Thursday, December 21, 2017

उन त मी


उन त मी
भौत शरीफ़ छौं
पर कभि - कभार
भौं तड़तड़ी कैरि
बौंला भी बिटै देंदु।।

उन त मी
दारू नी पेंदु
पर कभि - कभार
ब्यौ बरात्यों म फ्री की
खूब घतोली देंदु।।

उन त मी
खांदू पेंदु नि छौं
पर कभि - कभार
जब दावत मा जांदू
त छकै खै जांदू।।

उन त मी
नौन्यु देखि की
भारी सरमांदु छौं
पर कभि फेसबुक मा
जरासी चैट कै देंदु।।

उन त मी
गढ़वळि ही बोलदु
पर कभि - कभार
हिंदी अर अंग्रेजी मा
खूब बचै देंदु।।

उन त मी
राजनीति नि जणदु
पर कभि - कभार
नेतों का जनि बात
लोगों समणी बोलि देंदु।।

..... कविता जारी है .....

© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक: 21 दिसम्बर 2017 (बृहस्पतिवार)
ग्वीन, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)

Thursday, December 7, 2017

कागज पर कलम

कागज़ पर कलम कभि, मी भी घिसि देन्दु।
देखुदु छु जु कुछ, वै मी कभि उकेरी देन्दु।।

सदनी प्यार प्रेम लिखणा की कोशिश करुदु।
पर क्या कन्न, ये कलजुग मा वास करुदु,
इलै कभि-2 ईंट कु जबाब ढुंगल दे देन्दु।।

कभि डांडा कांठो का बारा मा लेखदु।
कभि-2 पहाड़ का मनिख्युं का बार मा।
त यख का रीति रिवाज भी लेखि देन्दु।।

कभि क्वी आंछिरी सी बांद देखि,
रंग-रूप, रंगिलु मिजाज वींकु देखि।
मायादार बणी गीत माया का लेखि देन्दु।।

नेताओं का खोखला वादों पर लेखुदु।
जनता थै कन्ना रिंगोणा अपड़ा जाल मा।
तौंकि भ्रष्टाचार की किताब खोलि देन्दु।।

दाना-बुढ़यों दींणा आशीर्वाद लेखुदु।
त ज्वानु अर छ्वटों कु प्यार लेखुदु।
कभि नारी कु गुणगान भी लेखि देन्दु।।

कलम ब्वनि तू मी इनि घिसणी रै।
अनूप आखर से आखर गठ्याणी रै।
कुछ होरि न त इनि मी भी कै देन्दु।।

© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाज़ियाबाद (उत्तर प्रदेश)
www.iamrawatji.blogspot.in

Friday, November 24, 2017

ब्वाला कब तक ?


ब्वाला कब तक ?

वादा करयूं छौ मुलुक कु विकास क़ु,
जग्वाल कारली जनता, ब्वाला कब तक?

रंगिला- पिंगला, सुपिन्यां देख्यां जु,
सुपिन्या साकार ह्वाला, ब्वाला कब तक?

जोड़- जुगन्त कैरि बहुमत मिलिगे,
जनता कु बेड़ा पार, ब्वाला कब तक?

योज़ना बणी च ज्वा कागजों मा,
ज़मीन पर पूरी होळी, ब्वाला कब तक ?

डिग्री-डिप्लोमा सब कैरी याळ,
रोजगार मिळालु, ब्वाला कब तक?

फूलमाला पैनी रिबन कटे उद्घाटन ह्वेगे,
काम-काज होळु पूरू, ब्वाला कब तक?

खैरि खाँदा-खाँदा, गरीब मिटे गे,
पर ग़रीबी मिटेली, ब्वाला कब तक?

रूड़ी सी ह्वेगे ज़िंदगी किसान की,
मौल्यार आळु जीवन मा, ब्वाला कब तक?

देहरादून बल ख़ूब हूणी च बैठक,
विधायक जी पहाड़ आला, ब्वाला कब तक?

जाति-धर्म मा बांटी याळ जनता,
राजनीति इनि हूणी रैली, ब्वाला कब तक?

© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक: 24-11-2017 (शुक्रवार)

Thursday, November 16, 2017

चकबंदी - एक उम्मीद


उत्तर भारत के हिमालयी राज्यों में से एक उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है. यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता जितनी खूबसूरत है, ठीक यहाँ का जीवन उतना ही कठिन है. क्योंकि यहाँ की भौगोलिक स्थिति के कारण यहाँ जीवन यापन आसान नहीं है. उत्तराखंड राज्य 9 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आया था, जिसकी माँग बहुत समय से हो रही थी. इससे पूर्व यह पर्वतीय क्षेत्र उत्तर प्रदेश राज्य का एक अंग था. यहाँ के निवासियों को उम्मीद थी कि अलग राज्य बनने से से यहाँ का विकास होगा और लोगों के जीवन में खुशियों की बौछार होगी. किंतु राज्य बनने के 17 वर्षों के बाद भी, अभी भी स्थिति करीब-२ वैसी ही बनी हुई है. जिसका कारण अभी तक की सरकारों का उदासीन रवैया रहा है. यहाँ की सरकारें राज्य को ऊर्जा प्रदेश, पर्यटन प्रदेश बनाने पर ही लगे हुए हैं. कोई भी यहाँ के आजीविका के मुख्य स्रोत कृषि (किसानी) पर ध्यान नहीं दे रहा है. कभी कभार कोई नेता चुनाओं के मध्यनजर इसकी बात करता है और चकबंदी की बातें करके वोट बटोर लेता है किंतु चुनाव उपरांत चकबंदी को भूल जाते हैं.

उत्तराखंड में आजीविका का मुख्य स्रोत प्रारम्भ से ही खेतीबाड़ी रहा है. इसके अलावा सेना और अर्धसैनिक बलों में भी यहाँ के युवाओं को रोजगार के साथ-२ देश की सेवा करने का मौका रहता है. किंतु समय के साथ-२ कृषि क्षेत्र में यहाँ के लोगों का विश्वास कम होता जा रहा है क्योंकि जंगली जानवर खेती को बहुत नुकसान पंहुचा रहें हैं. जिससे लोग अब खेती से लगातार दूर हो रहे हैं. पारम्परिक खेती में होते नुकसान और सरकारी नौकरी में चयन न होने की स्तिथि में यहाँ से लोग लगातार पलायन कर रहे हैं. क्योकि जब लोगों के पास रोजगार का कोई साधन नहीं होता है तो उनको पलायन करने पर मजबूर होना पड़ता है. जिसमें यहाँ के लचर शिक्षा व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवाएं पूरा साथ दे रहीं हैं और पलायन करने पर मजबूर कर रही हैं. अब खेती को पुनः बचाने और लोगों के पारम्परिक रोजगार को बचाने का एकमात्र उपाय चकबंदी ही है. जिसकी मांग राज्य बनने से पूर्व से ही लगातार हो रही है.

उत्तराखंड राज्य का 86% हिस्सा पर्वतीय है और 65% जंगलों से ढका हुआ है. यहाँ पर खेती सीढ़ीदार खेतों पर होती है. यहाँ के खेत बिखरे हुए हैं और परिवारों के विभाजन से एक परिवार की खेती 10 से 20 जगहों पर हैं. जिससे खेती करने में ज्यादा श्रम और लागत आती है. खेती तब ही अच्छी हो सकती है जब खेत एक सामने हों और इसका एकमात्र उपाय चकबंदी है. एक जगह चक हो जाने से यहाँ श्रम भी बचेगा और लोग अपनी योजना के अनुसार खेती कर सकते हैं. यहाँ के खेत उपजाऊ तो हैं किंतु सही से भूमि बंदोबस्त न होने के कारण किसानों को बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.

