Wednesday, February 22, 2012

ना बांस तू घुघुती घूर-घूर

ना बांस तू घुघुती घूर-घूर
परदेश छन स्वामी दूर-दूर
मेरु सन्देश ली उडिजा फूर-फूर

फोटो देखि की मन थे बुथ्याणु
राजी ख़ुशी रयां देवतों मनाणु

ड्यूटी लगीं होली कश्मीर बोर्डर
दुश्मन ऐग्याई बल सरकारी ऑर्डर

सरेल मेरु यख मन उमा लग्युंचा
ज्यू पराण मेरु हे तौमा लग्युंचा

हम कुशल छावा चिंता नि कर्यान
स्वामी आप अपरू ध्यान धर्यान

फुर्र उडी जा दी ली जा मेरु संदेशा
तुम दगडी राली मेरी माया हमेशा

लड़े जीती की स्वामी घार अयान
गढ़वाल रायफल कु मान रख्यान

जीती आवा झठ बैठ्यों छौं जग्वाल
दगडी खेलला स्वामी इगास बग्वाल

ना बांस तू घुघुती घूर-घूर
परदेश छन स्वामी दूर-दूर
मेरु सन्देश ली उडिजा फूर-फूर

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
"गढ़वाली इंडियन" दिनांक -२२-०२-२०१२
बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

Wednesday, February 15, 2012

कब होगी फिर वो सुबह

कब होगी फिर वो सुबह
देश मेरा बदल जायेगा
राम राज्य फिर से आयेगा

कब मिटेगी यहाँ गरीबी
भेद भाव छोड़कर सब
होंगे एक दूसरे के करीबी

कब छोड़ेंगे डर-२ कर
इस देश के लोग जीना
आतंकवाद रहे कहीं ना

नेताओं के वादों में जब
फिर कोई ना फंसेगा
ईमानदार को जब चुनेगा

छोड़ देंगे वैर भाव सब
होगी वो हसीन सुबह कब
जिंदगी खुश होगी तब

गीत खुशियों के गायेंगे
फूल खुशियों के खिलेंगे
सारे दुःख दर्द जब मिटेंगे

मिलाओ कदम से कदम
आओ शपथ ले आज हम
वो सुबह लेकर आयेंगे हम

कब होगी फिर वो सुबह
देश मेरा बदल जायेगा
राम राज्य फिर आयेगा

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
"गढ़वाली इंडियन" दिनांक -१५-०२-२०१२
बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

Tuesday, February 14, 2012

वेलेंटाईन डे पर हास्य कविता

सभी कहे इस को प्यार का दिन
कहें नही जी सकते हम तुम बिन

प्रीत की रीत ऐसी हो आयी
आज अपनी कल हो जाये परायी

आज एक तो कल दूसरी फँसायी
पसंद आयी तो साथ ले भगायी

चाँद तारे तोड़ने की करते हैं बात
रूठकर छोड़ देते हैं पल भर में साथ

इनको मतलब पता नही प्यार का
खेल समझते हैं इसे ये इकरार का

आज यह तो एक फैशन हो गया है
लवर नही तो इनको टेंशन हो गया है

भारतीय पर्वों से ज्यादा इसे मनाते
माँ बाप के मेहनत के रुपये हैं लुटाते

रीत अपनी छोड़कर दूसरी अपनायी
हे प्रभु यह प्रीत की रीत कैसी हो आयी

सर्वाधिकार सुरक्षित © iamrawat
अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड
दिनांक - १४-०२-२०१२ (मंगलवार)

Monday, February 13, 2012

अबकी बार जब मी गयुं घार

अबकी बार जब मी गयुं घार
कुछ सूनु सी लगी मिथे गौं गुठ्यार
खाली - खाली छै मेरी छज्जा तिबार

जब नजर फेरी मिन वार प्वार
तबरी पल्या खोला की बोडी
दिखे ग्यायी मिथे गैल्यो हफार

पूछी मिन किले हे बोडी
छन यु गौं गुठ्यार खाली - खाली
बोडी बोली यनी छन वल्या पल्या छाली

सबकू काम मा साथ देणु वालू
सरया गौं मा एक चतरू ही छायी
यनी बीमारी लगी की वी भी नि रायी

