
साथ हमारू जन्मों जन्मों कु चा,
यनु च जनु माछी पाणी कु चा..
ऊंका दिल मा मी, उ मेरा दिल मा,
सरैल द्वी अर चितमन एक चा...
© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक – ३१-१०-२०१३ (इंदिरापुरम)
चितमन तेरु ह्व़े सुवा मेरी,
तू ही छै हे दुन्या सुवा मेरी.
होरी जपणा छन हरि राम,
अर मैं छौं जपणु तेरो नाम.
मोर पंख होर्युं कु किताब तीर,
मेरी किताब मा तेरी तस्वीर.
दगिडया पौंछि गैनी पोर धार,
अर मैं छौं बैठ्यों तेरो इंतजार.
मेरी माया न समझी तू खेल,
औ प्रीत लगोंला डाल्युं छैल.
सर्या गौं मुलुक तेरी मेरी हाम,
छोड़ दे डैर सुवा मेरु हाथ थाम.
जल्मों बिटिन बंधन तेरु मेरु,
गीत प्रीत का गालू जमानु सैरु.
© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक – २९-१०-२०१३ (इंदिरापुरम)
तू जून सी जुन्याली।
घुघती सी तेरी सांखी।
ओंटिडी तेरी चुप रैन्दि।
प्रीत बिगांदी तेरी आँखी।
तेरा नाक नथुली।
स्वाणी गौला हंसुली।
स्वाणी माथा बिंदुली।
ह्युं सी तेरी दंतुडी।
आंछिर सी रूप तेरो।
जिया लूछी लीगो मेरो।
चित मन मा तू ही छै।
तू ही सुपिन्यों मा छै।
तेरु ही नौं छू जपणु।
बिन त्वे मन नि लगणु।
सांची प्रीत तेरी मेरी।
सरी दुनिया च देखणु।
सुपिन्या सच करी द्यूं।
त्वे फूलमाला पैने द्यूं।
सबका समिणी आज त्वे।
औ सुवा अपडी बणे द्यूं।।
© अनूप रावत "गढ़वाली इंडियन"
17-09-2013 (इंदिरापुरम)
नमस्कार मित्रों...
कुछ दिन पूर्व श्री मदन डुकलान जी और श्री गिरीश सुंदरियाल जी द्वारा सम्पादित गढ़वाली साहित्य की "अंग्वाल" पुस्तक छपी है.
जिसमे उत्तराखंड के बहुत से साहित्यकारों की रचनाओं का समावेश है. इस पुस्तक में मेरी भी एक कविता "कन्या भ्रूण हत्या" छपी है.
संपादक मंडल और संकलनकर्ता श्री भीष्म कुकरेती जी का बहुत-२ धन्यवाद करता हूँ. महेंद्र राणा जी का भी धन्यवाद, जिन्होंने यह मुझ तक पहुंचाई...
पुस्तक की अधिक जानकारी और ऑनलाइन खरीदने के लिए www.angwal.in पर देखें...
आप सभी मित्रों का भी सदैव प्यार बना रहता है, आप सब का भी तहे दिल से धन्यवाद. कोशिश करूंगा की आगे से भी मैं आप लोगों तक अपनी कविताएं पंहुचा सकूं...
आपका अपना
अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
ऐंसू का चौमास, कनि बरखा लगी.
डांडा कांठा मेरा, किले बोगण लगी.
देवभूमि मा यु क्या होण लग्युं च,
हे प्रभु यु कनु हाहाकार मची.
यनु क्या जी ह्व़े, कि प्रभु रूठिगे,
या फिर कैकी नजर लगी होली.
हैंसदा खेलदा मेरा गाँव मुलुक मा,
या निर्भे निठुर आपदा आई होली.
दिन रात सरग बरखुंदु रायी,
गौं का गौं कन्ना बोगी गैना.
बाटा घाटों मा ह्व़े उजाड़ बिजाड़,
झणी कतगों की जान गैना.
गाड़ गदेरी लर तर बणी छन,
ओर पोर सरया बोगि लीजाणा.
शान मेरु मुलुक का जु पहाड़,
खिसकण पर लगदी छन जाणा.
धन मेरा देश का जवानों कु,
जोंन कई मनखी बचाई देनी.
खाणु पेणु पहुंचे लोगों तक अर,
साक्षात् प्रभु कु रूप जणू लेनी.