अगर उत्तराखंड के पर्वतीय भू-भाग में चकबंदी की जाती है तो फिर यहाँ के किसान भी आधुनिक और वैज्ञानिक तरीकों से होने वाली खेती को आजमा सकते हैं और इसी भूमि पर अच्छी खेती कर सकते हैं. चकबंदी से खेती - बाड़ी में ही स्वरोजगार उत्पन्न हो सकता है. क्योंकि यहाँ की जमीन ही यहाँ का स्थाई रोजगार है. यहाँ के पारंपरिक रोजगार जो की बंद होने के कगार पर हैं उनको भी पुनः खड़ा किया जा सकता है. क्योंकि खेती से जुड़े बहुत रोजगार अब बंद हो रहे हैं, खेती में इस्तेमाल होने वाले औजारों का निर्माण करने वाले लुहार (शिल्पी) या फिर रिंगाल से वस्तुएं बनाने वाले "रुड्या" हों, इनका रोजगार पुनः शुरू हो सकता है. साथ ही यदि यहाँ से पलायन रुक जाता है तो कुटीर शिल्प, धातु शिल्प, ताम्र शिल्प, काष्ठ शिल्प, वस्त्र शिल्प, पशुपालन आदि से जुड़े लोगों को भी रोजगार मिल जायेगा, जो कि पलायन होने से लगातार गिरता जा रहा है. सरकारी योजनाओं के साथ यदि पारंपरिक रोजगार भी रहेगा तो यहाँ के लोगों का जीवन खुशहाल हो सकता है और पलायन और बेरोजगारी को रोका जा सकता है.

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में चकबंदी से खुशहाली आ सकती है. यदि यहाँ की सरकार यहाँ पर भूमि बंदोबस्त करती है तो हरित क्रांति को सच में उत्तराखंड के इस भू-भाग पर नया आयाम मिल सकता है. चकबंदी हो जाने से कृषि उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है. ग्रामीण क्षेत्र के लोग बहुत मेहनती होते हैं और उनको यहीं पर उनकी मेहनत का अच्छा परिणाम मिल सकता है. हर किसी परिवार का अपना चक हो जाने ये कृषि उत्पादन कई गुना बढ़ाया जा सकता है, खेती से ही यहाँ के प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाया जा सकता है. कृषि व्यवस्था को दुरुस्त करने, पलायन और बेरोजगारी को रोकने के लिए चकबंदी एक उम्मीद है.

गरीब क्रांति अभियान (उत्तराखंड) लगातार चकबंदी के प्रति लोगों को जागरूक कर रहा है और समस्त उत्तराखंड में चकबंदी जागर यात्रा और गोष्ठियों का आयोजन कर रहा है. यदि उत्तराखंड सरकार अपने स्तर पर लोगों में चकबंदी की जागरूकता और अनिवार्य चकबंदी करवाती है तो एक दिन उत्तराखंड जरूर कृषि के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ सकता है. चकबंदी से कृषि और बागवानी में कैसे आगे बढ़ा जा सकता है इसका उदहारण हमारा पडोसी राज्य हिमाचल प्रदेश है, जहाँ पर उत्तराखंड की ही तरह परिस्तिथि है. चकबंदी जो जाने से यहाँ के किसान भी जड़ी-बूटी, पुष्पोत्पादन, सुगंध पादन, मसाला उत्पादन की राह पर आगे बढ़ सकता है. एक सामने चक हो जाने से साथ ही लोग मौनपालन, पशुपालन, मत्स्यपालन, वानिकी आदि क्षेत्रों में भी रोजगार प्राप्त कर सकते हैं. चकबंदी यहाँ खुशहाली की उम्मीद नजर आती है. चकबंदी से स्वालंबन के धारणा को भी जीवित किया जा सकता है और पहाड़ एक बार फिर सम्पन्नता की राह पर निकल पड़ेगा। इसलिए आज के समय की मांग चकबंदी है, जिसके जरिए भूमि सुधार करके उत्तराखंड के पहाड़ी हिस्से में खुशहाली आएगी.

दिनांक: 16 नवम्बर 2017
अनूप सिंह रावत (चकबंदी समर्थक)
ग्राम व पो. ओ. ग्वीन मल्ला
विकासखंड - बीरोंखाल (खाटली)
जिला - पौड़ी गढ़वाल
उत्तराखंड – 246276
rawat28anu@gmail.com

Friday, October 13, 2017

भोळ


भोळ ..!!
कैन ब्वाळ, कैन बींग
कैन सूण, कैन द्याख
फिर भी मी,
भोळ का खातिर
जीणुं छौं...

आज थै छोड़ि की
भोळ का बाना
रंग - बिरंगा सुपिन्या
सजाण लग्युं छौं...