कुड़ी पुन्गुड़ी लोग छोड़ी चलि गेनी
गौं का गौं अब ता रीता ह्वेगेनी
पुन्गुड़ी बांजी अर कुड़ी उजदडा ह्वेगेनी

मल्या खोला का भगतु न भी
अबकी बार झणी बारा कैरी याली
उ भी नौकरी का बान परदेश चलि ग्यायी

बुढया लोग ही रैगेनी अब ब्यटा घार मा
ज्वान बैख सब चलि गेनी परदेश मा
बैठ्या छावा कब आला हम भी सार मा

सूनी ह्वेगेनी ब्यटा जन्दरी उरख्याली
परदेश मा बसी गेनी झणी किले सब उत्तराखंडी
सभ्या मेरा सगी सम्बन्धी कुमाउनी अर गढ़वाली

मिन बोली बोडी चल सब ठीक ह्वे जालु
आली जब यार घार की तब लौटी की आला
जख भी राला सभी एक दिन जरूर आला...

अबकी बार जब मी गयुं घार
कुछ सूनु सी लगी मिथे गौं गुठ्यार
खाली - खाली छै मेरी छज्जा तिबार

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
"गढ़वाली इंडियन" दिनांक -१३-०२-२०१२
बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

Friday, February 10, 2012

मेरी भैंसी मरख्वाली

मैकु मुंडारु कनि च या मेरी भैंसी मरख्वाली
ईना सरया गौं गुठ्यार मा बबाल मचैयाली..

बाटा की छन्नी च मेरी बाटू ईन घेरी याली
क्या बिंगो मैकू कतगा आफत करियाली..

ब्याली ईन गौं की प्रधानी बौजी दयाई मारी
प्रधान भैजी न मिथे सुणे गाली खूब खारी..

यनी मरख्वाली च कि कैल नि या लिजाणी
ईन करी याली मेरी सेणी खाणी निखाणी..

पाणी खाणा कु या जब रौली गदिन्यों जांदी
ल्वगों का गोरों थे या वख मरणी लगी रांदी..

हारू धारू घास पाणी इन्कू सब कुछ चयेंदी
दूध का नाम पर या त ल्वथ्या भर ही देंदी..

मैकु मुंडारु कनि च या मेरी भैंसी मरख्वाली
ईना सरया गौं गुठ्यार मा बबाल मचैयाली..

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
"गढ़वाली इंडियन" दिनांक -१०-०२-२०१२
बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

Thursday, February 9, 2012

कै दिन मैना सालों बिटिन अपडा मैत्या मुल्क नि गायी

कै दिन मैना सालों बिटिन अपडा मैत्या मुल्क नि गायी
धारा मंगरूं, बांजा जड्यूं कु ठंडो मीठो पाणी नि प्यायी...

कनि होली व मेरी कुड़ी पूंगुडी मेरी छन्नी छज्जा तिबारी
जौं बाटों मा हिटणु सीखू कब हिटलू ऊमा फिर सरासारी..

झणी कब बिटि नि देखि मिन चैता कु फूल्यों लाल बुरांश
घुघूती की घुर घुर, कफुआ, मोर, बणों मा बंसदी हिलांश..

किन्गोड़ा हिंशोला नि खायी, बेडू, मेलु, तिमला की दाणी
छंछ्या पल्यो बाड़ी, प्याज अर कंडली की भुज्जी स्वाणी..

बांदो का गीत नि सूणा, बाजूबंद, थड्या, चौंफला ऊ गीत
थाडो मा नाचणा की कनि प्यारी च व मेरा मुल्क की रीत..

उ सारयूं मा काम काज, रोपणी, बाणी कमाणी नि कायी
छैलू मा बैठी की, प्याज पिरान्यां कोदा कु रोटु नि खायी..

ब्यो बरात्यों मा पंगत मा बैठी की खाणु, अर रांसू मंडाण
स्याल्यूं का दगडी ठठा मजाक, अप दगडी उ खूब नचाण..

झणी कब बिटि की गैल्यों गौं का थोला मेलु मा नि गायी
दगिद्यों दगडी पात मा ताती - २ जलेबी पकोड़ी नि खायी..

