Friday, November 24, 2017

ब्वाला कब तक ?


ब्वाला कब तक ?

वादा करयूं छौ मुलुक कु विकास क़ु,
जग्वाल कारली जनता, ब्वाला कब तक?

रंगिला- पिंगला, सुपिन्यां देख्यां जु,
सुपिन्या साकार ह्वाला, ब्वाला कब तक?

जोड़- जुगन्त कैरि बहुमत मिलिगे,
जनता कु बेड़ा पार, ब्वाला कब तक?

योज़ना बणी च ज्वा कागजों मा,
ज़मीन पर पूरी होळी, ब्वाला कब तक ?

डिग्री-डिप्लोमा सब कैरी याळ,
रोजगार मिळालु, ब्वाला कब तक?

फूलमाला पैनी रिबन कटे उद्घाटन ह्वेगे,
काम-काज होळु पूरू, ब्वाला कब तक?

खैरि खाँदा-खाँदा, गरीब मिटे गे,
पर ग़रीबी मिटेली, ब्वाला कब तक?

रूड़ी सी ह्वेगे ज़िंदगी किसान की,
मौल्यार आळु जीवन मा, ब्वाला कब तक?

देहरादून बल ख़ूब हूणी च बैठक,
विधायक जी पहाड़ आला, ब्वाला कब तक?

जाति-धर्म मा बांटी याळ जनता,
राजनीति इनि हूणी रैली, ब्वाला कब तक?

© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक: 24-11-2017 (शुक्रवार)

Thursday, November 16, 2017

चकबंदी - एक उम्मीद


उत्तर भारत के हिमालयी राज्यों में से एक उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है. यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता जितनी खूबसूरत है, ठीक यहाँ का जीवन उतना ही कठिन है. क्योंकि यहाँ की भौगोलिक स्थिति के कारण यहाँ जीवन यापन आसान नहीं है. उत्तराखंड राज्य 9 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आया था, जिसकी माँग बहुत समय से हो रही थी. इससे पूर्व यह पर्वतीय क्षेत्र उत्तर प्रदेश राज्य का एक अंग था. यहाँ के निवासियों को उम्मीद थी कि अलग राज्य बनने से से यहाँ का विकास होगा और लोगों के जीवन में खुशियों की बौछार होगी. किंतु राज्य बनने के 17 वर्षों के बाद भी, अभी भी स्थिति करीब-२ वैसी ही बनी हुई है. जिसका कारण अभी तक की सरकारों का उदासीन रवैया रहा है. यहाँ की सरकारें राज्य को ऊर्जा प्रदेश, पर्यटन प्रदेश बनाने पर ही लगे हुए हैं. कोई भी यहाँ के आजीविका के मुख्य स्रोत कृषि (किसानी) पर ध्यान नहीं दे रहा है. कभी कभार कोई नेता चुनाओं के मध्यनजर इसकी बात करता है और चकबंदी की बातें करके वोट बटोर लेता है किंतु चुनाव उपरांत चकबंदी को भूल जाते हैं.

उत्तराखंड में आजीविका का मुख्य स्रोत प्रारम्भ से ही खेतीबाड़ी रहा है. इसके अलावा सेना और अर्धसैनिक बलों में भी यहाँ के युवाओं को रोजगार के साथ-२ देश की सेवा करने का मौका रहता है. किंतु समय के साथ-२ कृषि क्षेत्र में यहाँ के लोगों का विश्वास कम होता जा रहा है क्योंकि जंगली जानवर खेती को बहुत नुकसान पंहुचा रहें हैं. जिससे लोग अब खेती से लगातार दूर हो रहे हैं. पारम्परिक खेती में होते नुकसान और सरकारी नौकरी में चयन न होने की स्तिथि में यहाँ से लोग लगातार पलायन कर रहे हैं. क्योकि जब लोगों के पास रोजगार का कोई साधन नहीं होता है तो उनको पलायन करने पर मजबूर होना पड़ता है. जिसमें यहाँ के लचर शिक्षा व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवाएं पूरा साथ दे रहीं हैं और पलायन करने पर मजबूर कर रही हैं. अब खेती को पुनः बचाने और लोगों के पारम्परिक रोजगार को बचाने का एकमात्र उपाय चकबंदी ही है. जिसकी मांग राज्य बनने से पूर्व से ही लगातार हो रही है.

उत्तराखंड राज्य का 86% हिस्सा पर्वतीय है और 65% जंगलों से ढका हुआ है. यहाँ पर खेती सीढ़ीदार खेतों पर होती है. यहाँ के खेत बिखरे हुए हैं और परिवारों के विभाजन से एक परिवार की खेती 10 से 20 जगहों पर हैं. जिससे खेती करने में ज्यादा श्रम और लागत आती है. खेती तब ही अच्छी हो सकती है जब खेत एक सामने हों और इसका एकमात्र उपाय चकबंदी है. एक जगह चक हो जाने से यहाँ श्रम भी बचेगा और लोग अपनी योजना के अनुसार खेती कर सकते हैं. यहाँ के खेत उपजाऊ तो हैं किंतु सही से भूमि बंदोबस्त न होने के कारण किसानों को बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.

