कुछ दिन पैले गया था पहाड़ में,
जो कुछ देखा तुम्हें बता रहा हूँ।
कतगा बदल गया अब उत्तराखंड,
तनि इस कविता में बिंगा रहा हूँ।
लिख्वार नहीं हूँ पर लिख लेता हूँ,
आखर बिटोळ के गठ्या रहा हूँ।1।
रंग-बिरंगे लारा-लत्ते पहने,
अंग्रेजी स्कूल जाते बच्चे देखे।।
काका-काकी, ब्वाड़ा-बोड़ी को,
अंकल-आंटी बुलाते देखे।।
गढ़वाली तो कतई नहीं बच्याते,
हिंदी-अंग्रेजी में छ्वीं लगाते देखे।2।
ब्यो बाराती का हाल तो देखो,
दारु की तो गदेरी ब्वगा रहे थे।
ढोल दमो रणसिंघा मसूबाज छोड़ि,
नयु जमानु का डी जे बजा रहे थे।
गढ़वाली गाने में दाने लोग नाचते और,
ज्वान हिंदी पंजाबी में कमर हिला रहे थे।3।
बजार गयुं त गजब सीन देखा,
चाऊमीन बर्गर मोमो बिकते देखे।
च्या बणाएगा कौन अब तो,
पेप्सी लिम्का कोक बैठि पीते देखे।
हक़-बक तो तब रै गया मैं जब,
ह्युंद में आइसक्रीम खाते देखे।4।
ब्याली तक जो घ्वडेत था,
आज वो डरेबर बण गया है।
बखरेल था जो ब्याली तक,
वो आज ठेकेदार बण गया है।
अर जैल ठेली नि साकु दस,
उ आज प्रधान बण गया है।5।
स्कूल का तो हाल क्या बिंगाऊँ,
टुप दो मास्टर अर बच्चे आठ हैं।
भोजनमाता ऐकि भात-दाल पकाती,
घाम तपणा कु काम यूंक ठाठ हैं।
पढे-लिखे भगवान का भरोसा,
पर्सनल छुट्टी साल मा साठ हैं।6।
विकास का नौ कु बानु बणे की,
सर्यां पहाड़ उजाड़ी याला है।
सड़क बणी है कच्ची-पकी,
पैदल अब क्वी नहीं जाणे वाला है।
द्वी लतडाक का बाटू था जख,
टैक्सी बुक करि के अब जाणा है।7।
खेती पाती अब बांजी हो गयी,
राशन बजार बिटि ल्याण है।
खुद काम कन मा शर्म लगती,
नेपाल से डुट्याल बुलाण है।
अफ नि खाने क्वादा झुंगरु,
परदेश में ये सब भिजवाने हैं।8।
ढुंगु से बणी कूड़ी उजाड़ के अब,
ईंटों अर सीमेंट का मकान बना रहे हैं।
ढुंगु का मिस्त्री हेल्पर बना है,
और बिहारी मिस्त्री ईंट मिसा रहे हैं।
न तिबारी, न डिंडाळी, न पट्वले,
अब तो लोग लेंटर डाळ रहे हैं।9।
अब जब फिर जाऊंगा पहाड़ में,
फिर तुम्हें आके बिंगाउँगा।
बदलेंदा ज़माने की तस्वीर को,
आखर गठे की कविता सजाऊंगा।
रावत अनूप को बहुत प्यारा उत्तराखंड,
जय उत्तराखंड गीत सदानि गाऊंगा।10।
मिथै बाँसुली ना रुवायो ..... ..... .....
मिथै बाँसुली ना रुवायो, गैल्या ना बजाऊ बाँसुली,
गैल्या ना बजाऊ बाँसुली ..... ..... .....
मिथै बाँसुली ना रुवायो ..... ..... .....
डांड्यो मा न्योली बंसणी, रौल्युं मा हिलांश,
त्वेकु मेरु रैबार देणु, आणि च घुघुती .....
हो डांड्यो मा न्योली बंसणी ..... ..... .....
आंख्युं का आँसु सुखिगे, रोई-रोई मेरा ...
झठ बौडि आवा स्वामी, गीत बाजूबंद सूणी...
मिथै बाँसुली ना रुवायो ..... ..... .....
स्वामी यखुली परदेशा, मी यखुली पहाड़ा,
निठुर ड्यूटी तुम्हारि, ख़ुशी देखि नि पाणु छु...
हो स्वामी यखुली परदेशा ..... ..... .....
होलि दगड़ी झणि कब, य तुम्हारि मेरी जोड़ी...
रौंला संग-संग हम, ऊ भलु दिन बार आलु ...