कब जौंलू मी देवभूमि मा अपड़ा स्वाणा रौंतेला गढ़ देश
नि रयेंदु अब यख ता, विराणु सी लगदु गैल्यों यु परदेश..

कै दिन मैना सालों बिटिन अपडा मैत्या मुल्क नि गायी
धारा मंगरूं, बांजा जड्यूं कु ठंडो मीठो पाणी नि प्यायी...

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
"गढ़वाली इंडियन" दिनांक -०९-०२-२०१२
बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

Monday, February 6, 2012

चल तू मेरा ढांगा रे

चल तू मेरा ढांगा रे
बैदे जरा द्वि फांगा रे

तेरी गुसैण आणि च
त्वेकू पींडू ल्याणि च
तेरु मेरु ख्याल रखद
व त मेरी स्याणि च

त्वी छै मेरु धन सारु
रोजगार त्वी छै म्यारू
तभी आण रे दवे दारु
तबि त हूण रे गुजारु

काम काज कु बगत
फिर बौडी की ऐगे रे
सारी पुन्गिद्यों मा हे
बै - बूते शुरू ह्वेगे रे

मी हल्या तू ब्वल्द
बांजा करि दे चल्द
अनाज हमन उगान
सरया दुनिया ब्वल्द

पुन्गिडी छं ऊँची नीचि
ढुंगी देखि की तू खींचि
नाज उगी जालु जब
फिर दयोंला वै सींचि

अनाज मेरु बाकी तेरु
हारू भारू हे घास सैरु
गैल्या सूण टक्क तू
सदनी कु साथ तेरु मेरु

चल तू मेरा ढांगा रे
बैदे जरा द्वि फांगा रे

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
"गढ़वाली इंडियन" दिनांक -०६-०२-२०१२
बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

Thursday, February 2, 2012

कभी सोचता हूँ दोस्तों मैं भी नेता बन जाऊं

कभी सोचता हूँ दोस्तों मैं भी नेता बन जाऊं.
किसी का करूँ न करूँ अपना भला कर जाऊं.

आम रहकर कुछ कर पाऊँ या न कर पाऊं.
नेता बनकर मैं शायद बहुत कुछ कर जाऊं.

हाथ जोडू पहले मैं फिर ओरों से खूब जुड़वाऊं.
किसी भी तरह अपनी साफ छवि मैं दिखलाऊँ.

अपने पीछे पीछे घूमने वाले मैं चमचे बनाऊं.
अपनी जय जयकार तब रोज मैं भी करवाऊं.

ईमानदार रहकर मैं कुछ शायद न कमा पाऊं.
भ्रष्ट बनकर शायद विदेशों में खाता खुलवाऊं.

वादों की झड़ी लगाकर जनता को मैं रिझाऊं.
जीतने के बाद मैं भी अपनी शक्ल न दिखाऊं.

कभी इस दल में कभी उस दल में मैं भी जाऊं.
कोई टिकट न दें तो निर्दलीय ही मैं उतर जाऊं.

छोटे से घर में रहता हूँ मैं भी बंगला बनवाऊं.
काम काज के लिए तब मैं भी नौकर रखवाऊं.

लालबत्ती वाली गाड़ी तब मैं भी खूब घुमाऊँ.
बड़े - बड़े अफसरों से मैं भी सलामी करवाऊं.

कभी - कभी गरीबों में मैं भी कम्बल बट वाऊं.
और किसी भी तरह अपना वोट बैंक मैं जमाऊं.

कुर्ता पायजामा मैं पहनू टोपी ओरों को पहनाऊं.
कभी यहाँ तो कभी वहाँ मैं भी रैली खूब करवाऊं.

पर अंत में सोचता हूँ दोस्तों कैसे नेता बन पाऊं.
बनने के लिए पर मैं इतना रुपया कहां से लाऊं.

फिर सोचता हूँ दोस्तों मैं अपनी कलम ही चलाऊं.
खूब लिखूं इन सब पर मैं सबको बात समझाऊं.


सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
"गढ़वाली इंडियन" दिनांक -०२-०२-२०१२
बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)