अगर उत्तराखंड के पर्वतीय भू-भाग में चकबंदी की जाती है तो फिर यहाँ के किसान भी आधुनिक और वैज्ञानिक तरीकों से होने वाली खेती को आजमा सकते हैं और इसी भूमि पर अच्छी खेती कर सकते हैं. चकबंदी से खेती - बाड़ी में ही स्वरोजगार उत्पन्न हो सकता है. क्योंकि यहाँ की जमीन ही यहाँ का स्थाई रोजगार है. यहाँ के पारंपरिक रोजगार जो की बंद होने के कगार पर हैं उनको भी पुनः खड़ा किया जा सकता है. क्योंकि खेती से जुड़े बहुत रोजगार अब बंद हो रहे हैं, खेती में इस्तेमाल होने वाले औजारों का निर्माण करने वाले लुहार (शिल्पी) या फिर रिंगाल से वस्तुएं बनाने वाले "रुड्या" हों, इनका रोजगार पुनः शुरू हो सकता है. साथ ही यदि यहाँ से पलायन रुक जाता है तो कुटीर शिल्प, धातु शिल्प, ताम्र शिल्प, काष्ठ शिल्प, वस्त्र शिल्प, पशुपालन आदि से जुड़े लोगों को भी रोजगार मिल जायेगा, जो कि पलायन होने से लगातार गिरता जा रहा है. सरकारी योजनाओं के साथ यदि पारंपरिक रोजगार भी रहेगा तो यहाँ के लोगों का जीवन खुशहाल हो सकता है और पलायन और बेरोजगारी को रोका जा सकता है.

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में चकबंदी से खुशहाली आ सकती है. यदि यहाँ की सरकार यहाँ पर भूमि बंदोबस्त करती है तो हरित क्रांति को सच में उत्तराखंड के इस भू-भाग पर नया आयाम मिल सकता है. चकबंदी हो जाने से कृषि उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है. ग्रामीण क्षेत्र के लोग बहुत मेहनती होते हैं और उनको यहीं पर उनकी मेहनत का अच्छा परिणाम मिल सकता है. हर किसी परिवार का अपना चक हो जाने ये कृषि उत्पादन कई गुना बढ़ाया जा सकता है, खेती से ही यहाँ के प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाया जा सकता है. कृषि व्यवस्था को दुरुस्त करने, पलायन और बेरोजगारी को रोकने के लिए चकबंदी एक उम्मीद है.

गरीब क्रांति अभियान (उत्तराखंड) लगातार चकबंदी के प्रति लोगों को जागरूक कर रहा है और समस्त उत्तराखंड में चकबंदी जागर यात्रा और गोष्ठियों का आयोजन कर रहा है. यदि उत्तराखंड सरकार अपने स्तर पर लोगों में चकबंदी की जागरूकता और अनिवार्य चकबंदी करवाती है तो एक दिन उत्तराखंड जरूर कृषि के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ सकता है. चकबंदी से कृषि और बागवानी में कैसे आगे बढ़ा जा सकता है इसका उदहारण हमारा पडोसी राज्य हिमाचल प्रदेश है, जहाँ पर उत्तराखंड की ही तरह परिस्तिथि है. चकबंदी जो जाने से यहाँ के किसान भी जड़ी-बूटी, पुष्पोत्पादन, सुगंध पादन, मसाला उत्पादन की राह पर आगे बढ़ सकता है. एक सामने चक हो जाने से साथ ही लोग मौनपालन, पशुपालन, मत्स्यपालन, वानिकी आदि क्षेत्रों में भी रोजगार प्राप्त कर सकते हैं. चकबंदी यहाँ खुशहाली की उम्मीद नजर आती है. चकबंदी से स्वालंबन के धारणा को भी जीवित किया जा सकता है और पहाड़ एक बार फिर सम्पन्नता की राह पर निकल पड़ेगा। इसलिए आज के समय की मांग चकबंदी है, जिसके जरिए भूमि सुधार करके उत्तराखंड के पहाड़ी हिस्से में खुशहाली आएगी.

दिनांक: 16 नवम्बर 2017
अनूप सिंह रावत (चकबंदी समर्थक)
ग्राम व पो. ओ. ग्वीन मल्ला
विकासखंड - बीरोंखाल (खाटली)
जिला - पौड़ी गढ़वाल
उत्तराखंड – 246276
rawat28anu@gmail.com