जु कुछ हथ मा च
वै थै बिसरि की
कनि दौड़ा-दौड़ि मा
दिन-रात लग्युं छौं..

मनखि मन भी
बडु अजीब ही च
अजाण भोळ का बाना
सुधि भटकुणु छौं...

जु ब्याळि हथ मा छायी
अगर आज भी राळु
त भोळ भी जरूर राळु
आज किलै छोडणु छौं...

अगर आज मा जीणु
सीखि जौंलू मी
त भोळ कु सुपिन्युं
साकार ह्वे जाळु...

जीणु-म्वरुणु त
आज भी च, भोळ भी
गर भेद मिटि जाळु त
पाणी जनु सदानी
बे रोक-टोक ब्वगुणु रौंळु।

© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक: १३ अक्टूबर २०१७ (शुक्रवार)

Friday, August 4, 2017

या दुनिया - अनूप सिंह रावत

*या दुनिया*

क्वी मेरु वैरी बण्यूं त,
क्वी मेरु यख यार च।
किलै कि या दुनिया,
जतगा निठुर, उतगा मायादार च।।

क्वी अगिन्या बढाणु मिथै,
त क्वी पिछनै ठिलाणु च।
क्वी खिंचणु च हाथ मेरु,
त क्वी खिंचणु सुलार च।।
किलै कि या दुनिया,
जतगा निठुर, उतगा मायादार च।।

क्वी मेरा दुःख मा रुणु,
त क्वी सुख देखि जळणु च।
क्वी अँधेरा बाटों उज्यालु कनु,
त क्वी बाती मा मनु फुहार च।।
किलै कि या दुनिया,
जतगा निठुर, उतगा मायादार च।।

क्वी फूलों का बाटा लिजाणु,
त क्वी कांडों का बाटा पिचगाणु च।
क्वी अपड़ा बांठा कु खिलाणु,
त क्वी हाथा कु गफ्फ़ा लुछणु तैयार च।।
किलै कि या दुनिया,
जतगा निठुर, उतगा मायादार च।।

क्वी मेरा कामों पर ताली बजाणु,
त क्वी बण्यूं मेरु चुगलखोर च।
क्वी मैं दगिड़ी हिटणु च,
त क्वी बाटू बदलणा कु तैयार च।।
किलै कि या दुनिया,
जतगा निठुर, उतगा मायादार च।।

क्वी टक्क लगै सुनणु च बात,
त क्वी जाणी बुझि नि सुनणु च।
क्वी कनु च मेरी भली-२ छ्वीं,
त क्वी मिलाणु द्वी मा चार च।।
किलै कि या दुनिया,
जतगा निठुर, उतगा मायादार च।।

© 04-08-2017 (शुक्रवार)
अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी (उत्तराखंड) http://iamrawatji.blogspot.in/

Tuesday, July 11, 2017

तू भी कतगा सेल्फी पोस्ट करदी


तू भी न
कतगा सेल्फ़ी
पोस्ट करदी
तेरी फोटू
देखण मा ही
बिजी रैन्दू
काम-काज
बिसरी जांदू
ब्याली ता
बॉस न भी
देखी द्याई
अर वार्निंग दे
कि या त काम
या त यू नेट
हे राम !!
अब क्या होलु
काम-काज भी
जरूरी च
अर तेरी फोटू
देखण भी..
तेरी फोटू
लाइक नि करलू
त तू नाराज
अर काम-काज
नि करलू त
बॉस नाराज
यू कन्नू जंजाल मा
अलिझे ग्यों मी!!

© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
ग्वीन, बीरोंखाल, पौड़ी (उत्तराखंड)

Wednesday, June 28, 2017

स्वीणु मा


कतगा दा
बोली त्वेकु
तिन स्वीणु मा
नि आणू..
अर जब
ऐ भी जांदी
त मिथे
तिन अपड़ी
मिठी-२ छुयों मा
नि अलझाणु..

ब्याली रात फिर
तेरी छुयों मा
खोयों रौं मी
मयाली बातों मा
अलिझे ग्यों मी
अर फतम !!
भंया पोडि ग्यों..

तू त बिचारि
टुप्प सियीं रै होलि
अर मी सरि रात
दर्द से म्वरुणु रौं
तेरा माया कु रोग
निरभै बिजी रौं.!!!

© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक: 28-06-2017 (बुधवार)

Thursday, April 6, 2017

पहाड़ मा


पहाड़ मा
पहाड़ ही
रूणा छन.
पलायन,
बेरोजगारी,
की मार देखि.
सबसे ज्यादा
जू कर्ता छि,
जू धर्ता छि,
तौं नेतों,
अफसरों कु,
व्यवहार देखि..

सुखदा पाणी का,
मंगर्युं देखि.
परदेश बगदा,
मनिख्युं देखि.
शिक्षा की,
गुणवत्ता देखि.
हस्पतालों का,
खस्ता हाल देखि,
उजिडीदी कुड़ी,
बांजी पुंगडी देखि..

बंद हुंदा,
बाटो देखि.
परदेश जांदी,
सदिक्यों देखि.
आग से फुकेंदा,
जंगलों देखि.
कम हुंदा,
पौन पंछ्यों देखि..

© अनूप सिंह रावत #GarhwaliIndian
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)

Friday, March 24, 2017

गढ़वाली शायरी - Anoop Rawat


यूं आंख्युं मा तुम्ही छौ.
ये मन मा तुम्ही छौ..
भाग्य मा तुम्ही छौ.
जीवन मेरो तुम्ही छौ..

COPYRIGHT © ANOOP SINGH RAWAT

Wednesday, March 8, 2017

चुनौ कु नतीजा

बल
11 तारीख़
चुनौ कु
नतीजों ळ आण
नेतों कु क्या
क्वी जीतळु
क्वी हारळु
पर जनता कु
क्या होळु
कुजाण !!!

© अनूप सिंह रावत
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल
पौड़ी (उत्तराखंड)

Wednesday, February 8, 2017

बळ मी मतदाता छौं


बळ मी मतदाता छौं

बळ मी मतदाता छौं..
जणदू छौं मी भी खूब.
चुनौ कु बगत च अचगाळ,
इलै देवतों जनु पुजेणु छौं...

मान मनोबल हुणु च,
बातों मा खूब अल्झेणु च.
ब्याली तक पिचगाणु छायी,
आज ऊ गौल़ा भेंटेणु च...
पर मी बातों मा नि आणु छौं..

हाथ, फूल, कुर्सी, सैकल, हाथी,
छोटा दल, निर्दल सभ्या साथी.
नेता अगने-२, पिछने-२ चमचा,
मुंड टोपल़ा, गात पर खादी...
सभ्युं थै गौर से देखणु छौं..

पोटलों मां बांधी रख्यां वादा,
अर बुशल्या भाषण देणा छी.
पांच साल जू पूरा नि काया,
ऐंसू ऊनि लेकि फिर अयां छी...
टक्क लगै की मी सुणनों छौं..

भै-बैण्यों कु रिश्ता जोड़ना,
काका-काकी, बोड़ी-ब्वाडा ब्वना.
हाथ ज्वड़े खूब हूणी च,
मीठी-मीठी छ्वीं-बता कना...
बळ मी तुम्हरू ही अपडू छौं..

ब्याली तक यूं जै गौं कु,
अता न पता छायी..
बाटू बिरडीगे छाया ज़ख कु,
अचाणचक ऊ याद आयी...
ब्वना हम भी ये गौं क छौं..

आवा दिदों-भुल्यों आवा,
मतदान जरुर कन्नु जौंला.
विकास कारला जू पहाड़ कु,
इनु नेता थैं ऐंसू जितोंला..
सोच समझी वोट देणु जाणु छौं..

© 08-02-2017 (बुधवार)
अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी (उत्तराखंड)

Friday, January 20, 2017

चुनौ कु शंखनाद ह्वेगेनी


मूसा बिरवाळु सी लड़ना छौ,
जु नेता ब्याली तक।
आज ऊंमा राम - लक्ष्मण सी,
भै - भयात ह्वेगेनी।
सोचणु रु मुंड मा हाथ धैरी की,
यु चमत्कार होई ता क्यान होई ?
फिर सुणि मिन बल,
चुनौ कु शंखनाद ह्वेगेनी।।

© 19-01-2017
अनूप रावत "गढ़वाली इंडियन"