल पड़े। लगभग 8 किमी के बाद मस्तूरा आ गया। वहां पर नेगी जी हम लोगों का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। नेगी जी के रेसॉर्ट को देखकर बहुत अच्छा लगा। उन्होंने अभी 15 मई 2019 से ही इसे शुरू किया है। कुछ देर में चाय आ गई और हम सब लोगों ने चाय पी और फिर वो हम लोगों को अपना रेसॉर्ट दिखाने लगे। बाहर से रेसॉर्ट जितना अच्छा लग रहा था अंदर से उसके मुकाबले और भी ज्यादा अच्छा था। पहाड़ में इतने अच्छे होटल बहुत ही कम होते हैं। फिर उन्होंने बताया कि इस जगह से प्रसिद्ध देवरियाताल मात्र 3.50 किमी है। यहाँ पर 1 किमी की चढ़ाई वाले रास्ते से सारी गाँव तक जा सकते हैं। यदि सड़क से जायंगे तो करीब 20 किमी घूमकर सारी गाँव तक जा सकते हैं। वहां से 2.50 किमी की दूरी पर देवरियाताल है। जहाँ पर बहुत से पर्यटक आते रहते हैं।
मस्तूरा से चोपता-तुंगनाथ-चंद्रशिला का नजारा साफ दिखाई देता है। फिर नेगी जी ने सब जानकारी हमें दी। देवेंद्र भैजी जो कि नॉर्थ फाइंडर्स (www.northfinders.com) के संचालक हैं ने नेगी जी को बोला कि वो आगे से यहाँ पर पर्यटकों को जरूर भेजेंगे और इस जगह को प्रचारित करेंगे। क्योंकि हमारा प्रयास है कि जन-जन तक उत्तराखंड के नए पर्यटक स्थलों के बारे में बताएं। फिर रेसॉर्ट की छत से प्रकृति का सुंदर नजारा देखा। जो कि बहुत ही आकर्षक था। तब तक दोपहर का खाना तैयार हो गया था। नेगी जी के स्टाफ ने टेबल पर खाना लगा दिया था। हमें खाना खाने के लिए बुलाया। फिर हम सभी ने एक साथ बैठकर खाना खाया। बहुत ही स्वादिष्ट खाना था। खाना खाने के बाद फिर हम लोग बातचीत करने लगे। फिर चाय आ गई। चाय पीने के बाद हम लोगों ने नेगी जी से विदा ली और पौड़ी के लिए निकल पड़े।
कुंड-अगस्त्यमुनि-रुद्रप्रयाग-श्रीनगर होते हुए हम लोग लगभग 7:45 बजे पौड़ी पहुंच गए। वहां पर होटल उमेश में रुके। रात को लगभग 9:00 बजे खाना खाया। फिर 10:00 बजे तक सो गए। सुबह उठे तो बाहर बारिश हो रही थी। हम लोगों को आज खिर्सू जाना था और फिर वहां से वापस दिल्ली। 7:00 बजे नहा धोकर तैयार हुए और होटल से 8:00 बजे खिर्सू के लिए निकल पड़े। जो कि पौड़ी से लगभग 18 किमी दूर है। करीब 9:00 बजे हम लोग खिर्सू पहुंचे। बारिश जो कि पहले रुक गई थी फिर से हल्की-हल्की होने लगी। खिर्सू बहुत ही अच्छी जगह है। हम सब पहली बार वहाँ पर गए थे। GMVN के होटल में जाकर हमने वहां सी जानकारी ली और फिर हम वापस बाजार में आ गए। वहां पर नास्ता किया। फिर हम लोग दिल्ली के लिए रवाना हो गए। चोपट्टा से हमने बुरांश और नींबू का जूस खरीदा जो कि शुद्ध और जैविक है। फिर हम लोग सतपुली होते हुए गुमखाल पहुंचे। वहां पर रुककर दोपहर का भोजन किया। कुछ देर रुकने के बाद दिल्ली के लिए निकल पड़े। दुगड्डा-कोटद्वार-नजीबाबाद-बिजनौर-मेरठ-मुरादनगर होते हुए लगभग 6:00 बजे हम लोग इंदिरापुरम पहुंचे। जहां पर मैं निवास करता हूँ। मुझे घर पर छोड़कर देवेंद्र भैजी और सुरेंद्र कुमार जी दिल्ली अपने घर के लिए निकल पड़े। इस तरह से 5 दिन का मेरा सुहाना सा सफर पूर्ण हुआ। यह सफर मुझे हमेशा याद रहेगा। जय बाबा केदारनाथ...

- अनूप सिंह रावत
11 जुलाई 2019