मिथै बाँसुली ना रुवायो ..... ..... .....
गैल्या ना बजाऊ बाँसुली ..... ..... .....
कुर्सी मा बैठ्या भैजी, चकबंदी अब कैरी द्यो।
गणेश 'गरीब' जी की, बात जरासी सूणी ल्यो।।
हूणु पलायन यख बिटि, चकबंदी अब कैरी द्यो।
कुर्सी मा बैठ्या भैजी, चकबंदी अब कैरी द्यो।।
ऐंसु न भ्वाला साल, सूणी-सूणी थकी ग्यावा।
जनमानस की बात थैं, टक्क लगै की सूणी ल्यावा।।
होरी जगह ह्वेगे चकबंदी, यख भी अब कैरी द्यो।
कुर्सी मा बैठ्या भैजी, चकबंदी अब कैरी द्यो।।
क्वी यख क्वी वख, क्वी ये छाल क्वी वै छाल।
इनै उनै जांण मा ही, सरया गात जलै याल।।
एक ही समणी सभ्या पुंगडा, हमरा अब कैरी द्यो।
कुर्सी मा बैठ्या भैजी, चकबंदी अब कैरी द्यो।।
चकबंदी ह्वे जाली त, बांजा पुंगडा चलदा होला।
होलु खूब अनाज यख, भैर किलै छोड़ी जौंला।।
द्वी चार ख़ुशी का फूल, हमरा जीवन मा ढोली द्यो।
कुर्सी मा बैठ्या भैजी, चकबंदी अब कैरी द्यो।।
नेतागिरी छोड़ी की आज, जरा मनख्यात रैखि ल्यावा।
तुम्हरा ही भै-बंधु हम, बिरोधी नी छावा।।
गरीब क्रांति आंदोलन की बात, झटपट सूणी ल्यो।
कुर्सी मा बैठ्या भैजी, चकबंदी अब कैरी द्यो।।
शीर्षक : पहाड़ और जीवन
लेख : अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
“पहाड़” शब्द का नाम सुनते ही मन मे तरह-२ की कल्पनाएं घर करने लगती हैं. पहाड़ के नाम से ही मन रोमांचित हो जाता है. मन में पहाड़ों की सुंदरता के ख्याल आने लगते हैं, वहां के हरे-भरे पेड़-पौधों और रंग-बिरंगे फूलों के चित्र मन में उमड़ने लगते हैं. जो कि मन को शांति पहुंचाते हैं. शहरों से लोग पहाड़ों की ओर अक्सर लोग निकल भी पड़ते हैं, शांति की खोज में, क्योंकि वहां का वातावरण है ही ऐसा कि जब लगे कि मन को शांति की जरूरत है तो सबसे पहले पहाड़ का ही खयाल आता है. पहाड़ दिखने में जितने सुंदर लगते हैं, ठीक उसके विपरीत वहां का जीवन बहुत ही कठिन है. जो लोग वहां सैर सपाटे के लिए आते हैं उनको तो होटलों में रहना होता है, जो कि अच्छी जगहों पर स्थित हैं. परन्तु पहाड़ के अधिकतर लोग बाज़ार और सड़क से दूर रहते हैं. जहाँ पर मूलभूत सुबिधाएं पूरी तरह से उपलब्ध नहीं हैं.
इन्ही खूबसूरत पहाड़ों के बीच वहां के लोग अपनी कठिन जिंदगी से रोज जद्दोजहद करते हैं. पहाड़ की जिंदगी में सबसे कठिन परिस्थिति नारी की है. वर्तमान समय में हालाँकि पहले के अनुरूप अब पहाड़ों में जीवन थोडा आसान हो गया है. किन्तु पहाड़ की नारी आज भी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इन पहाड़ों से जद्दोजहद में लगी रहती है. नारी ही है जो बहुत से लोगों के लिए यहाँ प्रेरणा का स्रोत भी है. क्योंकि पहाड़ में उसे अपनी जरूरतों का अधिकांश सामान प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त करना होता है. उसे जहाँ पशुओं के चारे और लकड़ियों के लिए जंगलों में जाना पड़ता है, तो पानी के लिए भी दूर प्राकृतिक स्रोतों पर जाना पड़ता है. हालांकि कई गावों में अब पानी पहुँच चुका है. खेतों में यहाँ पर अधिकांश काम नारी को ही करना पड़ता है. यहाँ खेती-बाड़ी भी वर्षा पर निर्भर है, जिससे कई बार बारिश न होने के कारण नुकसान हो जाता है और अनाज में कमी हो जाती है. हालांकि बाज़ार में अनाज उपलब्ध होता है परंतु लोगों को बाज़ार से भी अनाज पैदल ढोकर लाना पड़ता है. क्योंकि पहाड़ में रास्ते भी काफी उबड़-खाबड़ हैं. परंतु अब लोगों ने इनसे नाता जोड़ लिया है. चाहे इसे मजबूरी कहा जाए या आदत.!