मुंड ढकाणु कु कूड़ी नि रायी,
सरकार का सारा बैठ्या छन.
खाणु पेणु की भारी कमी ह्वेगे,
वू खुट मा खुटु धैरी बैठ्या छन,
कुछ एक लोग औणा मदद कु,
जनु-तनु के गुजारु हुणु चा.
कै ता अब भी लापता हुयां छि,
तौंकी खोज खबर बल होणी चा.
हे प्रभु अब त ठैरी जा दी,
भूल ह्वेगे क्वी त माफ़ करि दे.
आस तू ही छै हमारी अब हे,
अज्वाण तेरा भक्त तारि दे...
© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक – ०२-०८-२०१३ (इंदिरापुरम)
तेरे इश्क में इतना खो गया हूँ,
कि अब जहां की खबर तक नहीं.
तू कर यकीं या न कर ए सनम,
रब से तेरे सिवा कुछ मांगू नहीं...
© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (१०-०७-२०१३)
कै भी अज्वाण दगिडी सुधि पछयाण नि होंदी।
माया मा जब तक वैरी न हो रस्याण नि ओंदी।
© 2013 अनूप रावत "गढ़वाली इंडियन"
Gween Malla, Bironkhal, Garhwal (UK)
याद औणा छन फिर
उ दिन मैंसणी आज
थौ जब अपडा गौं मा
मेरा बचपन का दिन
ग्वाल्या लगाणु सीखु
जीं छज्जा तिबारी मा
हिटणु सीखु छौ मिन
जौं टेढ़ा मेढ़ा बाटू मा
उ मेरा स्कुल्या दिन
नाम दर्ज ह्व़े जब मेरु
सरया गौंमा भेली बंटे
भैजी दगडी मेरु जाणु
पाटी ब्वल्ख्या लीजाणु
दगिड्यों का गैल खेलणु
कोलणु थाडों मा दौड़णु
कभि बणु छौ मी ग्वरेल
लखडों कु मी डाँडो गयुं
कभि मांजी कु अदर गयुं
हैल लगाई पुंगिड्यों मा
डाला फोड़ी, मोळ ढोली
छ्वाल्या कु पाणी पेयी
तर्र ह्वेगे पेकि उबईं गौली
दगिड्यों दगिड़ी कै चोरी
कखड़ी मुंगरी खूब भकोरी
निंब्वा अर भट्ट खाणु
भात झोली धपडी फाणु
च्या दगिड़ी कुटुकी लगै
घ्यू दूध ज्यू भोरी की खै
थोला मेलु मा खूब गयुं
दगिड्यों गैल मौज उडै
गदुनु मा माछा छौ मारी
धारा मंगुरु कु पाणी सारी
ह्युंद मा ह्युं मा खूब खेली
रुडी बैठ्युं डाल्युं का सेली
ब्यो बरातुं मा नाचणु
कभि खाणा कू बंटुणु
रंग्युं होली का हुलार मा
ख्वेयुं फूलों की बहार मा
फूल-फूल देली छौ खेली
इगास बग्वाल भैला खेली
थाडा चौक मा गीत लगै
रीत मुल्क की मिन निभै
कभि कामकाज हथ बंटे
ग्युं जौ कोदा झंगोरा की
थाडों मा मिन दौं घुमे
हवा लागी ता फिर बतै
फिर स्कुल्या दिन पूरा ह्व़े
परदेश का मी बाटा लग्युं
ऊं दिनों थै याद करी की
अब मी भारी खुदेणु छौंऊं
©अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक - १०-०४-२०१३ (इंदिरापुरम)
फाल्गुन लागो, आयो रे होरी।
खेलन आयो रे तू संग होरी।।
मैं कान्हा तेरो, तू राधा मोरी।
भूल न जाना तू ओरे गोरी।।
अबीर गुलाल भर पिचकारी।
रंग दूंगा तुझको ओरे दुलारी।।
सखियाँ भी होंगी संग तोरी।
प्रीत है ये तो ना कोई चोरी।।
आवत जावत रंगियो तू गोरी।
जी भर खेलें आज संग होरी।।
रंग बिरंगे फूलों की ओरे छोरी।
महके का आंगन, घर, मोरी।।
फाल्गुन लागो, आयो रे होरी।
खेलन आयो रे तू संग होरी।।
©अनूप रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक 25-03-2013 (इंदिरापुरम)
तेरी अन्वार आंख्यूं मा,
रस्याण तेरी साख्यूं मा।
हैंसी तेरी स्वाणी इनि,
जनु फुलार पाख्यूं मा।।
मयालु मिजाज च तेरु,
दिल त्वैमा लग्युं मेरु।
बिधाता कु बणायूं च,
संग हे सुवा तेरु मेरु।।
न्यारी च तेरी मेरी प्रीत,
औ लगोंला सुवा गीत।
सबका समणी बिंगे द्यूं,
होली माया की जीत।।
हाथ्यूं मेंदी लगै रखि,
बरात लेकि मी औंलु।
बैंडबाजा, ढोल दमो बजे,
डोली तेरी लेकि जौंलु।।
सुपिन्या सुवा सच होला,
गीत लोग हमरा लगाला।
प्रीत सबसे न्यारी चा,
सभी सुवा बींगी जाला।।
©अनूप रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक 23-03-2013 (इंदिरापुरम)
क्या सही क्या गलत जहां में,
ऐ बंदे बस इतना तू जान ले.