पहाड़ की सबसे बड़ी समस्या यहाँ पर रोजगार की मात्रा में कमी है, जो कि पहाड़ के लिए एक अभिशाप भी है. इसी कारण यहाँ के अधिकांश पुरुष रोजगार की तलाश में पहाड़ से दूर शहरों की ओर चले जाते हैं. जो कि त्योहारों और अन्य सार्वजनिक कार्यों में ही पहाड़ आ पाते हैं. जिससे घर-परिवार की सम्पूर्ण जिम्मेदारी घर की नारी पर आ जाती है. जिसे वह सदियों से निभाती आ रही है. नारी की महानता यहाँ काफी देखने को मिलती है, क्योंकि इतनी कठिन जिंदगी के बाबजूद उसके माथे पर सिकन तक नहीं आती है. जरूर अपनों से दूरी कभी-कबार उसे रुला देती है, मगर उसका असर वह अपने जीवन पर नहीं पड़ने देती और यूं ही भाग दौड़ मे लगी रहती है.
पहाड़ में जीवन की हर आवश्यक वस्तुओं के लिए दूर जाना पड़ता है. यहाँ पर विद्यालय भी काफी दूर-२ हैं. जिसके कारण दूर दराज के लोग अपनी लड़कियों को पढने के लिए नहीं भेज पाते हैं. विद्यालय की दूरी से ज्यादा इसका कारण गरीबी है. क्योंकि यहाँ के लोगों को कई बार प्राकृतिक आपदाओं का भी सामना करना पड़ता है, जो कि यहाँ के लोगों का जीवन कई वर्ष पीछे धकेल देता है. जिसके कई उदारहण हमारे सामने हैं. पहाड़ के लोगों को यहाँ की सरकार की ओर से पर्याप्त सुबिधाएं नहीं मिल पा रहीं हैं. जिसके कारण आज पहाड़ के कई परिवार यहाँ से पलायन भी कर चुके हैं. यह भी पहाड़ के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है. पहाड़ की जनसँख्या में अधिकांश महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे हैं. यहाँ की नारी इन सभी समस्याओं से लड़ती हुई अपने बच्चों और परिवार के भरण-पोषण में लगी हुई है.
पहाड़ में अभी भी स्वास्थ्य सेवाएं ठीक से उपलब्ध नहीं हैं, जिसके कारण यहाँ के लोगों को अपना इलाज करवाने के लिए काफी दूर जाना पड़ता है और गंभीर बीमारी में तो शहरों की ओर दौड़ना पड़ता है. जिस कारण कई बार दुर्घटनाएं भी घटित हो जाती हैं और उसका मूल्य जीवन के रूप में चुकाना पड़ता है. सरकार को इस विषय में ध्यान देना चाहिए और यहाँ के निवासियों के लिए ये सुबिधाएं उपलब्ध करवानी चाहिएं. हालांकि बार-२ चुनाव के वक्त वादे किए जातें हैं किन्तु पूर्ण नहीं किए जाते हैं. आजकल कई लोग अपनी जरूरतों की मांग उठा भी रहें हैं. अब देखने वाली बात होगी कि उनकी उम्मीद और मागें कब तक पूर्ण होंगीं.!
आज वर्तमान युग भौतिकवाद का युग है, जिससे जहाँ सुबिधाएं बढ़ी हैं तो जीवन का मूल्य भी बढ़ गया है. पहले लोग अपनों की खबर के लिए डाक पर निर्भर थे तो आज वहीँ फ़ोन जैसी सुबिधा भी उपलब्ध हो गयीं हैं, जिससे कम से कम सुख दुःख में अपनों से जल्दी संपर्क हो जाता है. यहाँ पर लोग पूरे गाँव को अपना परिवार ही मानते हैं और हर काम-काज में एक दूसरे का हाथ बांटते हैं. यही कारण है जिसके कारण यहाँ के कठिन जीवन में भी लोग अपना जीवन जीते आ रहें हैं. पहाड़ लोग यहाँ के जीवन से जद्दोजहद करते हुए लगभग आज हर क्षेत्र में अपना योगदान दे रहें हैं. जहाँ अधिकांश पुरुष सेना में अपनी सेवाएं दे रहें हैं, जो की पहाड़ में रोजगार का भी मुख्य जरिया है. उनकी बहादुरी और उनका समर्पण इसे रोजगार के साथ-२ उन्हे देश की सेवा का भी मौका देता है.
पहाड़ की संस्कृति और यहाँ का जीवन इसे अन्य क्षेत्रों से अलग प्रदर्शित करता है. यहाँ की सांस्कृतिक विरासत का एक लंबा इतिहास रहा है. यहाँ के इतिहास से यहाँ की नारी शक्ति और यहाँ के रणबांकुरों की कुर्बानी और वीरगाथाएं का पता चलता है. जो कि यहाँ के नौजवानों और आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत हैं. यहाँ के लोग काफी मृदुभाषी हैं, जिसके कारण यहाँ जो लोग घूमने आते हैं तो फिर बार-२ आते हैं. जिससे लोगों को रोजगार भी प्राप्त होता है और मेहमान नवाजी करने को भी मिलता है. जिससे यहाँ की संस्कृति का हस्तांतरण लगातार हो रहा है. प्रकृति ने यहाँ अपनी छटा बिखेरी है तो अब यहाँ पर यदि भौतिकवादी सुबिधाएं भी उपलब्ध हों जाए तो यहाँ का जीवन और भी सरल, सौम्य और खुशहाल हो जायेगा...
जीवन की गाड़ी धकेले रे मनखी, बाटू च अभी बडू दूर.
भाग मा त्यारा जू कुछ भी होलू, एक दिन त्वे मिललू जरूर.
करम करदी जा, धरम करदी जा ...................
अधर्म कु बाटू भेल ली जांदू, धर्म कु बाटू स्वर्ग मा जांदू.
जैका जनि कर्म हे मनखी, फल भी दगिद्या ऊनि पांदू.
जाति-पांति सब भेदभाव छोड़, सब च वै विधाता की नूर.
जीवन की गाड़ी ....... भाग मा त्यारा ..........
फूलों कु बाटू बण्यूं च त्वेकू, कांडों का बाटा किलै छै जाणु.
सब कुछ पाके भी से बाटा मनखी, त्वेन कभी सुख नि पाणु.
दया धर्म कु बाटू जा रे मनखी, ना बण तू हे इतगा क्रूर.
जीवन की गाड़ी ....... भाग मा त्यारा ..........
बगत कभी रुक्युं नि रांदु, आदत येकी भी मनखी जनि च.
सब कुछ च त्वैमा हे मनखी, बस एक धीरज की कमि च.
मनखी चोला माटा कु च रे, चखुलू सी उड़ी जालू फूर.
जीवन की गाड़ी ....... भाग मा त्यारा ..........
रंग ही नि हुंदू फूलों की पछ्यांण, कांडों ना भी पछ्यांण हुंद.
रंग रूपल नि पछ्नेंदु मनखी, वैका कर्मों न पछ्याण हुंद.
प्रेम कु कल्यों त्वैमा रे मनखी, बांटी सकदी बांटी ले भरपूर.
जीवन की गाड़ी ....... भाग मा त्यारा ..........
पालू सदानी नि रैंदु चमकुणु, घाम आण मा सर्र गैली जान्द.
पाप की गठरी नि बाँध रे, पाप कु घाडू फट्ट फूटी जान्द.
अहम् छोड़ी दे रे दगिद्या, न कैर मनखी तू भंड्या गुरूर.
जीवन की गाड़ी ....... भाग मा त्यारा ..........
दाथुड़ी लेकि घासा कु जांदी,
ग्वरेल छोरों की बांसुरी सूणी,
स्वामी की खुद मा खुदेणी हो.
वा बैठी डाल्युं का छैल,
घास घसेन्यों का गैल,
बाजूबंद गीत गाणी हो ...
कै दिन मैना बीती साल,
स्वामी बौडी घार नि आया,
पापी नौकरी का बाना,
द्वी जनों कु बिछड़ो हुयुं च,
स्वामी राजी ख़ुशी रयां,
देवतों थैं वा मनाणी हो ...
वा यखुली पहाड़ मा,
ऊनि काम काज सार्युं कु,
ऊनि दुध्याल नौन्याल,
स्वामी का खातिर वींकी,
घ्यु की ठेकी भोरियाल,
तू हिकमत ना हारी हो ...
आंखी थकी बाटू देखि-२,
दिन याद मा धक्याणी,
बुढ्या सासु ससुर की सेवा,
अपडू ब्वारी धर्म निभाणी,
धन त्वेकू पहाड़ा की नारी,
रै सदानी सुहागिणी हो ...