हो अगर भूल से कोई गलती,
मुकरना मत बस तू मान ले..
गलती होना इंसान से लाजमी है.
अक्सर गलती हो भी जाती है.
और मान लो अगर ईमान से,
माफ़ी आसानी से मिल जाती है.
एक गलती को छुपाने के लिए,
झूठ का सहारा मत लेना कभी.
गलती और भी बढती जाएगी,
क्योंकि एक फिर बोलेगा तभी.
गलतियां हमेशा कुछ सिखाती है,
सुधारने खुद को मौका दिलाती हैं.
फिर न हो इंसान से गलती ऐसी,
उसे जिंदगी में आगे बढाती है.
जितने भी महान बने दुनिया में,
गलतियों से सीख आगे बढ गए.
पेशकर मिशाल नई सब के लिए,
वे सब जगत में शुमार हो गए.
ठान लें आज हम लोग भी सभी,
न छुपायेंगे अपनी गलतियां कभी.
देखेंगे कहां हो गई गलती हमसे,
सुधार कर उसमें आगे बढ़ेंगे तभी.
© अनूप रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक १०-०३-२०१३ (इंदिरापुरम)
कनु फैल्युं च समाज मा,
यु निर्भे दहेज़ कु रोग ।
नि लेणु-देणु दहेज़ कतै,
झणी कब समझला लोग।।
बेटी का होंद ही बाबाजी,
जुडी जांदा तैयारी मा ।
सुपिन्यां सजाण लग्यान,
अपरू मुख-जिया मारी का ।।
कखि जु नि दे सकुणु क्वी,
ता आग, फांसी लगणी चा ।
फूलों सी पाली लाड़ी बेटी,
ज्यूंदी ही वा म्वरिणी चा ।।
शिक्षित छावा तुम लोग सभ्या,
फिर भी नि समझणा छावा ।
यु रोग ता आग सी भब्कुणु,
भलु नि चा यु यैथे बुझावा ।।
ब्वारी किलै बेटी नि समझेणी च,
एक सासू किलै माँ नि बनिणी चा।
घर की लक्ष्मी किलै आजकल,
इनि किलै ये युग मा सतैणी चा ।।
कब तक चलुदु रालू यु खेल,
आवा चला येथें बंद करी दयोंला ।
रावत अनूप बोलणु सभ्युं से,
आज नई शुरुआत करी दयोंला ।।
© अनूप रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक - 12-02-2013 (इंदिरापुरम)
ग्वीन, बीरोंखाल, गढ़वाल (उत्तराखंड)
प्रेम करके हमने क्या पाया है.
बस अपना समय किया जाया है.
इश्क़ किया जिससे ज़हां से ज़्यादा,
उससे हमने बस धोखा खाया है...
©2013 अनूप रावत "गढ़वाली इंडियन"
कु सुणलो खैरी मेरी, मिन कैमा लगाण।
फंचु भ्वर्यों दुःख विपदों ना कैमा बिंगाण।।
जनि तनी ईं जिन्दगी थै मी धक्याणु छों।
हाथ थामु जू मेरु क्वी अपड़ू खुज्याणु छों।।
नी थमेंदू दुःख अब, मेरी गरीबी लाचारी।
गरु भारू सी मुंड मा च मंहंगै निखारी।।
खेती पाती बांजी हूणी, कुछ भी नि उगुणु।
निरभै निठुर सरग बगत पर नि बरखुणु।।
ध्याड़ी मजदूरी कैरी की भी कुछ नि हुणु।
दिनरात करियाली एक फिर भी पुरु नि हुणु।।
स्कुल्यों की फीस देण, झगुली टोपली ल्योण।
खाणु पेणु ता बाद मा पैली गात थै ढकोंण।।
कनुक्वे जी करण पुरु अब मिन दवे दारु।
यखुली छों कुटुमदारी कु उठाणु वालु भारू।।
कैमा होलू मैकू बगत, कैमा जी अब सुणाण।
जनु भी होलू मिन कुटुमदारी कु फर्ज निभाण।।
©31-01-2013 अनूप रावत “गढ़वाली इंडियन”
ग्वीन, बीरोंखाल, गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद, (उत्तर प्रदेश)
छै तू हे सुवा जून सी जुन्याली।
तेरी आख्युं न जादू करी याली।
माया लगै याली त्वैमा घनघोर,
आज सबका समणी बोलियाली।।
©2013 अनूप रावत "गढ़वाली इंडियन"
ग्वीन, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
ऐंसू ह्युंद मा जब घार मी छौ गयुं।
क्या देखि मिन अब छौ मी लेखुणु।
सब लोगों थै मी छौं बताण लग्युं।।
गौं-मुलुक मा खूब ह्युं छाई पोड्यों।
कुछ गैलिगे ता डांड्यूं नि छाई गोल्यों।।
पाणी हुयुं छायी कुछ ज्यादा ही ठंडु।
नि बोनु छायी धुणु कु हाथ अर मुंडु।।
ह्युंद कु मैत गयीं ब्वारी, आयीं बेटी।
झीठु कंडू छौ खूब दगड़ा जाणी लेकी।।
सुबेर शाम बिना आग कु नि छौ रयेणु।
कामकाज निपटेकी दिनमा घाम तपेणु।।
गोरों सुखो घास छौ देणा, हारू नि छायी।
जरा-2 डाल्युं पर हारू भील्युं ही छायी।।
नारंगी, निब्वा माल्टा डाली बणी छै तर।
स्कुल्या छोरों की जूं पर छाई गयीं नजर।।
ध्याड़ी खुली छै गौंमा बाटू बनुणु लग्युं।
कुछ दिन ही सही पर रोजगार मिल्युं।।
कैका बोण वाला घार अयां क्वी छों सार।
ऐंसू का ह्युंद ता बोडि आलु परदेशी घार।।
© अनूप सिंह रावत "गढ़वाली इंडियन"
दिनांक : 28-01-2013 (इंदिरापुरम)
ग्वीन, बीरोंखाल, पौड़ी (उत्तराखंड)
कब बिटि कन्ना छावा हम लोग जग्वाल।
और झणी कब तक कन्न होरी जग्वाल।
गौं-गौं मा सुबिधा होली कन्ना जग्वाल।
होलू चौमुखी विकास बल कन्ना जग्वाल।
स्कूल मा होला खूब गुरूजी कन्न जग्वाल।
अस्पताल मा होला डॉक्टर कन्ना जग्वाल।
घूस न देंण पोडी काम मा कन्ना जग्वाल।
घूसखोरी ख़त्म होली बल कन्ना जग्वाल।
न हो पलायन घार बीटी कन्ना जग्वाल।
यखि मिलु रोजगार यनु कन्ना जग्वाल।
ह्व़े चुनाव ता बोली बल ऐलि बग्वाल।
वादा कै छाया जू उन्कु करणा जग्वाल।
जन लोकपाल कु कन्ना छावा जग्वाल।
ईमानदार नेता कु कन्ना छावा जग्वाल।
समझ नि औणु झनि कबतक कन्न जग्वाल।
रावत अनूप पुछुणु कब तक कन्न जग्वाल?
©19-01-2013 अनूप रावत “गढ़वाली इंडियन”
ग्वीन, बीरोंखाल, गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
तेरी अन्वार रींगी रीटि आंख्यों मा आणी च।
अब ता ऐजा खुद तेरी सुवा भारी सताणी च।
©2013 अनूप रावत “गढ़वाली इंडियन”
ग्वीन, बीरोंखाल, गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश